बांस का चीरा
श्यामनारायण मिश्र
बांस पर,
औरत झुकी है
सांस साधे सांस पर।
बांस की
तासीर, गांठे, कोशिकाएं
तौलती है आंख से,
और तब फिर बैठ जाती है
मुलायम तार-रेशे
छीलने को बांक से।
दुधमुंहा
इस बीच आकर झूलता है
छातियों के डेढ़ मुट्ठी मांस पर।
बांस का चीरा
कलेजे तक उतरकर
छातियों से बह रहा है।
वंशगत गुर की कहानी
वंशधर से कह रहा है।
टोकनी बुनती हुई
आंखें भरी हैं
दूध पीती दृष्टि
ठहरी फांस पर।
*** *** ***
चित्र : आभार
गूगल सर्च
बांस का चीरा
जवाब देंहटाएंकलेजे तक उतरकर
छातियों से बह रहा है।
वंशगत गुर की कहानी
वंशधर से कह रहा है।
टोकनी बुनती हुई
आंखें भरी हैं
दूध पीती दृष्टि
ठहरी फांस पर।
मिश्र जी का यह नवगीत बांस से विभिन्न प्रकार के आम प्रयोजन में आने वाली वस्तुओं के निर्माण कार्य में व्यस्त महिलाओं के रोजमर्रा की जिंदगी का एक खुला विवरण है । नवगीत अच्छा लगा । धन्यवाद ।
वंशधर से कह रहा है।
जवाब देंहटाएंटोकनी बुनती हुई
आंखें भरी हैं
दूध पीती दृष्टि
ठहरी फांस पर।
सुंदर प्रस्तुति,,,,,मिश्र जी का यह नवगीत अच्छा लगा । धन्यवाद ।
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, जिस्म महक ले आ,,,,,
चीरा लगने से श्वेत रक्त बहता है..
जवाब देंहटाएंौरत की बेबसी विबशता और सहनशीलता के दर्शाते भाव सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंऔरतों की सहनशीलता पर सुन्दर गीत... प्रकृति के उपलाम्बो को लेकर रची सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंओह्ह.. गज़ब की रचना ..अद्भुत.
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना !!! गहन भाव अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंमुलायम तार-रेशे
जवाब देंहटाएंछीलने को बांक से।
दुधमुंहा
इस बीच आकर झूलता है
छातियों के डेढ़ मुट्ठी मांस पर।
मार्मिक रचना उस दुध मुहे और उस महिला जैसी.. सब को प्रभु संबल दे,, ....जय श्री राधे - भ्रमर 5
सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार ...मनोज जी क्या ये डॉ श्यामनारायण मिश्र उ.प्र की ???
भ्रमर का दर्द और दर्पण
ये कटनी के रहने वाले थे।
हटाएंबांस के साथ वंशबेल की कथा तो हमारी लोक परम्परा का एक अंग है.. मगर इस कविता में स्व. मिश्र जी ने जो चित्र खींचा है वह उस स्त्री के समक्ष नत होने को बाध्य कर देता है!! अद्भुत रचना है यह!!
जवाब देंहटाएंगहन ...अद्भुत रचना ....!!
जवाब देंहटाएंबांस की
जवाब देंहटाएंतासीर, गांठे, कोशिकाएं
तौलती है आंख से,
और तब फिर बैठ जाती है
मुलायम तार-रेशे
छीलने को बांक से।
.अद्भुत रचना .
नवगीत में मिश्र जी ने टोकनी बनानेवाली महिला का बहुत सुन्दर चित्र खींचा है।
जवाब देंहटाएंनारी के वात्सल्य और विवशताओँ का लेखा!
जवाब देंहटाएंसजीव हो उठा टोकनी बुनती हुई माँ का वात्सल्य..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंpadhkar ankhon ke saamne sajeev ho utha daarunik drashya ...
जवाब देंहटाएंsaartham marmshaparshi prastuti hetu aabhar.
मार्मिक बिम्ब और प्रतीक .शुक्रिया इस रचना को उपलब्ध करवाने के लिए मनोज जी .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 30 मई 2012
HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से
http://veerubhai1947.blogspot.in/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?
आवाक करती अद्भुत रचना....
जवाब देंहटाएंसादर आभार।