फ़ुरसत में …
फ़ुरसत से मीठी यादें बांटते हुए!
घर का बरामदा, बरामदे में लगी एक आराम कुर्सी, आरामकुर्सी के बगल में एक तिपाई, तिपाई पर चाय का प्याला, प्याले के पास प्लेट में सजे बिस्किट, बिस्किट के साथ पानी का ग्लास... आराम कुर्सी पर अधलेटे, आँखें बंद किये, पेंडुलम की तरह झूलते हुए, कुछ सोचते हुए, कुछ याद करते हुए, मन ही मन मुस्कुराते हुए - इस नज़ारे को अगर कोई नाम देना हो, तो क्या नाम देंगे आप? बहुत ही आसान है, उसे हम कहेंगे – फ़ुरसत में! हमने भी सोचा कि आज थोड़ा सस्पेंस पैदा करते हैं और मनोज कुमार जी को फ़ुरसत में भेज देते हैं और खुद जम जाते हैं उनकी कुर्सी पर, जिसका नाम है – फ़ुरसत में!
सप्ताहांत में उनके कार्यालय की छुट्टी और वे अपने मनपसंद किसी भी हलके फुल्के विषय पर नितांत अपनी बात कहते हैं. अपने सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत जीवन की कोई घटना या कोई विषय लेकर उसके आस-पास एक ताना बाना शब्दों का, भावनाओं का, सन्देश का, शुद्ध हास्य का या किसी व्यंग्य का. उनके व्यंग्य का केंद्र भी प्रायः वे स्वयं ही रहे हैं. एक मर्यादा, एक सीमा, एक शिष्टाचार, संबंधों का मान... यह सब उनकी फ़ुरसत में की रचनाओं में देखे होंगे आप सभी ने.
दिल्ली में रहते हुए, उनसे कई बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. कारण मेरा कार्यालय ऐसी जगह पर था जहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है. उनसे मिलकर कभी प्रतीत ही नहीं हुआ कि मैं भारत सरकार के किसी उच्च-पदस्थ पदाधिकारी से मिल रहा हूँ. कम बोलना, किसी बात पर मुस्कुराना शायद उनकी सबसे विस्तार से की गयी प्रतिक्रया होती होगी. क्योंकि उससे अधिक विस्तृत प्रतिक्रया वे व्यक्त करते ही नहीं.
मैं उनसे उम्र में ज़रा सा ही बड़ा हूँ या समवय भी कह सकते हैं. इस नाते मैंने उन्हें एक बार अनुज कहा और वो दिन और आज का दिन उन्होंने मुझे बड़े भाई के रूप में सम्मान दिया. जब भी उनकी कोई रचना किसी पत्रिका में प्रकाशित हुई, उन्होंने मुझे अवश्य सूचित किया और जब उन्हें साहित्यिक गोष्ठी में कविता पाठ करने का आमंत्रण प्राप्त हुआ तो घबराहट और खुशी के मिले-जुले भावों के साथ उन्होंने मुझे खबर दी. यही नहीं जब कार्यक्रम सफल रहा, तो मुझे फोन पर ऐसे कहा जैसे कोई बच्चा अपना रिपोर्ट कार्ड लेकर भागा चला आया हो यह कहता हुआ कि भैया मैं क्लास में फर्स्ट आया हूँ!!
किसी पोस्ट को लेकर यदि उन्हें तनिक भी संदेह होता कि इस विषय पर, इस बिम्ब पर, इस शब्द पर, इस मुहावरे पर, इस घटना पर कोई भी विवाद हो सकता है या किसी की भावना आहत हो सकती है, तो मुझे वो आलेख भेजकर मेरी राय अवश्य माँगते और मेरे सुझाव को बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेते हैं. बौद्धिक स्तर पर, जब हम दोनों ही ब्लॉग लिख रहे हैं और अलग-अलग लिख रहे हैं, उन्होंने हमेशा स्वयं को लक्ष्मण सिद्ध किया है. हाँ, मैंने भी जिस विषय में मेरी जानकारी न हो, कभी कोई राय नहीं दी.
