शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

शिवस्वरोदय – 73


शिवस्वरोदय 73
आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में शिवस्वरोदय का समापन हुआ। यह निश्चित किया गया था कि कुछ ऐसे पहलुओं पर चर्चा की जाय, जिनका बिना किसी गुरु के अभ्यास किया जा सकता है और वे निरापद तथा लाभप्रद भी हो। इसी उद्देश्य से यह अंक लिखा जा रहा है। जबतक सक्षम गुरु न मिल जाय या गहन साधना करने की उत्कण्ठा न हो, इस विज्ञान में बताई गयी निम्नलिखित बातों का नियमित पालन किया जा सकता है। इससे आपको दैनिक जीवन के कार्यों में सफलता मिलेगी, आपके आत्मविश्वास का स्तर काफी ऊँचा रहेगा, हीन भावना से मुक्त रहेंगे और आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा।   
1.     प्रातः उठकर विस्तर पर ही बैठकर आँख बन्द किए हुए पता करें कि किस नाक से साँस चल रही है। यदि बायीं नाक से साँस चल रही हो, तो दक्षिण या पश्चिम की ओर मुँह कर लें। यदि दाहिनी नाक से साँस चल रही हो, तो उत्तर या पूर्व की ओर मुँह करके बैठ जाएँ। फिर जिस नाक से साँस चल रही है, उस हाथ की हथेली से उस ओर का चेहरा स्पर्श करें।
2.    उक्त कार्य करते समय दाहिने स्वर का प्रवाह हो, तो सूर्य का ध्यान करते हुए अनुभव करें कि सूर्य की किरणें आकर आपके हृदय में प्रवेश कर आपके शरीर को शक्ति प्रदान कर रही हैं। यदि बाएँ स्वर का प्रवाह हो, तो पूर्णिमा के चन्द्रमा का ध्यान करें और अनुभव करें कि चन्द्रमा की किरणें आपके हृदय में प्रवेश कर रही हैं और अमृत उड़ेल रही हैं।
3.    इसके बाद दोनों हाथेलियों को आवाहनी मुद्रा में एक साथ मिलाकर आँखें खोलें और जिस नाक से स्वर चल रहा है, उस हाथ की हथेली की तर्जनी उँगली के मूल को ध्यान केंद्रित करें, फिर हाथ मे निवास करने वाले देवी-देवताओं का दर्शन करने का प्रयास करें और साथ में निम्नलिखित श्लोक पढ़ते रहें-
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्द प्रभाते करदर्शनम्।।
अर्थात कर (हाथ) के अग्र भाग में लक्ष्मी निवास करती हैं, हाथ के बीच में माँ सरस्वती और हाथ के मूल में स्वयं गोविन्द निवास करते हैं।
4.    तत्पश्चात् निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण करते हुए माँ पृथ्वी का स्मरण करें और साथ में पीले रंग की वर्गाकृति (तन्त्र और योग में पृथ्वी का बताया गया स्वरूप) का ध्यान करें-
समुद्रवसने    देवि     पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।
फिर जो स्वर चल रहा हो, उस हाथ से माता पृथ्वी का स्पर्श करें और वही पैर जमीन पर रखकर विस्तर से नीचे उतरें।
इसके दूसरे भाग में अपनी दिनचर्या के निम्नलिखित कार्य स्वर के अनुसार करें-
1.     शौच सदा दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में करें और लघुशंका (मूत्रत्याग) बाएँ स्वर के प्रवाहकाल में।
2.    भोजन दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में करें और भोजन के तुरन्त बाद 10-15 मिनट तक बाईँ करवट लेटें।
3.    पानी सदा बाएँ स्वर के प्रवाह काल में पिएँ।
4.    दाहिने स्वर के प्रवाह काल में सोएँ और बाएँ स्वर के प्रवाह काल में उठें।
स्वरनिज्ञान की दृष्टि से निम्नलिखत कार्य स्वर के अनुसार करने पर शुभ परिणाम देखने को मिलते हैं-
1.     घर से बाहर जाते समय जो स्वर चल रहा हो, उसी पैर से दरवाजे से बाहर पहला कदम रखकर जाएँ।
2.    दूसरों के घर में प्रवेश के समय दाहिने स्वर का प्रवाह काल उत्तम होता है।
3.    जन-सभा को सम्बोधित करने या अध्ययन का प्रारम्भ करने के लिए बाएँ स्वर का चुनाव करना चाहिए।
4.    ध्यान, मांगलिक कार्य आदि का प्रारम्भ, गृहप्रवेश आदि के लिए बायाँ स्वर चुनना चाहिए।
5.    लम्बी यात्रा बाएँ स्वर के प्रवाहकाल में और छोटी यात्रा दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में प्रारम्भ करनी चाहिए।
6.    दिन में बाएँ स्वर का और रात्रि में दाहिने स्वर का चलना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सबसे अच्छा माना गया है।
इस प्रकार धीरे-धीरे एक-एक कर स्वर विज्ञान की बातों को अपनाते हुए हम अपने जीवन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस विषय को यही विराम दिया जा रहा है। स्वर-रूप भगवान शिव और माँ पार्वती आप सभी के जीवन को सुखमय और समृद्धिशाली बनाएँ।******

5 टिप्‍पणियां:

  1. wakai lajab jaankari hai..lekin jeewan charya me shamil karne me kathin prateet hota hai.......sadar

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  2. Apney ish sadhana Ko english se Hindi may rupantaran karkay bahut acha kam kiya hai. Yah sadhana swarayoga.org par bahut salo say englaish may Sanyasi Charanashrit Kay Dwara prakashit hai. Lekin hindi bhasi logo kay liya upyogi kam kiya hai. Dhanyabad.

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