शनिवार, 29 मार्च 2025

316. गांधीजी का देशव्यापी दौरा

 316. गांधीजी का देशव्यापी दौरा



1929

गांधीजी को लगा कि अगले किसी आंदोलन के पहले देश की जनता को राजनैतिक शिक्षा देना और अनुशासित करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए उन्होंने देशव्यापी दौरा शुरू करने का निश्चय किया। वे लोगों को रचनात्मक ग्रामीण कार्य जैसे चरखा चलाने, खादी पहनने और शराबबंदी तथा विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने के प्रति जागरूक करना चाहते थे। उन्होंने जो योजना तैयार कर रखी थी उसमें घर-घर जाकर विदेशी कपड़े जमा करने, सार्वजनिक रूप से उसके होली जलाने और विदेशी कपड़ा बेचने वाली दुकानों की पिकेटिंग करने का कार्यक्रम था। उनके रचनात्मक कामों से ग़रीब जनता को काफी राहत मिली। देश के नव निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। राष्ट्रीय आंदोलन के ठहराव के इन वर्षों में भी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहना पड़ा। वे रचनात्मक कार्यों में लगे रहे। इन कार्यों से गांवों में कांग्रेस की लोकप्रियता बढ़ी और उसका आधार मज़बूत हुआ। समाज के दलित शोषित जनता के मन में आशा का संचार हुआ। रचनात्मक कार्य  स्वाधीनता संघर्ष के लिए सिपाही तैयार करने का ज़रिया बना।

कलकत्ता में

मार्च, 1929 में वह कलकत्ता में थे। उनकी उपस्थिति में कलकत्ता के श्रद्धानंद पार्क में विदेशी कपड़ों की बहुत बड़ी होली जलायी गई। सरकार ने वहीं मौक़े पर गांधीजी को गिरफ़्तार कर लिया। चीफ़ प्रेसीडेंसी मैजिस्ट्रेट की अदालत में 5 मार्च को हज़िर रहने के मुचलके पर उन्होंने दस्तख़त करने से इंकार कर दिया। 14 साल बाद गांधीजी बर्मा जा रहे थे। इसलिए मुकदमा उनके लौट आने तक स्थगित कर दिया गया। तीन सप्ताह बाद वे बर्मा से लौटे। ख़ुद अदालत में हाज़िर हुए। मुकदमा चला। उनपर एक रुपया ज़ुर्माना लगाया गया। किसी ने गांधीजी को बिना बताए ज़ुर्माने की राशि जमा कर दी। लेकिन इस मुकदमे के कारण विदेशी कपड़े के बहिष्कार ने और तेज़ी पकड़ ली। जिस दिन मुकदमा चल रहा था, सारे देश में विदेशी कपड़े की होली जलाई जा रही थी।

उत्तर भारत की यात्रा

1929 की गर्मियों में गांधी जी खादी यात्रा पर संयुक्तप्रांत गए थे और वहां कई हफ़्ते ठहरे थे। इस यात्रा में बापू के काफिले के साथ मीरा बहन, महादेव भाई, जो उनके सचिव थे, के अलावा आश्रम के चार और लोग थे। जिस भी राज्य में वे जाते उस सूबे के कांग्रेस कार्यकर्ता भी उनके साथ होते थे। ये कार्यकर्ता इनके काफिले की यात्रा, ठहरने की जगह और जनसभा का प्रबंध करते थे। यात्रा तीसरे दर्ज़े में ही होती थी। छोटी दूरी की यात्रा मोटर से की जाती। एक दिन  में चार-चार, पांच-पांच जनसभाओं को संबोधित किया जाता। बड़ी-बड़ी भीड़ उनको देखने-सुनने के लिए उमड़ पड़ती। देहात में मोटर से जाने के समय हर पांच मील पर दस से पच्चीस हजार की भीड़ उनकी प्रतीक्षा में खड़ी होती थी। मुख्य सभा में तो उनकी गिनती लाख में होती थी।

उन दिनों लाउडस्पीकर की सुविधा नहीं थी। इक्का-दुक्का बड़े शहरों में इसका प्रबंध हो जाता था। लाउडस्पीकर के न होने के कारण उस विशाल जन-समुदाय में हरेक व्यक्ति तक गांधीजी की आवाज़ का पहुंचना असंभव होता था। वैसे भी जनता तो महात्मा जी को देखकर ही संतुष्ट हो जाया करती थी। गांधीजी हमेशा संक्षेप में बोला करते थे।

