फ़ुरसत
में ...102
मातृ दिवस पर मां की
याद!
मनोज कुमार
मई मास के
दूसरे रविवार (यानी कल 13.05.2012) को मनाया
जाने वाला मातृ-दिवस आज जिस रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है,
वह बहुत ही हाल के आयोजन जैसा लगता है। किन्तु इतिहास में झांकें तो मातृ दिवस मनाने की परंपरा काफ़ी
पुरानी है। माताओं को सम्मान देने के लिए यूनानियों ने कई देवताओं की मां रिया के लिए
वसंतोत्सव मनाना शुरू किया था। प्राचीन रोमन, देवताओं की मां स्येबेल की पूजा किया
करते थे। ईसाई धर्मावलंबी यीशु मसीह की माँ मदर मेरी, के सम्मान में इस त्योहार को मनाया करते थे।
संयुक्त राज्य अमेरिका में, मातृ दिवस
का प्रचलन लगभग 150 साल पहले शुरू हुआ था, जब एना जार्विस, एक गृहिणी, ने अपने समुदाय में महिलाओं की खराब स्वास्थ्य स्थिति के विषय में जागरूकता
बढ़ाने के लिए एक दिन का आयोजन किया। 1905 में जब एना जार्विस की मृत्यु
हो गई तो उसकी पुत्री, जिसका नाम भी एना ही था, ने अपनी माँ के योगदान को यादगार बनाने के लिए एक अभियान शुरू किया। 1914 में एना की मेहनत रंग लाई जब वुडरो विल्सन ने एक राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मातृ दिवस को
घोषित किये जाने वाले बिल पर हस्ताक्षर किया।
बाद में यह दिवस इतना व्यावसायिक हो गया कि इसकी संस्थापक एना, जिसने इस दिवस की घोषणा
में सहयोग किया था, ने उसी का विरोध करते हुए इसे समाप्त करना चाहा। यहां तक कि इस आन्दोलन में उसकी गिरफ़्तारी
भी हुई। 1948 में अपनी मौत के पहले, जार्विस ने कबूल किया कि
उसने जो मातृ दिवस की परंपरा शुरू करने का अभियान चलाया था, इसका उसे खेद रहा।
यह दिवस अब दुनिया के हर कोने में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। भारत में
भी।
आइए इस दिवस पर देश में माताओं की स्थिति का जायजा लें।
- बच्चों के अधिकारों के लिए
काम करने वाली संस्था “सेव चिल्ड्रेन” ने “स्टेट ऑफ द वर्ल्ड मदर्स – 2012” नामक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि
- माताओं की सेहत पर 80
विकासशील देशों की स्थिति बताने वाली सूची में भारत का स्थान
76वां है। 2010 में यह 73 वां था। यानी पिछले दो सालों में हम तीन पायदान नीचे आए हैं।
- भारत में प्रति 140
महिलाओं में,
सेएक महिला बच्चा जनते समय मौत का शिकार हो जाती हैं। 2010 में यह आंकड़ा 220 में से एक का था। इसको दूसरे ढंग से समझें तो जहां दो साल पहले एक लाख में से 450 माएं जचगी के समय अपना जीवन गंवा बैठती थीं अब यह बढ़कर 715 हो गया है। चीन में यह आंकड़ा 1500 में एक का या एक लाख में 67 का तथा श्रीलंका में 1100 में एक का या एक लाख में 91 का है। - इसके कारण के मूल में जाएं
तो पाते हैं कि भारत में आधी से अधिक महिला आबादी एनीमिया से
जूझ रही है।
- देश में सिर्फ़ 49% महिलाएं गर्भ निरोधक का इस्तेमाल करती हैं।
- सिर्फ़ 53% मामलों में प्रसव के दौरान किसी कुशल स्वास्थ्य कार्यकर्ता की मदद
ली जाती है। इस मामले में भारत नीचे से पांचवें पायदान पर है।
- बच्चा जनने के बाद बच्चों
में कुपोषण की समस्या गंभीरतम है।
- यहां 46%
नवजात बच्चों को ही छह माह तक मां का दूध मयस्सर होता है।
- जिस देश में सिर्फ़ 65.67%
महिलाएं ही साक्षर हों तो और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?
एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है।
आंकड़ों
से हटकर इस दिवस पर अब एक कविता मां के लिए
मां! तुम अब भी
वही हो, वहीं
हो!
मां!