सरकारी विभाग और सरकारी प्रतिष्ठानों में राजभाषा के नाम पर हिन्दी का चलन सिर्फ हिन्दी में हस्ताक्षर करना, दो चार पत्रों में नाम-पता लिख देना और सालाना जलसा मनाना भर होता है. खासकर मैं तो यही समझता था. लेकिन मनोज जी की लगन और राजभाषा के कार्यान्वयन के प्रति समर्पण देखकर मैं दंग रह गया. हमारे प्रतिष्ठान में राजभाषा अधिकारी के लिए साहित्य (हिन्दी अथवा अंग्रेजी) का डिग्रीधारक होना अनिवार्य है. अतः लाख काम करने के बाद भी मेरी गिनती सामान्य पदाधिकारी की ही रहने वाली है. बस, गुब्बारे से हवा निकल गई और आवश्यकता से अधिक काम करने का जज्बा समाप्त. मनोज जी ने इस काम को अपने कार्यालय में बखूबी सम्भाला और नगर स्तर पर तथा क्षेत्रीय स्तर पर अपने विभाग के साथ-साथ स्वयं के लिए भी कई सम्मान व प्रमाणपत्र प्राप्त किये. उनकी इसी लगन के कारण आज तीन-तीन ब्लॉग हैं उनके और वे नियमित लिख रहे हैं, अनवरत, एक सेवा भावना के साथ.
अब जब दिल्ली से जा रहा हूँ, मनोज जी से मिलना नहीं हो पायेगा. मिलना नहीं से तात्पर्य जितनी आसानी से हम उनके दिल्ली दौरे के दौरान मिल लेते थे, उतनी आसानी से नहीं. ब्लॉग जगत की बातें, साहित्य चर्चाएं, पारिवारिक बातें और पटना की पुरानी यादें. कई बार उन्होंने यह मलाल भी जताया कि उनकी किसी बात को किसी ने गलत समझ लिया और उनके ब्लॉग पर आना बंद कर दिया. एक टिप्पणी के कम होने से अधिक दुःख उन्हें एक मित्र के कम होने का रहा है. उनमें से कुछ के साथ मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं, लेकिन लाचार पाता हूँ खुद को. मैं उन्हें समझता हूँ यही काफी है उनके लिए भी और मेरे लिए भी!
आप सोच रहे होंगे कि अचानक आज मुझे क्या हो गया है कि मैं मनोज जी के ब्लॉग पर आकर, उनकी बातें कर रहा हूँ वो भी फ़ुरसत में और फ़ुरसत से! तो अपना तो सीधा-सादा उसूल है – दुश्मन की पिटाई उसके घर में जाकर करो और दोस्त की मीठी यादें उसके घर में बैठकर बांटो!
सलील वर्मा जी,
जवाब देंहटाएंमानता हूं कि समय के साथ अतीत को भुलाकर लोग आगे बढ सकते हैं लेकिन जीवन में सब कुछ भुलाया नहीं जा सकता। कुछ लमहे ऐसे होते हैं जिनके साथ हम हमेशा जीना चाहते हैं। आप और मनोज जी का सामीप्य- बोध भले ही कालांतर में अतीत की बातों जैसा लगे, लेकिन आप सब साथ-साथ रह कर अपने साथ बिताए लमहों को कभी नहीं भुला सकते क्योंकि किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के दिल में बीते हुए लमहों की कसक सर्वदा विचलित सी करती रहती है । भले ही आप सब एक दूसरे के जीवन में फिजिकली मौजूद न रहें, लेकिन यादे तो हर पल साये की तरह आप दोनों का पीछा करती रहेगी । अंत में, बस यही कहूंगा-
"बदलते चेहरों के मौसम मे ये जरूरी है,
नजर के सामने हर वक्त आईना रखना ।"
धन्यवाद ।
बढिया यादें सहेजी हैं। मनोज जी खूब लिखते-पढ़ते-टिपियाते हैं। नेट पर हिंदी की खूब अच्छी सामग्री पोस्ट करने/करवाने के लिहाज से उनका योगदान अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंदोनों मित्र अब नेट के जरिये फुर्सत के पल बांटे
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी पोस्ट ....दोस्ती की यह मिठास कायम रहे !
