यहां पड़ा है सूना आंगन
श्यामनारायण मिश्र
(आज इस गीत के रचनाकार, और मेरे गुरु तुल्य मिश्र जी की पुण्य तिथि है, इसलिए मुझे लगा कि इस विरह गीत से ही उनको याद करूं, और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करूं।-मनोज कुमार)
जब से उठी
तुम्हारी डोली
चारो ओर घिरा सूनापन।
गांव वही है
और बढ़ा है
किन्तु मुझे लगता है निर्जन।
बांसों के वे कुंज
जहां हम बाल सुलभ जिज्ञासा में ही
घुसकर बैठे रहते घंटों
मानो प्रेम पिपासा में ही।
मेरे मनवत्
ठूंठ खड़े हैं
बनकर तेरा मंडप छावन।
इमली के पेड़ बुलाते
जिनकी डालों में झूले थे,
जिनकी छांव तले बैठे हम
दुनिया का सब कुछ भूले थे।
देख-देख फल
उनके दो क्षण
याद आते कानों के लटकन।
नदिया का वह कूंड
जहां पर गोल-गोल पानी फिरता था
अपनी क्रीड़ाओं से जिसका
नीर कभी भी न थिरता था।
घंटों उसके तट पर
बैठा
सुनता रहता हूं मैं सिसकन।
ठाकुर बाड़ी की बगिया के
फूल कभी अब न फूलेंगे।
बाबा के चौपालों वाली
आंख मिचौनी न भूलेंगे।
गुजर रहे
बिन महके फागुन
बीत रहे बिन बरसे सावन।
छड़ी लिए झुककर चलते
शिक्षक मिल जाया करते हैं।
ऐनक वाले नैन मौन ही
तुम्हें बुलाया करते हैं।
और तुम्हारे
हिस्से का भी
जी हाजिर हूं कह देता मन।
कभी तुम्हारी मां मिलतीं तो
कहतीं आना छोड़ दिया क्यों ?
बरसों से जो रिश्ता था,
उसको पल में तोड़ दिया क्यों ?
आने को तो
कह देता पर
अनुभव होती एक घुटन।
उषा की लाली वाला मुख
थोड़ा सा कुम्हलाया होगा।
आंचल भरा-भरा होगा
पर यौवन कुछ ढल आया होगा।
तुम तो
खोई होंगी घर में
यहां पड़ा सूना है आंगन।
तुम तो
जवाब देंहटाएंखोई होंगी घर में
यहां पड़ा सूना है आंगन।
बहुत सुंदर रचना !
प्रियतम से विरह का यह वर्णन ह्रदय से उठती हुक सा प्रतीत होता है... जा तन लागे, सो तन जाने के अनुसार यह दर्द वही अनुभव कर सकता है जिसने इस परिस्थिति को भोगा हो... एक पुराना शेर याद आ रहा है:
जवाब देंहटाएंफासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा न था,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था!
@ सलिल भाई,
जवाब देंहटाएंआपने ठीक कहा कि हृदय में हूक सी ही उठती है कभी-कभी।
आज इस गीत के रचनाकार, और मेरे गुरु तुल्य मिश्र जी की पुण्य तिथि है, इसलिए मुझे लगा कि इस विरह गीत से ही उनको याद करूं, और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करूं।
अत्यंत सुन्दर रचना पढ़ने मिली...
जवाब देंहटाएंश्री मिश्र जी को सादर आदरांजली...
सादर आभार...
मिश्र जी के नवगीत हम इस स्तंभ के माध्यम से पढते आ रहे हैं... कोइ शब्दाडंबर नहीं, कोइ विन्यास का उलझाव नहीं.. गीत मानो स्वतः प्रस्फुटित होता है और एक सलिल की भांति प्रवाहित होता रहता है... इस नवगीत की वेदना से कोइ भी सुधिपाठक विह्वल हुए बिना नहीं रह सकता..
जवाब देंहटाएंआज उनकी पुण्यतिथि पर यह गीत प्रकाशित कर आपने बड़ा ही पुण्य कार्य किया है.. हम मिश्र जी की स्मृति को श्रद्धा सुमन अर्पण करते हैं!!
तुम तो
जवाब देंहटाएंखोई होंगी घर में
यहां पड़ा सूना है आंगन।……………विरह का सटीक चित्रण्…………श्री मिश्र जी को सादर नमन्।
Mishraji ko sundar adranjali.yahan pada hai soona aangan,bhawook, dil ko choone wali rachna
जवाब देंहटाएंसब कुछ सूना सूना,
जवाब देंहटाएंतब तू थी, अब तू ना।
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंshradhanjali......aur kavita dil tak gayee.......
जवाब देंहटाएंआज इस गीत को पढ़कर ऐसा लगा कि श्यामनारायण मिश्र जी के मुखारविन्द से सुन रहा हूँ। मेदक की कवि-गोष्ठी साकार हो उठी, जिसमें उन्होंने इस गीत को पढ़ा था। उनकी पुण्य-तिथि पर उन्हें हार्दिक श्रद्धाञ्जलि।
जवाब देंहटाएंस्मृत दृश्यावलि को भावानुभूति के साथ मानस पर अंकित करता विरह गीत हृदय को भावुक कर देने वाला है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मिश्र जी को सादर श्रद्धा सुमन।
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंvirah vedna ka behtreen chitran kiya hai.bahut badhia.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना. गुरूजी को हमारी भी श्रद्धांजलि. नव वर्ष आपके लिए मंगलमय हो.
जवाब देंहटाएंguruji kee rachna hamen padhane ke liye dhanyavad ! unako hamari vinamra shraddhanjali.
जवाब देंहटाएंatyant sundar panktiyaan.....happy new year
जवाब देंहटाएंविरह वर्णन की सुन्दर रचना ...पुण्य तिथि पर मिश्र जी को नमन
जवाब देंहटाएंबांसों के वे कुंज
जवाब देंहटाएंजहां हम बाल सुलभ जिज्ञासा में ही
घुसकर बैठे रहते घंटों
मानो प्रेम पिपासा में ही।
मेरे मनवत्
ठूंठ खड़े हैं
बनकर तेरा मंडप छावन।
सहज सरल अभिव्यक्ति दिल से .नव वर्ष मुबारक .
श्री मिश्र जी को सादर नमन्।
जवाब देंहटाएंनदिया का वह कूंड
जवाब देंहटाएंजहां पर गोल-गोल पानी फिरता था
अपनी क्रीड़ाओं से जिसका
नीर कभी भी न थिरता था।
घंटों उसके तट पर
बैठा
सुनता रहता हूं मैं सिसकन।
पढ़ कर मन में भी विरही भाव जागृत होते है