तुम इक्कीसवीं सदी की तो नहीं ही हो
बीसवीं
सदी में भी बीसवीं सदी की नहीं थी
सब्जी, सलाई, चूल्हा,
रही सदा
तुम्हारी दुनिया
रसोई में
सिमटी
चूल्हे-चौके
की फ़िकर में लिपटी
कोई काम
कभी हमारा
अटकने न
दिया
संसार का
कोई कोना
हमारे लिए
सिमटने न दिया
हुआ ऐसा
भी नहीं कि
किए हों
तुमने
सिर्फ़ घर
में ही
बरतन, झाड़ू, पोंछा
हमारे मन-अन्तर्मन
भी
साफ किए
तुमने
हर क्षण
बदलते रहे हैं
दुनिया, मौसम, लोग
तुम नहीं, तुम नहीं
हमारे लिए
न खाकर
भी पानी से पेट भर लेना
चूम कर
माथे को हमारे, हर
रोग, विपदा, व्याधि,
हर लेना
गोद तुम्हारी
इतनी विशाल
कि हम भाई
बहन ही क्या
पूरा
मुहल्ला, शहर, देश, दुनिया,
समा जाए।
नज़र न लगे
का टीका
और
राह न भूले
इसलिए नज़र
रखना
‘क्या कर रहे हो?’
पूछना
और जानते
रहना कि क्या कर रहा था
कोमल भी
कठोर भी
गरमी, बरसात, जाड़ा,
कार्तिक, सावन, भादो,
तुमसे दूर
रहकर इतने
दूर नहीं
रह पाता
देखता हूं
घने साये वाले वृक्षों को
आती है
तुम्हारी याद
तुम्हारी
डांट, डांट का प्यार
तुम्हारी
झिड़की, झिड़की का दुलार
तुम्हारे
आंसू
आंसू की
ख़ुशी
आंसू के
ग़म
आंसू की
निराशा
आंसू के
दर्द
आंसू का
अकेलापन
आंसू का
गर्व
***
भगवान
जब बना रहा था इंसान
तो उसने भी
बनाकर कहा होगा तुम्हें
.... मां!
उसने जिस रूप में, भाव से,
धूप में, छांव से,
गढ़ा होगा तुम्हें
मां!
तुम अब भी वही हो,
तुम अब भी वहीं हो!
*** *** ***
भावभीनी कविता ...सजल नेत्र से पढ़ी ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव ...
समस्त माताओं को नमन ...!!
जि़क्र तेरा आया ,आँखें मेरी भर आई
जवाब देंहटाएंमाँ तुम बहुत याद आई.....माँ को नमन..सुन्दर प्रस्तुति..
भगवान
जवाब देंहटाएंजब बना रहा था इंसान
तो उसने भी
बनाकर कहा होगा तुम्हें
.... मां!
मात्रु दिवस पर सुंदर प्रस्तुती .....
माँ समय के साथ बदल नहीं पायी...मॉम हो कर भी वो घर-परिवार के लिए अब भी न्योछावर है...मातृ दिवस पर सभी माँओं को शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंपिछले दिनों राजस्थान की एक कस्तूरबा गांधी आवासीय शाला में मैंने एक वाक्य लिखा देखा- दुनिया में मां ही एक ऐसी देवी है जिसका कोई नास्तिक नहीं होगा।
जवाब देंहटाएंस्त्री चाहे जितनी बदल जाए, पर वह मां के रूप में मां ही रहेगी।
सादर नमन |
जवाब देंहटाएंमाँ
शब्दों में सबसे शक्तिशाली |
सबसे प्यारा |
सबसे प्रेरणादायी ||
माँ तो पहले भी वैसी ही थी अब भी वैसी ही है , क्यों की उसका ममत्व हर काल खंड में अपने संतान की सुख की कामना ही करती है .." पूत कपूत सुने पर नहीं सुनी कुमाता ". आपकी कविता .की भावभूमि हमे अपने जीवन काल की सैर करा लाई., शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस पर आंकड़ों के साथ एक भाव प्रवण रचना .....
जवाब देंहटाएंहमारे मन-अन्तर्मन भी
साफ किए तुमने.... बहुत सुंदर
मां!
जवाब देंहटाएंतुम अब भी वही हो,
तुम अब भी वहीं हो!
सुंदर भावप्रणव रचना .......
चार पंक्तियाँ माँ के सम्मान में ,...
माँ की ममता का कोई पर्याय हो नहीं सकता
पूरी दुनिया में माँ तेरे जैसा कोई हो नही सकता
माँ तेरे चरण छूकर सलाम करता हूँ
सभी माताओ को प्रणाम करता हूँ..
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
आपकी पोस्ट अच्छी है।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट के चित्र पर अचानक हमारे बेटा बेटी की नज़र पड़ गई,
बोले - फ़ोटो कितनी अच्छी है ?
http://commentsgarden.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
मातृदिवस का ऐतिहासिक विवरण से परिचय पाकर आनन्द आ गया। माँ तो जगज्जननी का प्रत्यक्ष रूप है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder.....
जवाब देंहटाएंभगवान
जवाब देंहटाएंजब बना रहा था इंसान
तो उसने भी
बनाकर कहा होगा तुम्हें
.... मां!
....बहुत भावमयी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति....
माँ अनमोल होती है...!
जवाब देंहटाएंआपने कविता के बहाने माँ को याद किया ,आभार !
nishab hun aapki is kavita par aur in aankdo ko jaan kar vismay k sath dukh hota hai ki ham aaj bhi itni shochneey sthiti me hai aur vikassheel desh wale kahlaye jate hain ? maat-diwas ka lekh jankari badhane wala tha.
जवाब देंहटाएंaabhar.
सबसे पहला गीत सुनाया
जवाब देंहटाएंमुझे सुलाते , अम्मा ने !
थपकी दे दे कर बहलाते
आंसू पोंछे , अम्मा ने !
सुनते सुनते निंदिया आई,आँचल से निकले थे गीत !
उन्हें आज तक भुला न पाया ,बड़े मधुर थे मेरे गीत !
आज तलक वह मद्धम स्वर
कुछ याद दिलाये कानों में
मीठी मीठी लोरी की धुन
आज भी आये, कानों में !
आज जब कभी नींद ना आये,कौन सुनाये मुझको गीत !
काश कहीं से मना के लायें , मेरी माँ को , मेरे गीत !
मातृ दिवस के बारे में सुंदर आलेख लिखकर आपने अच्छी जानकारी दी।
जवाब देंहटाएंकविता के भाव सही हैं...माँ तुम अब भी वहीं हो।
माँ तुझे सलाम !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सेहत के दुश्मन चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ - ब्लॉग बुलेटिन
तथ्यों के साथ मातृदिवस के स्मरण ने एक तरफ जहाँ माँ की निश्छल ममता का स्पर्श दिया है, वहीं दयनीय आँकड़े हृदय को झकझोरने वाले हैं।
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक प्रस्तुति के लिए आभार,
मां पर कविता अच्छी लगी.मदर्स-डे पर एक तथ्यात्मक आलेख अच्छा रहा।
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ घर में ही
जवाब देंहटाएंबरतन, झाड़ू, पोंछा
हमारे मन-अन्तर्मन भी
साफ किए तुमने!
माँ या माँ जैसी हर स्त्री यही करती है !
मातृत्व दिवस से सम्बंधित बहुत जानकारियां मिली !
आभार !
माँ तुझे सलाम आपकी पोस्ट से बहुत कुछ जानने को मिला बहुत - बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंमहतारी दिवस की बधाई
जवाब देंहटाएंकितनी बदली सदियाँ फिर भी माँ का रूप नहीं बदला।
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंपढ़ कल ही लिया था, लेकिन सोचा आज मातृ दिवस के दिन ही कमेन्ट करूँगा.. वैसे तो मैं भी सुश्री एना की तरह इस दिन के व्यवसायीकरण के विरुद्ध हूँ, किन्तु जो तथ्य और इतिहास आपने बताया वह जानकार बड़ी प्रसन्नता हुई..
आपकी कविता के विषय में तो बस इतना ही कहूँगा कि ह्रदय से माता के निकालने वाले उदगार सदा कविता और उस देवी की वन्दना में प्रार्थना बन जाते हैं.. राजेश जी की बातों को उधार लेना चाहूँगा कि यदि माँ वह देवी है जिसकी पूजा ही मेरी आस्तिकता है!! बहुत ही अच्छी कविता!!
आज मातृदिवस पर अखिल मातृ-समुदाय को शतशः नमन।
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस पर इससे सुंदर आलेख मुश्किल है. मातृ दिवस के इतिहास आज की उनकी परिस्थितियाँ और सबसे सुंदर कविता. आभार.
जवाब देंहटाएंसमृद्ध आलेख!
जवाब देंहटाएंकविता बेहद सुन्दर है!
सादर!
माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
जवाब देंहटाएंकितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?
उसने जिस रूप में, भाव से,
जवाब देंहटाएंधूप में, छांव से,
गढ़ा होगा तुम्हें
मां!
तुम अब भी वही हो,
तुम अब भी वहीं हो!
मातृ दिवस पर इससे सुंदर आलेख
प्रासंगिक प्रस्तुति के लिए आभार,
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ दिवस विशेषांक - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंअगर दुनिया मां नहीं होती तो हम किसी की दया पर
या
किसी की एक अनाथालय में होते !
संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी
आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआज ब्लॉग जगत अटा पड़ा है मात्र शक्ति को प्रणाम करती भाव मयी पोस्टों से. ऐसे में आज के दिन को तथ्यों और आंकड़ों से सार्थक करती आपकी पोस्ट इस बात को साबित करती हैं कि आज की तारीख में अच्छी , नयी और दुर्लभ जानकारी और साहित्य के लिए ब्लॉग से अच्छा और कोई माध्यम नहीं.
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं