प्यास औंधे मुंह पड़ी
है घाट पर
श्यामनारायण मिश्र
शांति के
शतदल-कमल तोड़े गए
सभ्यता की इस
पुरानी झील से।
लोग जो
ख़ुशबू गए थे खोजने
लौटकर आए नहीं
तहसील से।
चलो उल्टे पांव भागें
यह नगर रंगीन अजगर
है।
होम होने के लिए
आए जहां हम
यज्ञ की बेदी नहीं
बारूद का घर है।
रोशनी के जश्न की
ज़िद में हुए वंचित
द्वार पर लटकी हुई
कंदील से।
हवा-आंधी बहुत देखी
धूल है बस धूल है,
बादल नहीं।
प्यास औंधे मुंह पड़ी है घाट पर
इस कुएं में बूंद
भर भी जल नहीं।
दूध की
अंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।
*** *** ***
चित्र : आभार
गूगल सर्च
अंतिम दो पंक्तियाँ झटके में प्रभावित करती है..पूरी कविता कितना कुछ कह जाती है.. मिश्र जी को पढवाने के लिए ह्रदय से आभार..
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर एवं गहन गीत...............
शुक्रिया मनोज जी.
सादर
अनु
वाह सुन्दर कविता :) मानसरोवर का हो गया ध्वंस, चीलों ने मार दिया हंस !
जवाब देंहटाएंलोग जो
जवाब देंहटाएंख़ुशबू गए थे खोजने
लौटकर आए नहीं तहसील से।
....बेहतरीन , बहुत ही सुंदर , मुझे तो सारी पंक्तियां अच्छी लगीं । आनंद आ गया
कोई तो आकाश को खाली कर दे इन चीलों से..
जवाब देंहटाएंशांति के
जवाब देंहटाएंशतदल-कमल तोड़े गए
सभ्यता की इस पुरानी झील से।
लोग जो
ख़ुशबू गए थे खोजने
लौटकर आए नहीं तहसील से।....... एक खालीपन सा इंतज़ार है अंतर्द्वंद के सन्नाटे में
बेहतरीन सुंदर अर्थपूर्ण गीत....
जवाब देंहटाएंख़ुशबू गए थे खोजने
लौटकर आए नहीं तहसील से।
वाह!यह पंक्तियाँ पढ़ श्रीलाल शुक्ल ‘रागदरबारी’ की याद आ गई जहां वे कहते हैं – “हाथी आते है जाते हैं, ऊंट गोते खाते हैं” (जैसा याद आ रहा है)
सादर आभार।
bahut hee shandaar..aisi rachnaaon ko padhkar hee sahitya ke prati rujhaan kaa beej hriday me ropit ho paata hai...sader pranaam ke sath
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई |
अंतिम नदी का पता जिसको था,
जवाब देंहटाएंमर गया वह हंस लड़कर चील से।
भावपूर्ण रचना,पढवाने के लिये आभार,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
बहुत भाव पूर्ण गीत पढ़वाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, बेहद उम्दा पोस्ट अनुपम भाव संयोजन पूरी रचना ही इतनी खूबसूरत है की इसमें से किन्हीं पंक्तियों को चुनकर कुछ विशेष कह पाना मेरे लिए संभव नहीं :)बस इतना ही कह सकती हूँ याथार्थ का आईना दिखती अत्यंत प्रभावशाली रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंदूध की
जवाब देंहटाएंअंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।
वाह गज़ब की गहराई है इनपंक्तियों में जाने कितनी बार पढ़ गई.
हंस मिट गए, चील, अजगर बाकी हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना. यथार्थ का एक प्रभावशाली चित्रण .
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर की जायेगी
श्याम नारायण मिश्र को आप निरंतर प्रकाशित कर रहें हैं। बहुत अच्छा लगता है उन्हें पढ़ कर। इस कविता में उल्टबांसियां हैं। सुंदर...अतिसुंदर।
जवाब देंहटाएंचलो उल्टे पांव भागें
जवाब देंहटाएंयह नगर रंगीन अजगर है।
शहरों की रंगीनियत से उपजी चकाचौंध के पीछे की सच्चाई इस सुंदर गीत के माध्यम से पेश कर दी. बहुत सुंदर.
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंwah......
जवाब देंहटाएंमिश्र जी की बहुत सुंदर रचना ..पढ़वाने का आभार ..
जवाब देंहटाएंहवा-आंधी बहुत देखी
जवाब देंहटाएंधूल है बस धूल है, बादल नहीं।
प्यास औंधे मुंह पड़ी है घाट पर
इस कुएं में बूंद भर भी जल नहीं।
दूध की
अंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।
मिश्र जी को पढवाने के लिए ह्रदय से आभार..
मेरी टिप्पणी कहां गई जी?
जवाब देंहटाएंशांति के
जवाब देंहटाएंशतदल-कमल तोड़े गए
सभ्यता की इस पुरानी झील से।
लोग जो
ख़ुशबू गए थे खोजने
लौटकर आए नहीं तहसील से।
लील गया सब कुछ को शहर शहरीकरण की आंधी ....बढिया प्रस्तुति आज भी समकालीन ...
......वीरुभाई परदेसिया .४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ ,१८८
दूध की
जवाब देंहटाएंअंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।....
आज के हालत का सुन्दर और प्रभावशाली चित्रण है इन पंक्तियों में..... बढ़िया गीत....
आपसे कई बार अनुरोध किया है कि इन गीतों को संकलन में प्रस्तुत करने की अनुमति दीजिये...
अरुण जी ‘एनी डे’! यह ब्लॉग आपका ही है।
हटाएंये काल जै रचनाएं आप ही पढ़ वा रहें हैं .शुक्रिया ज़नाब का .
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना पढवाने का आभार !
जवाब देंहटाएंदेर से आना हुआ माफ़ी ....
इस रचना कि प्रस्तुति पर आभार आपका ...
जवाब देंहटाएंहमने भी गोटा लगा लिया. बड़ी गहरी लगी.
जवाब देंहटाएंsunder rachnayein padaney key liye abhar
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना ... गहरी ...
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