गांव की ललक
श्यामनारायण मिश्र
अम्मा की डाली आदत सी
पुरखों से मिली विरासत सी
छोड़ नहीं पाता हूं
गांव की ललक।
धड़कन में हंसों का शोर,
आंखों में लहराता ताल।
सपनों में तैरती रही,
मछुआरी नौका की पाल।
हंसी में नहीं
गगरी के
कंठ की छलक।
दफ़्तर में ढूंढ़ता कुटुम्ब,
अफसर में दादा का नेह-छोह।
देख चापलूसों की भीड़,
उबल - उबल पड़ता विद्रोह।
पानी में आहत
पुरुषार्थ की झलक।
मंडी में खेत के निशान,
कोल्हू में सरसों की गंध।
थका - थका ढूंढ़ता रहा,
कविता में विरहा के छंद।
मिली नहीं चश्मे
भींगती पलक।
मिट्टी की खुशबू लिए पोस्ट...... सच में नहीं छूटती गाँव की ललक
जवाब देंहटाएंगाँव का पूरा दृश्य दिखा दिया .... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगांव की ललक तो बरक़रार ही रहती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
गाँव की याद आपकी हर पंक्ति के साथ आयी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर दृश्य दिखाती पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमंडी में खेत के निशान,
जवाब देंहटाएंकोल्हू में सरसों की गंध।
थका - थका ढूंढ़ता रहा,
कविता में विरहा के छंद।
मिली नहीं चश्मे
भींगती पलक।
Wah! Kya baat hai!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं..शिव रात्रि पर हार्दिक बधाई..
बहुत सुन्दर गीत पढवाने के लिए सादर आभार सर.
जवाब देंहटाएंगांव की ललक को छोड़ पाना तो सच में मुश्किल होता है ...
जवाब देंहटाएंअपने बचपन का घर भला कौन भूल पाता है। अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंइतना कुछ जिन्हें यादकर गाँव याद आता है... 'गाँव की ललक' शायद फिर से लौट चलने का आह्वान है. एक पुकार जो कहती है आ अब लौट चलें!!
जवाब देंहटाएंमिश्र जी को पढ़ना हमेशा एहसास कराता है कि हमने क्या खोया है!!
अम्मा की डाली आदत सी
जवाब देंहटाएंपुरखों से मिली विरासत सी
छोड़ नहीं पाता हूं
गांव की ललक।
sundar rachna ........
सुन्दर. इसीलिये हम बीच बीच में गाँव घूम आते हैं.
जवाब देंहटाएंअध्बुध शैली में लिखा सुन्दर गीत ...
जवाब देंहटाएंमधुर स्मृतियाँ गाँव की।
जवाब देंहटाएंमधुर स्मृतियाँ गाँव की।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव संयोजन एवं मिट्टी की खुशबू से सुसजित अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंमंडी में खेत के निशान,
जवाब देंहटाएंकोल्हू में सरसों की गंध।
थका - थका ढूंढ़ता रहा,
कविता में विरहा के छंद।
मिली नहीं चश्मे
भींगती पलक।
वाह !जहां इतने सुन्दर भाव हों वहां सिर्फ वाह ही नकालता है मुंह से ,वाह क्या बात है .
अपना प्यारा गांव याद आ गया।
जवाब देंहटाएंवो पहाड़ पर बैठ शाम गुजारना याद आ गया।
gaav ki yaadein to aisi hi hoti hai...achchi prastuti
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