छेनी को आदत है
श्यामनारायण मिश्र
दूर कन्दराओं से
पुरखों के दिए हुए
आदिम गण-गोत लिये
हम चचेरों के
शहर पहुंचे।
जीवन की जोत लिये
हम अंधेरों के
शहर पहुंचे।
कहीं किसी कोने में
सिर्फ़ सांस लेने को
सांसत से निकलें तो
हम अपना सूर्य उगा लेंगे।
सदियों से कोल्हू में
जुते हुए लोगों के
माथे में सूर्यमुखी मंत्र जगा
देंगे।
पत्थर की घाटी से
रिसे हुए जीवन के
आदिम रस-स्रोत लिए
हम सपेरों के
शहर पहुंचे।
सारी सृजनात्मक
पीड़ाएं पीकर हम
फेकेंगे मंच पर उजाले
चाह नहीं परदे पर दिखने की।
पत्थर पर चली हुई
छेनी को आदत है
कठिनाई काट-काटकर
अपना इतिहास स्वयं लिखने की।
प्रलय की तरंगों पर
तिरे हुए पौरुष के
आदिम जल पोत लिए
हम मछेरों के
शहर पहुंचे।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
शुभकामनाएं ||
जवाब देंहटाएंआभार |
कष्ट बिना सृजन नहीं....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत बढ़िया......
जवाब देंहटाएंसादर.
रिसे हुए जीवन के
जवाब देंहटाएंआदिम रस-स्रोत लिए
हम सपेरों के
शहर पहुंचे।
बहुत सुंदर गीत .... शहरों का सही खाका खींच दिया है
बहुत ही सुन्दर कविता, छेनी लगी रहती है अपना स्वप्न गढ़ने में।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत... मन को छू गए...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवं सार्थक सृजन यही हो है ज़िंदगी की का असली रूप ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंप्रलय की तरंगों पर
जवाब देंहटाएंतिरे हुए पौरुष के
आदिम जल पोत लिए
हम मछेरों के
शहर पहुंचे।
सुन्दर कविता.
बहुत ही सुन्दर.. लयात्मक और भाव प्रधान!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंमिश्र जी के गीत की शब्द-योजना ऐसी होती है कि भाषा बिलकुल ताजी लगती है। यह गीत भी इसका अपवाद नही है।
जवाब देंहटाएंवाह!!!!बहुत सुंदर भाव लिए प्रभावी रचना,..
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
पत्थर पर चली हुई
जवाब देंहटाएंछेनी को आदत है
कठिनाई काट-काटकर
अपना इतिहास स्वयं लिखने की…………बहुत सुन्दर व प्रभावी रचना
सारी सृजनात्मक
जवाब देंहटाएंपीड़ाएं पीकर हम
फेकेंगे मंच पर उजाले
संकल्पनात्मक स्वर की रचना
sundar
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएं