सूर्यमुखी छंद लिये भटके
श्यामनारायण मिश्र
अनचाहे चेहरे आवरण हुए
दंभों ने लिखी भूमिका
अपनी ही गफलत में
बिना पढ़े पन्नों से
मुड़े रहे हम।
पोर-पोर पंजों की टीस
कुहनी से कंधों तक
पिंडली से रीढ़ तक चढ़ी।
जिस-तिसकी की
चिउंटी से चीथड़े हुई
छाती से कील न कढ़ी।
हाथ कटे जगन्नाथ
लकदक रथयात्रा
रोगन से लिपे पुते खड़खड़िया ढांचे में
लोहे के एक मात्र
धुरे रहे हम।
माथे में सूर्यमुखी छंद लिये भटके
राहु केतु मुश्किल
से उतरे।
परती में उग आये
गद्यों के गुल्म गाछ
कथ्यों पर तने रहे
आक्षितिजे कोहरे।
हाथों में हाथ धरे
हुक्कों में लीद भरे
फूंकते अतीत की
अखबारी बैठक से
जुड़े रहे हम।
अखबारी बैठक से
जवाब देंहटाएंजुड़े रहे हम।
ऽ जरूरी है यह जुड़ाव सरजी यही तो नहीं रहा अब..
बिना पढ़े पन्नों से
जवाब देंहटाएंमुड़े रहे हम।
सुन्दर रचना पढवाने के लिए सादर आभार सर...
बेहतरीन बिम्बों से भावों के अर्थ सजाये हैं...
जवाब देंहटाएंलोग जो हैं अब तलक मुझसे मिले,शब्द से रिश्तो में अंतर आ रहा है
जवाब देंहटाएंअर्थ अपनी जिन्दगी का ढूँढ़ने में,व्यर्थ ही जीवन यहाँ पे जा रहा है
अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना पढवाने के लिए आभार..
मनोज जी,बहुत दिनों से मेरी पोस्ट पर नही आ रहे,जबकि मै आपका
न्य्मित पाठक और फालोवर हूँ,आइये आपका स्वागत है,.....
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
अद्भुत बिंबो का प्रयोग है इस रचना में ॥सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपोर-पोर पंजों की टीस
जवाब देंहटाएंकुहनी से कंधों तक
पिंडली से रीढ़ तक चढ़ी।
जिस-तिसकी की
चिउंटी से चीथड़े हुई
छाती से कील न कढ़ी।
प्रभावशाली विम्ब प्रयोग, एक नवीन शैली के साथ.
हाथ कटे जगन्नाथ
जवाब देंहटाएंलकदक रथयात्रा
रोगन से लिपे पुते खड़खड़िया ढांचे में
लोहे के एक मात्र
धुरे रहे हम।
जबर्दस्त्त.
मुग्ध करते हैं ये नवगीत...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर है नवगीत.
जवाब देंहटाएंअध्बुध ... नवीन बिम्बों से सजी ... मन को मोह लेती है ये रचना ...
जवाब देंहटाएंwah....bahut sunder.....
जवाब देंहटाएंअतीत में वर्तमान की तलाश के स्वरूप का अच्छा चित्रण है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बिम्ब और अद्भुत शाब्दिक संयोजन ......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बिम्ब ......
जवाब देंहटाएंati sundar...abhar
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