जवाब देंहटाएंआभार ....
ब्लॉगजगत की उठापटक के बीच इतनी प्यारी दोस्ती की बातों को पढना अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंमीठी यादें हमेशा आप लोगो के साथ रहे , बाकी मिलना नेट के जरिये तो होता ही रहेगा आप दोनों का !
बहुत शुभकामनायें !
फुर्सत में बिताये मीठे पल ....इसी सार्थकता की नितांत आवश्यकता है ...आज के परिपेक्ष में ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है...!!
मैं तो काफी पढ़ लेने के बाद यह समझ कर कि कुछ लफड़ा है फिर से बांचना शुरू किया तो बात साफ़ हो पायी कि कौन किसके बारे में लिख रहा है ..पहले तो यही समझा कि सारे मानवीय उदात्त गुण अपने सलिल जी के हैं जो बखाने जा रहे हैं मगर मनोज जी तो उनके भी बड़े भाई निकले ...
जवाब देंहटाएंमनोज जी भी दिल्लीवासी हैं ? मैं तो उनको पटने वाला समझता रहा ....मतलब वे पटने पटाने के ऊपर हैं ...महानुभाव प्राणी विज्ञान से एम् एस सी हैं और कीट विज्ञान उनकी खासियत है .....बस यही गाँठ बाँध रखी है क्योकि खुद भी प्राणी विज्ञानी हूँ ..
हाँ मनोज जी बहुमुखी प्रतिभा के सर्जनशील व्यक्तित्व हैं -इसमें कौनो शक नहीं ..आपने यह कृतज्ञ पोस्ट दिल्ली छोड़ने की कड़ी में किया है और क्यों करते ..इन्ही के तो भरता श्री हैं न !
*क्यों न करते
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, फुरसत में, घर में।
जवाब देंहटाएंनेट है तो चिंता क्या करनी ??
जवाब देंहटाएंएक क्लिक की दूरी पर तो होते हैं सब !!
मनोज भाई से जब कभी बात हुई हमेशा लगा कि जैसे जमीन से जुड़े किसी बेहतरीन इंसान से बातें कर रहे हों , उनसे बात करना हमेशा सुखद रहा....
जवाब देंहटाएंऔर आप तो उदाहरण ही रहे हैं, स्नेह सीखने के लिए आपसे मिलना ही काफी है ! सलिल का दूर जाना कम से कम मुझे बेहद खलेगा !
शायद दूर रहने पर, महत्व अच्छी तरह पता चलता है ...
आभार तुम्हारे स्नेह के लिए ...
ज़रूरी भी है .... फुर्सत से उन विशेषताओं की चर्चा , जिससे कई लोग अनभिज्ञ होते हैं
जवाब देंहटाएं"दिल ढूंदता है फिर वही ... फुर्सत के ..."
जवाब देंहटाएंमैं खुद को खुशकिस्मत समझता हूँ कि आप दोनों का ही स्नेह और आशीष मुझे सदेव मिलता रहा है ... आप दोनों को प्रणाम !
अच्छा किया मनोज जी की आदतें और उनके व्यक्तितिव पर प्रकाश डाला !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,फ़ुरसत से मीठी यादें बांटते हुए!,,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
ब्लॉग लेखन भी फ़ुरसत का ही काम है। वैसे सलिल जी से एक बार मेरी बात हो चुकी व्हाया शिवम मिश्रा। यूँ ही मित्रता बनी रहे, साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....फुर्सत में मीठी यादों और बातों का सफर करना अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंमुसीबत में शरीफ़ों की शराफ़त कम नहीं होती।
जवाब देंहटाएंसोना टुकड़ा-टुकड़ा हो पर कीमत कम नहीं होती॥
ये दुनियाँ ग़म तो देती है, शरीके-ग़म नहीं होती।
किसी के दूर रहने से मोहब्बत कम नहीं होती ॥
सलिल जइ आज फुर्सत में आपने बहुत मीठी यादें सहेजी हैं ..... मनोज जी के व्यक्तित्त्व का शानदार परिचय , आप कहीं भी जाएँ यह स्नेह बना रहे यही शुभकामना है ....
जवाब देंहटाएंमनोज जी के व्यक्तित्व का शानदार परिचय दिया है आपने. पर मेरा दुर्भाग्य अब तक न आपसे मिलना हुआ न मनोज जी से. पर इस तथाकथित आभासी दुनिया (मुझे तो वास्तविक ही लगती है) में आप दोनों ही मुझे पराये नहीं लगते. तो मुझे तो करण की पंक्तियाँ ही दोहराने का मन कर रहा है.
जवाब देंहटाएंयह भाव , भावनाएं, स्नेह , सम्मान बना रहे.
फुर्सत से, फुर्सत में लिखी गयी बेहद सुन्दर पोस्ट...!
जवाब देंहटाएंनेट पर ही सही आप दोनों का मिलना सदैव होता रहे...!
आप दोनों को मेरा सादर प्रणाम!
शिखा जी ने ठीक ही फ़रमाया, मुझे भी यह दुनिया आभासी नहीं लगती। मेरे लेफ़्ट चेस्ट के एक हिस्से में सलिल भइया और मनोज भइया दोनो के लिये ही सम्मान है। फ़िजिकल दूरी से क्या फ़र्क़ पड़ना....चेस्ट के भीतर से निकलने वाली वेवलेंग्थ तो एक ही रास्ते से गुज़र रही हैं। हाँ कुछ दिन के लिये अस्त-व्यस्त सा रहेगा ...फिर सब कुछ व्यवस्थित हो जायेगा। आप दोनों को मंगलकामनायें।
जवाब देंहटाएं...पहले तो लगा कि मनोज जी ने सलिल जी के बारे में संस्मरण लिखा हो,पर पहले पैरे के बाद मामला साफ़ हो गया |
जवाब देंहटाएं..कुछ साथियों को अभी भी लगता है कि मनोज जी ने सलिल जी के बारे में लिखा है या यह कि मनोज जी दिल्ली में रहते हैं !
आप दोनों की दोस्ती यूँ ही सलामत रहे !
मनोज जी की टिप्पणियों से सम्बंधित घटना दुखद है जिसमें उन्होंने एक मित्र खो दिया .ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो चुका है,पर मैं समझता हूँ कि मित्र केवल टिप्पणी को लेकर नहीं होनी चाहिए.हम किसी मुद्दे पर अलग-अलग विचार तो रख ही सकते हैं |
...बहरहाल सलिलजी आपको नई जगह,नए दोस्त मुबारक हों,अगर हममें कुछ ताब होगी तो भूल के दिखाना !!
@मित्र केवल=मित्रता केवल
हटाएंजब भी कोलकाता जाना होता है मनोज जी से मुलाकात करता हूँ . इतने व्यस्त होते हुए भी उनका फुरसत नामा एकदम ताजा तरीन होता है .हम तो उनके फुरसत नामा को खुराफात नामा बोलते है . बाकी उनकी साफगोई से कोई नाराज होकर आना फुरसत में है तो क्या हुआ. रोचक और भ्रातृत्व पूर्ण फुरसत नामा.
जवाब देंहटाएंअपने सिस्टम में हिन्दी फॉन्ट की समस्या की समस्या के चलते “राजभाषा हिन्दी” सहित अनेक ब्लागस को पढ़ नहीं पाता था। जब यह बात मैंने आदरणीय मनोज भईया को बताई उन्होंने फोन करके मेरी इस समस्या के समाधान में मदद की और जिस सहजता, सरलता और स्नेह के साथ उन्होने मेरा मार्गदर्शन किया वह हमेशा स्मरण रह जाने वाला वाकया है....
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा मधुर यादों के साथ उनका विस्तृत परिचय पाना बड़ा सुखद रहा... आप दोनों को सादर नमन।
सलिल जी ,
जवाब देंहटाएं(१) आप हमारे प्रिय हैं और वे आपके ! अब कहने को क्या शेष रहा !
(२) सप्ताहांत वाली इस फुरसत के सुदीर्घ लम्हों में चाय और बिस्किट के सतत आपूर्तिकर्ता को धन्यवाद नहीं कहना कृतघ्नता होगी ! सो फुरसत की पृष्ठभूमि वाले सहयोगी को हार्दिक धन्यवाद !
आपका आशीष उन तक भी पहुंचा जिन्होंने न सिर्फ चाय-बिस्किट की आपूर्ति की बल्कि अपने हिस्से का समय भी कुर्बान किया!!
हटाएंsalil ji manoj ji ke vyaktitv ke bare me itna kuchh jankar hamara samaany gyan badhaya bahut acchha laga lekin is khushi k sath udasi ka rang bhi de diya aapne apne dilli se prasthan ki khabar suna kar. ab tak ek aasha thi ki kabhi to mil hi lenge aapse ...lekin ye ummeed aaj khtam ho gayi.
जवाब देंहटाएंआज सारे दिन की व्यस्तता में देख भी नहीं पाया कि लोगों ने क्या-क्या कहा इस पोस्ट पर.. और अब जब देखा तो मन सचमुच भर आया.. अपने विदाई समारोह में मैंने कहा था कि अपने जीवन में जितना धन नहीं कमाया, उससे अधिक सम्बन्ध कमाए हैं.. और इस दुनिया के सम्बन्ध तो वैसे भी अनोखे हैं, जिन्हें देखा नहीं, जिनसे मिले नहीं, सब रिश्ते-नाते लगते हैं..
जवाब देंहटाएंएक एक कर धन्यवाद कहाँ तक दूं और वैसे भी प्रत्युत्तर देने में शर्म आती है मुझे.. लिहाजा हाथ जोड़े खडा हूँ आप सबों के सम्मुख.. यहाँ मनोज जी भले ही व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में दिखायी दे रहे हों, मेरे लिए सारे लोग मनोज है... जैसे फिल्म आनद का "मुरारीलाल"!
सलिल जी,इस पोस्ट से मनोज जी के बारे में कुछ नई जानकारियां मिली। दिल्ली छोड़ने से पहले दिल्ली में हुई मुलाकातों को फुरसत में याद करना अच्छा लगा। दिल्ली छोड़ने के बाद भी उम्मीद है आपका यह मिलना-मिलाना यूं ही जारी रहे... इस फुरसत के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंहम तो कुछ कह सकने की स्थिति में ही नहीं है। बस स्पीचलेस ...
जवाब देंहटाएंसलिल सर, मैं भी मनोज जी की तरह ही स्पीचलेस हूं, जबकि यह पोस्ट मेरे लिए नहीं लिखा गया है. अभी कुछ अरसे से मैं हर बार मनोज जी के साथ आपके पास आया हूं और कई गंभीर चर्चा और मुबाहिसो का साक्षी रहा हूं. आप जा रहे हैं, यह मेरे लिए के अभिभावक का दूर होने जैसा है. मनोज जी से मिलने के बाद जब तक वे नहीं बताते, लगता नहीं है कि वे उच्च पदस्थ अधिकारी हैं. सरकारी सेवा में मुझे भी दशक होने वाला है लेकिन इतने सहज अधिकारी मैंने दूसरा नहीं देखा. राजभाषा जिसे दोयम दर्जे का काम मना जाता है सरकार में, उसके प्रति उनकी प्रतिबद्धता, उनका लगन देख कर मैं प्रेरणा भी ले रहा हूं. मनोज जी पढ़ते भी बहुत हैं.
जवाब देंहटाएंमैं तो अपर्चुनिस्ट हूं. हर किसी से कुछ न कुछ सीख ही लेता हूं. मनोज जी और आपसे बहुत कुछ सीखा हूं. क्या और कितना फिर कभी.
आपकी कमी खलेगी सलिल सर...
अरुण जी और राधा रमण जी, आप दोनों का साथ बिठाये लम्हे भी साथ लेकर जा रहा हूँ.. रिश्ते मेरे लिए बहुत मानी रखते हैं.. पूंजी हैं मेरी.. और आप तो सचमुच बच्चे की तरह रहे हैं हम-दोनों के लिए!!
हटाएंअच्छा लगा जानकर ....स्नेह की मिठास सदा बनी रहे .....
जवाब देंहटाएंशर्मीले लजीले हैं अपने मनोज जी आज सलिल भाई ने भी अपनी मोहर लगा दी .ये स्साली डिग्रियां भी हिन्दुस्तान में बहुत तंग करतीं हैं .वरना हम भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ हिंदी अधिकारी होते काम होता विज्ञान साहित्य रचना .लेकिन हम थे M.Sc(Physics),sagaur .भले हम तब तक हिंदी लोकप्रिय विज्ञान लेखन में हाथ साफ़ कर चुके थे .वैज्ञानिक (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ,त्रोम्बे का प्रकाशन ) में भी एक शोध पात्र छपा था . (१९८३ में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विज्ञान निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरूस्कार , हमने बाद में दूसरी मर्तबा ८-१० साल बाद दोबारा प्रथम पच्चीस प्रशंशा प्राप्त निबंध में स्थान पाया .लेकिन साहब हिन्दुस्तान में सलिल भाई डिग्री की बड़ी एहमियत है . आपने हमारी दुखती रग पे हाथ रख दिया .यकीन मानिए बाद M.Sc भी हम हिंदी साहित्य में Ph .D करना चाहते थे डॉ राम रतन भटनागर साहब के नीचे फिर वही सवाल हमारे पास हिंदी साहित्य की बेसिक डिग्री नहीं थी.यहाँ आप होबी का विकास कर सकतें हैं और होबी की कोई सीमा नहीं होती विषय की होती है लेकिन कौन पूछता है सीमाओं और संभावनाओं को यहाँ .
जवाब देंहटाएंदो अन्तरंग दोष्टों की दोषती से अभिभूत हुए .
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए
शर्मीले लजीले हैं अपने मनोज जी आज सलिल भाई ने भी अपनी मोहर लगा दी .ये स्साली डिग्रियां भी हिन्दुस्तान में बहुत तंग करतीं हैं .वरना हम भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ हिंदी अधिकारी होते काम होता विज्ञान साहित्य रचना .लेकिन हम थे M.Sc(Physics),sagaur .भले हम तब तक हिंदी लोकप्रिय विज्ञान लेखन में हाथ साफ़ कर चुके थे .वैज्ञानिक (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ,त्रोम्बे का प्रकाशन ) में भी एक शोध पात्र छपा था . (१९८३ में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विज्ञान निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरूस्कार , हमने बाद में दूसरी मर्तबा ८-१० साल बाद दोबारा प्रथम पच्चीस प्रशंशा प्राप्त निबंध में स्थान पाया .लेकिन साहब हिन्दुस्तान में सलिल भाई डिग्री की बड़ी एहमियत है . आपने हमारी दुखती रग पे हाथ रख दिया .यकीन मानिए बाद M.Sc भी हम हिंदी साहित्य में Ph .D करना चाहते थे डॉ राम रतन भटनागर साहब के नीचे फिर वही सवाल हमारे पास हिंदी साहित्य की बेसिक डिग्री नहीं थी.यहाँ आप होबी का विकास कर सकतें हैं और होबी की कोई सीमा नहीं होती विषय की होती है लेकिन कौन पूछता है सीमाओं और संभावनाओं को यहाँ .
जवाब देंहटाएंदो अन्तरंग दोष्टों की दोषती से अभिभूत हुए .
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
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लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
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इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए
शर्मीले लजीले हैं अपने मनोज जी आज सलिल भाई ने भी अपनी मोहर लगा दी .ये स्साली डिग्रियां भी हिन्दुस्तान में बहुत तंग करतीं हैं .वरना हम भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ हिंदी अधिकारी होते काम होता विज्ञान साहित्य रचना .लेकिन हम थे M.Sc(Physics),sagaur .भले हम तब तक हिंदी लोकप्रिय विज्ञान लेखन में हाथ साफ़ कर चुके थे .वैज्ञानिक (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ,त्रोम्बे का प्रकाशन ) में भी एक शोध पात्र छपा था . (१९८३ में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विज्ञान निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरूस्कार , हमने बाद में दूसरी मर्तबा ८-१० साल बाद दोबारा प्रथम पच्चीस प्रशंशा प्राप्त निबंध में स्थान पाया .लेकिन साहब हिन्दुस्तान में सलिल भाई डिग्री की बड़ी एहमियत है . आपने हमारी दुखती रग पे हाथ रख दिया .यकीन मानिए बाद M.Sc भी हम हिंदी साहित्य में Ph .D करना चाहते थे डॉ राम रतन भटनागर साहब के नीचे फिर वही सवाल हमारे पास हिंदी साहित्य की बेसिक डिग्री नहीं थी.यहाँ आप होबी का विकास कर सकतें हैं और होबी की कोई सीमा नहीं होती विषय की होती है लेकिन कौन पूछता है सीमाओं और संभावनाओं को यहाँ .
जवाब देंहटाएंदो अन्तरंग दोष्टों की दोषती से अभिभूत हुए .
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए
शर्मीले लजीले हैं अपने मनोज जी आज सलिल भाई ने भी अपनी मोहर लगा दी .ये स्साली डिग्रियां भी हिन्दुस्तान में बहुत तंग करतीं हैं .वरना हम भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ हिंदी अधिकारी होते काम होता विज्ञान साहित्य रचना .लेकिन हम थे M.Sc(Physics),sagaur .भले हम तब तक हिंदी लोकप्रिय विज्ञान लेखन में हाथ साफ़ कर चुके थे .वैज्ञानिक (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ,त्रोम्बे का प्रकाशन ) में भी एक शोध पात्र छपा था . (१९८३ में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विज्ञान निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरूस्कार , हमने बाद में दूसरी मर्तबा ८-१० साल बाद दोबारा प्रथम पच्चीस प्रशंशा प्राप्त निबंध में स्थान पाया .लेकिन साहब हिन्दुस्तान में सलिल भाई डिग्री की बड़ी एहमियत है . आपने हमारी दुखती रग पे हाथ रख दिया .यकीन मानिए बाद M.Sc भी हम हिंदी साहित्य में Ph .D करना चाहते थे डॉ राम रतन भटनागर साहब के नीचे फिर वही सवाल हमारे पास हिंदी साहित्य की बेसिक डिग्री नहीं थी.यहाँ आप होबी का विकास कर सकतें हैं और होबी की कोई सीमा नहीं होती विषय की होती है लेकिन कौन पूछता है सीमाओं और संभावनाओं को यहाँ .
जवाब देंहटाएंदो अन्तरंग दोष्टों की दोषती से अभिभूत हुए .
