सूरज की बात सुनो
श्यामनारायण मिश्र
एक नदी क्या सूखी
बालू में फंसी कई नावें।
मछुआरे !
हिलक-हिलक रोने से होगा क्या ?
सूरज की बात तो सुनो।
जो पहाड़ टूटा है
हिम का है पिघलेगा
तुम टूटे जाल तो बुनो।
इन टोपी वालों की
भीड़ गुज़र जाने दो
बच्चों से कहो नहीं नारे दुहरावें।
बालू में फंसी पड़ी नावें।
एक नदी में कितनी नावें,
जवाब देंहटाएंजीवन की गति में उतरावें..
पहले खुद ही समझ लेंय,
जवाब देंहटाएंबच्चों को फिर समुझावें !
छोटी मगर भावपूर्ण !
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित रचना है.
जवाब देंहटाएंसूरज की बात ही तो नहीं सुनता कोई ... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजो पहाड़ टूटा है
जवाब देंहटाएंहिम का है पिघलेगा....
टोपी वालों की भीड़... वाह...
बहुत गहरे संकेत और बिम्ब...
सुन्दर रचना पढवाने के लिए सादर आभार सर...
मिश्र जी की एक और प्रभावशाली रचना.. अनोखे बिम्बों को समायोजित कर एक अद्भुत असर पैदा करती है!! आभार आपका!!
जवाब देंहटाएंपर सुने कौन ..सारगर्भित सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंजो पहाड़ टूटा है
जवाब देंहटाएंहिम का है पिघलेगा
तुम टूटे जाल तो बुनो।
...sundar sarthak prastuti
मिश्रा जी की रचना पसंद आई.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह यह भी एक सार्थक रचना है !
जवाब देंहटाएंमिश्र जी की हर रचना में एक अनूठापन पढने को मिलता है !
आभार टिप्पणी के लिये !
गहरे भाव ....अपना-अपना मतलब साधे !!
जवाब देंहटाएंआभार!
अर्थपूर्ण और बेहतरीन रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति ,...
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी की रचना छोटीपर अच्छी लगी ,....
MY NEW POST ...कामयाबी...