गांधी और गांधीवाद
प्रेरक प्रसंग : कुर्ता क्यों नहीं पहनते?
1919-20 में गांधीजी देश
के सबसे बड़े राजनैतिक नेता बन गए। आपने आचार-विचार
से उन्होंने लोगों को मोहित कर रखा था। लोग उन्हें ‘महात्मा’ के रूप में श्रद्धा और भक्ति अर्पित करते थे। स्वेच्छा से
अपनाई हुई गरीबी, सादगी, विनम्रता और साधुता आदि गुणों के कारण वह कोई
ऐसे अतीतकालीन ऋषि प्रतीत होते थे।
गांधी जी की हर
बात किसी खास मकसद से होती थी। उनके कपड़ों के फ़र्क़ को ही देखें, तो उनके जीवन की
क्रांति समझ में आ जाएगी। जब वे बैरिस्टर थे, तब एकदम यूरोपियन पोशाक पहनते थे।
बाद में उन्होंने उसका त्याग कर दिया। अफ़्रीका में सत्याग्रह के समय सत्याग्रही
पोशाक धारण करने लगे। काठियावाड़ी गांधी जब भारत लौटे, तब काठियावाड़ की पारंपरिक
पगड़ी धारण करते थे, धोती पहनते थे। जब उन्हें यह ख्याल आया कि एक पगड़ी में कई
टोपियां बन सकती हैं, तब वे टोपी पहनने
लगे। इसी टोपी को गांधी टोपी कहा जाने लगा।
फिर उन्होंने
कुर्ता और टोपी का त्याग भी कर दिया। केवल एक पंछिया पहनकर ही रहा करते थे। यह
पंछिया पहनकर ही वे लंदन में सम्राट पंचम जॉर्ज से मिलने उनके राजमहल गए थे। इसे
देखकर चर्चिल नाराज हो गए थे। लेकिन उस महात्मा की आत्मा तो ग़रीब से ग़रीब लोगों से
एकरूप होने के लिए छटपटाती रहती थी।
एक बार गांधी जी
एक स्कूल के किसी कार्यक्रम में गए थे। महात्मा तो बड़े ही विनोदी स्वभाव के थे।
छात्रों के साथ हंसी-मज़ाक़ चल रहा था।
एक लड़के ने प्रश्न किया, “आपने कुर्ता
क्यों नहीं पहना है? मैं अपनी मां से
कहूं क्या? वह कुर्ता सी
देगी। आप पहनेंगे न? मेरी मां के हाथ
का सिला कुर्ता आप पहनेंगे?”
बापू ने कहा, “ज़रूर पहनेंगे। लेकिन एक शर्त है बेटा! मैं कोई अकेला नहीं हूं।”
बच्चे को
उत्सुकता हुई, पूछा, “तब और कितने चाहिए? मां दो सी देगी।”
बापू ने जवाब
दिया, “बेटा, मेरे चालीस करोड़ भाई-बहन हैं। चालीस करोड़ लोगों के बदन पर कपड़ा आएगा, तब मेरे लिए भी कुर्ता चलेगा। तुम्हारी मां
चालीस करोड़ कुर्ते सी देंगी?”
बापू ने बच्चे
की पीठ प्यार से थपथपाई और वहां से चल दिए। विद्यालय के गुरु और छात्र अपनी आंखों
के सामने राष्ट्र के दरिद्रनारायण को देखकर स्तम्भित रह गए। बापू राष्ट्र के साथ
एकरूप हुए थे।
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मनोज कुमार
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