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए
रिश्तों की ये मिठास अंतस से महसूस करने वाली है ...
जवाब देंहटाएंप्रेम और स्नेह के ऐसे रिश्ते बने रहने चाहियें ...
aapki aur manoj jee ke rishton ki mithas anupam hai.....hamesha bani rahe......
जवाब देंहटाएंसलिल भैया...
जवाब देंहटाएंये वाला फोटू तो वो वाले फोटू से भी अच्छा है। अब तो सभी आपको जान पहिचान चुके हैं सो फोटू भी बदल डालिये। दुनियाँ को पता तो चले कि बिहारी, खाली लालू जी के चेहरे वाले नहीं बल्कि सलिल भैया जैसे सुंदर मुखड़े वाले भी होते हैं।:) अली सा ने भी सेव के फूल से सुंदर अपना फोटू लगा लिया है तब आप काहे शर्माते हैं? :)
इस पोस्ट को पढ़कर शुरू-शुरू में तो मैं भी गफलतिया गया था कि कौन किसके बारे में लिख रहा है! लेकिन जल्दी ही जान गया कि संस्पेंस में रखकर अंत में धमाका करने की किसकी आदत है।:)
मनोज जी कितने सज्जन और विशाल ह्रदय के धनी हैं यह तो मैं इसी बात से अंदाजा लगा लेता हूँ कि बड़े अधिकारी होकर भी वे हमेशा मेरे लिखे को पढ़कर मुझे उत्साहित करते रहते हैं, जबकि मैं इस ब्लॉग में बहुत कम आ पाता हूँ।
शेष आपने बताया तो मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। मेरे मन में उनकी ऐसी ही छवि थी।
बड़े भाई!
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह के सानिध्य में बहुत कुछ जानने समझने और सीखने को मिलता रहा है। नेट है, फोन है, और अन्य भी साधन हैं, हम मिलते तो अवश्य रहेंगे, दुख-सुख साझा करते रहेंगे। भावुकता से भरी यह पोस्ट मेरे लिए तो एक उपहार से कम नहीं है। लोग दूसरों को सहज स्वीकार नहीं कर पाते। आपने तो मेरी तारीफ़ के पुल ही बांध दिए हैं, जिसका मैं कत्तई हक़दार नहीं हूं। एक शे’र में ही अपनी बात कह देता हूं, बाक़ी आप समझ ही जाएंगे -
इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुशमनी बढ़ जायेगी
आपको धन्यवाद कहने के लिए शब्द नहीं है, लेकिन भावनाएं आपके आभार से सरोबार है।
आपसे मैं अकसर कहा करता रहा हूं, कि आपने तो रुलाने का ठीका ही ले रखा है। इस बार भी।
अब तो यह कहने का वक़्त आ ही गया है कि ..
नई जगह, नया परिवेश और नए कार्यालय के माहौल में आप तरक्की के हर उस आयाम को छुएं जिसकी आपने कल्पना कर रखी हो। ईश्वर आपको और आपके परिवार को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करें।
कल से आपके चाकरी जीवन की एक नई यात्रा फिर से शुरू होती है। आपकी ये यात्रा मंगलमय और खुशियों से भरी हो।
इस पोस्ट पार जिन मित्रों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं मैं उन सभी का तहे दिल से आभार प्रकट करता हूं। जितना कुछ मेरे बारे में कहा गया है, पोस्ट लेखक या टिप्पणी कर्ता द्वारा, उसका मैं रत्ती भर भी नहीं हूं। हां जो हूं उससे बेहतर बनने की मेरी कोशिश ज़रूर ज़ारी रहेगी।
जवाब देंहटाएंउम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंस्नेह में भीगी पोस्ट। ये मधुर संबंध हमेशा बने रहें...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है- नए संबंधों को बनते और उसकी मर्यादा का निर्वाह होते देखना।
जवाब देंहटाएं