किरणों की आहट से
श्यामनारायण मिश्र
एक और युग
डूबा उथले में
तिनके कुछ काम नहीं आए।
संज्ञाएं
खेल रहीं नाटक संबंधों के।
परदों पर
नैन टिके सावन के अंधों के।
संहिताओं ने
घिसे संवाद दुहराए।
मंचों से दूर
एक रोशनी
नए-नए छंद लिख रही।
गली-गली
गाने को कल
तोतली जुबान सिख रही।
किरणों की आहट से
कोल्हू के बैल तिलमिलाए।
किरणों की आहट से सारा विश्व गतिमान हो जाता है...सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंवाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंNEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
किरणों की आहट से
जवाब देंहटाएंकोल्हू के बैल तिलमिलाए !
vaah bahut sundar ....
किरणों की आहट से सारा विश्व क्या प्रकृति भी जाग जाती है...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसंज्ञाएं
जवाब देंहटाएंखेल रहीं नाटक संबंधों के।
परदों पर
नैन टिके सावन के अंधों के।
....बहुत सुंदर प्रस्तुति....
सुन्दर, मनमोहक और मुग्ध करती रचना!!
जवाब देंहटाएंअनावश्यक परम्पराओं और रुढ़िवादिता से विद्रोह का बिगुल है यह नवगीत। इसे पहले सुनने का अवसर नहीं मिला।
जवाब देंहटाएंइन किरणों की आहात से जीवन चलायमान हो रहा है .. लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंकिरणों की आहट से
जवाब देंहटाएंकोल्हू के बैल तिलमिलाए
एक दूरंदेशी संदेश...
कम शब्दों में अधिक भाव !
जवाब देंहटाएंनये बिम्बों से किरणों की आहट , एक अनूठा चित्र
जवाब देंहटाएंवाह !!!!!!!!!
बहुत सुन्दर रचना ...
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