सोमवार, 30 जनवरी 2012

ओसारे घुप्प पड़े हैं


ओसारे घुप्प पड़े हैं
श्यामनारायण मिश्र

अंधकार
घाटी से घाल रहा गुफने।
सूरज ने
चोटी पर टेक दिए घुटने।
जाने कब लौटेंगे
    शहर गए लोग
         ओसारे
         घुप्प पड़े हैं।

दूरबीन
खेतों पर नज़रें क्या डाल गई,
पोखर तो पोखर
    पेट तक खंगाल गई,
कौतूहल
    सड़कों के नाम सब हुए
         चौबारे
चुप्प पड़े हैं।

डरा गईं
लोहे की लाल लाल आंखें
बोलो
यह दमनी कौन दिशा हांकें।
देख लिए सारे
    बड़बोले
    गुब्बारे
    फुप्प पड़े हैं।

16 टिप्‍पणियां:

  1. दिल को छूने वाली रचना.. स्व. मिश्र जी की रचनाएं भाव के आधार पर तो प्रभावित करती ही हैं, शब्द विन्यास के आधार पर भी चमत्कृत करती हैं!! नमन मिश्र जी को!!

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  2. डरा गईं
    लोहे की लाल लाल आंखें
    बोलो
    यह दमनी कौन दिशा हांकें।bahut badhiyaa.

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  3. दूरबीन
    खेतों पर नज़रें क्या डाल गई,
    पोखर तो पोखर
    पेट तक खंगाल गई,
    कौतूहल
    सड़कों के नाम सब हुए
    चौबारे
    चुप्प पड़े हैं।
    पूरी रचना में आंचलिक जानपदिक शब्दों की
    बयार पुलकित करती आगे बढती है .

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  4. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  5. बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,

    मनोज जी,आपका फालोवर बन गया हूँ,आपभी बने तो हार्दिक खुशी होगी,....आभार
    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

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  6. श्याम मिश्र जी के नवगीत तो वाक़ई ग़ज़ब के होते हैं.

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  7. सड़कों के नाम सब हुए
    चौबारे
    चुप्प पड़े हैं।

    सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

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  8. देशज शब्दों के अद्भुत प्रयोग से आपने कमाल की रचना रची है....बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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