सोमवार, 16 जनवरी 2012

लौट आए फिर सुए

लौट आए फिर सुए

श्यामनारायण मिश्र

0_6d1d5_b079d358_XL

छोड़कर

पर्वत, पवन, पानी

टपकते रस भरे महुए।

पींजरों में लौट आए

लौट आए फिर सुए।

 

समय

साथी

     सोच

          सुख की

          नित नई अनुभूतियां।

नदी

निर्झर

     नीड़

          मौसम की

          नई आठखेलियां

तोड़कर

नवजात किरणों के

     महकते अंखुए!

20 टिप्‍पणियां:

  1. कविता की चित्रात्मक प्रस्तुति अच्छी लगी । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर पंक्तियाँ
    सुए का मतलब नहीं समझ में आया है !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति
    सुए,तोते को भी बोलते है.

    vikram7: जिन्दगी एक .......

    जवाब देंहटाएं
  4. ओह... अद्भुत स्फ़ूर्ति दे रहा है यह गीत !

    जवाब देंहटाएं
  5. सशक्त और प्रभावशाली रचना|

    जवाब देंहटाएं
  6. चमत्कृत हूँ शब्द विन्यास से, अभिभूत हूँ अभिव्यक्ति से, और आभारी हूँ आपका कि आपने मिश्र जी के नवगीतों की यह श्रृंखला प्रस्तुत की है.. मिश्र जी के नवगीत कविता की पाठशाला हैं..

    जवाब देंहटाएं
  7. टपकते रस भरे महुए।
    aur rasbhari rachna ...
    bahut sunder .

    जवाब देंहटाएं
  8. शब्द-चयन और उनका समन्वय ज़बरदस्त है इस नवगीत में.
    श्याम मिश्र जी की नवगीत पर ज़बरदस्त पकड़ थी, ये मैं कह सकता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर भाव से लिखी है रचना !

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।