चौबीस घंटों में दो बार लंबा विश्राम किया जाता। एक बार तो स्नान, भोजन, कपड़े धोने आदि के लिए और दूसरा रात के भोजन, विश्राम के लिए। भीड़ उन्हें हमेशा घेरे रखती। लोग महात्मा के दर्शन को उतावले रहते। यात्राओं में बा भी कभी-कभार साथ होतीं। अन्यथा वे बापू की अनुपस्थिति में साबरमती आश्रम की देखभाल करतीं। ‘महात्मा गांधी की जय’ से पूरा वातावरण गुंजायमान रहता।

सभाओं में जनता से चंदा भी इकट्ठा किया जाता। वे खादी के काम के लिए रुपया इकट्ठा कर रहे थे। वे अकसर कहा करते थे, मुझे दरिद्रनारायण के लिए रुपया चाहिए। वह नारायण जो दरिद्रों में बसता है। यह तो इसका शाब्दिक अर्थ हुआ, वास्तव में तो वे ग़रीबों को घरेलू उद्योग-धंधों में लगाकर उनकी बेकारी को दूर करने में सहायता देना चाहते थे। बापू के काम के लिए ग़रीब से ग़रीब किसान भी तांबे और निकल के सिक्के बड़े उत्साह से दान करते। यहां तक कि ग़रीब औरतों ने कई बार अपनी अंगूठी, कान की बालिया, कंगन वगैरह उतार-उतार कर दान में दे देतीं। आभूषान आदि क़ीमती चीज़ों को वहीं नीलाम कर दिया करते। अमीर लोग तो दान देने में कंजूसी करते लेकिन ग़रीब ख़ुशी-ख़ुशी यह कहते हुए दान करते कि ‘यह महात्मा जी के लिए है!’ महात्मा जी यह कहा करते थे कि धनवानों को अपने धन को ग़रीब की थाती समझना चाहिए।

बनारस पहुंचे

जब वे बनारस पहुंचे तो उस समय वहां के सनातनी हिन्दुओं में बापू के ख़िलाफ़ विरोध की आंधी उठ खड़ी हुई थी। वहां एक सार्वजनिक सभा रखी गई थी। बा बापू के साथ सभा मे नहीं गई थीं। कोई ख़बर लेकर आया कि बापू की सभा में भयंकर उपद्रव हो रहा है। बा तुरन्त सभास्थल की ओर जाने के लिए तैयार हो गईं। देवदास गांधी, जवाहरलाल नेहरू आदि भी मोटर में साथ थे। रास्ते में एक उत्पाती टोली आई। टोली ने उन्हें सभास्थल जाने से रोकने के कोशिश की। नेहरूजी और देवदास के प्रयासों से टोली बिखर गई। रास्ते में भयंकर भीड थी। मोटर से जाना संभव था, वे पैदल ही आगे बढे। भीड़ की धक्का-मुक्की में बा, उनसे बिछड़ गईं। इतने में उन्हें खबर मिली कि सभास्थल पर पत्थरबाजी हो रही है। बा चिन्तित हो गई। ड़ी कठिनाई से वे भीड़ को चीरती सभामंच पर पहुंच कर बापू के पास जाकर खडी हुई।

कौसानी में

कुछ समय के लिए बापू हिमालय के कौसानी नामक जगह पर रहे। रात में सरदी और घने कोहरे के बावजूद बापू खुले में ही सोते थे। एक रात बापू के बिस्तर के पास बाघ का एक बच्चा आकर लेट गया। नैनीताल से आए कार्यकर्ता की नज़र इस पर पडी। उसने बाघ के बच्चे को भगाया और बापू से कहा कि वे भीतर जाकर सोएं। कार्यकर्ता की बात सुनकर बापू खूब हंसे, मानों कुछ हुआ ही हो, और वहीं सोते रहे।

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मैसूर के नंदीगिरि में प्रवास

1929 में बंबई से पूना जाते हुए गांधीजी को दिल का दौरा पड़ा। डॉक्टर ने उन्हें पूर्ण आराम की सलाह दी। विश्राम में भी वे चरखा कताई और नवजीवन के लेख लिखा करते। अहमदाबाद की गरमी में उनका स्वास्थ्य सुधार संभव नहीं था, इसलिए राजाजी ने उन्हें मैसूर बुलाया और पास के नंदीगिरि में उनके रहने की व्यवस्था करवा दी। सारे दक्षिण का कार्यक्रम नंदीगिरि से होने लगा। गांधीजी को अब यात्रा करने की आवश्यकता नहीं थी। मैसूर की ठंडी आवोहवा ने अपना असर दिखाया और वे स्वस्थ होने लगे।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां-  राष्ट्रीय आन्दोलन

संदर्भ : यहाँ पर

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