सोमवार, 9 जनवरी 2012

उदासी के धुएं में

उदासी के धुएं में

श्यामनारायण मिश्र

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लौट आईं

भरी आंखें

भींगते रूमाल-आंचल

छोड़कर सीवान तक तुमको,

          ये गली-घर-गांव अब अपने नहीं हैं।

 

अनमने से लग रहे हैं

द्वार-देहरी

खोर-गैलहरे

          दूर तक फैली उदासी के धुएं में।

आज वे मेले नहीं

दो चार छोटे घरों के

घैले घड़े हैं

          घाट पर प्यारे प्यासी के कुएं में।

खुक्ख

सन्नाटा उगलती है

चौधरी की कहकहों वाली चिलम

नीम का यह पेड़,

चौरे पर शकुन सी छांव अब अपने नहीं हैं।

 

पर्वतों के पार

घाटी से गुज़रती

लाल पगडंडी

भर गई होगी किसी के प्रणय फूलों से।

भरी होगी पालकी

फूलों सजी तुमसे

औ’ तुम्हारा मन

          लड़कपन में हुई अनजान भूलों से।

झाम बाबा की

बड़ी चौपाल

रातों के पुराने खेल-खिलवाड़ें

वे पुराने पैंतरे

          वे दांव अब अपने नहीं हैं।

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन पोस्ट है सर आपकी
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  2. खुक्ख
    सन्नाटा उगलती है
    चौधरी की कहकहों वाली चिलम …

    बहुत खूबसूरत चित्रण...
    सादर आभार

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  3. मन के भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति ...उदासी के धुएं में जैसे आँख नम कर रही है ....!!

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  4. दिल से निकली कविता - सीधे दिल तक पहुँचती है.. मिश्र जी की कवितायें उनके प्रति श्रद्धा को और प्रगाढ़ करती हैं!!

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  5. मिश्र जी की खूबसूरत रचना पढवाने के लिए आभार

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  6. सीधे दिल तक पहुँचती मिश्र जी की कविता, आभार

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  7. मिश्र जी की लेखनी की वन्दना के साथ कहना चाहेंगे कि भाव उनके शब्द के रूप में निर्झर की तरह बहते हैं!! बहुत ही सुन्दर कविता!!

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  8. इस खूबसूरत रचना के लिए आभार.

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  9. बहुत बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
    आभार.

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  10. बहुत उम्दा!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  11. बहुत सार्थक प्रयास है ......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  12. श्याम नारायण मिश्र जी की कविता बहुत ही सुंदर है... वाकई गहरे भावों से परिपूर्ण प्रस्तुति.

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
    आभार

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  14. जीवन अपना और पराये आश्रय सारे,
    नीरवता में बैठ उन्हें अब कौन निहारे,

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  15. क्या कहूँ, कवि-गोष्ठियों में मिश्र जी के मुखारविन्द से यह गीत सुनते-सुनते हमलोग आत्मविभोर हो जाया करते थे। उनके कुछ गीत ऐसे थे जिन्हें प्रायः सभी कवि-गोष्ठियों सुनाने का आग्रह करते थे। उनमें से एक गीत यह भी था।

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  16. कविता से तस्वीर बनायीं है ..
    पधारें..kalamdaan.blogspot.com

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  17. सार्थक/खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
    सादर.

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  18. पुराने वक्त का एक जीवंत चित्रण ...पढ़ने को मिला ...आभार

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  19. बहुत ही सुन्दर चित्रण |

    मेरे भी ब्लॉग में पधारें |
    मेरी कविता

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  20. बेहतरीन और खूबसूरत रचना ...

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  21. झाम बाबा की
    बड़ी चौपाल
    रातों के पुराने खेल-खिलवाड़ें
    वे पुराने पैंतरे
    वे दांव अब अपने नहीं हैं।

    सुन्दर अभिव्यक्ति...

    vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....

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  22. नवगीत ने गीत को संरक्षण प्रदान करने के साथ आधुनिक युगबोध और शिल्प के साँचे में ढालकर उसको नवीन और मोहक रूपाकार प्रदान करने का काम भी किया है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो नवगीत पारंपरिक गीत का विकसित और परिष्कृत रूप है, जो आदमी के दुख-दर्द में सिर्फ़ गुनगुनाता ही नहीं, बल्कि ज़िंदगी की लड़ाई में हमदर्द की तरह ऊर्जा भी प्रदान करता है और रास्ता भी बताता है । श्याम नारायण मिश्र जी का नवगीत "उदासी के धुएं में " पढ़ कर मन भींग सा गया । धन्यवाद ।

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  23. सुंदर प्रस्तुति,मिश्र जी की बढ़िया रचना पढवाने के लिए मनोज जी बहुत२ आभार ....
    welcom to new post --"काव्यान्जलि"--

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  24. वाह....माटी की गमक लि‍ए प्‍यारी सी कवि‍ता। बधाई...

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