ओसारे घुप्प पड़े हैं
श्यामनारायण मिश्र
अंधकार
घाटी से घाल रहा गुफने।
सूरज ने
चोटी पर टेक दिए घुटने।
जाने कब लौटेंगे
शहर गए लोग
ओसारे
घुप्प पड़े हैं।
दूरबीन
खेतों पर नज़रें क्या डाल गई,
पोखर तो पोखर
पेट तक खंगाल गई,
कौतूहल
सड़कों के नाम सब हुए
चौबारे
चुप्प पड़े हैं।
डरा गईं
लोहे की लाल लाल आंखें
बोलो
यह दमनी कौन दिशा हांकें।
देख लिए सारे
बड़बोले
गुब्बारे
फुप्प पड़े हैं।
दिल को छूने वाली रचना.. स्व. मिश्र जी की रचनाएं भाव के आधार पर तो प्रभावित करती ही हैं, शब्द विन्यास के आधार पर भी चमत्कृत करती हैं!! नमन मिश्र जी को!!
जवाब देंहटाएंकाश कोई तो जगाये जीवन इसमें..
जवाब देंहटाएंडरा गईं
जवाब देंहटाएंलोहे की लाल लाल आंखें
बोलो
यह दमनी कौन दिशा हांकें।bahut badhiyaa.
सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंदूरबीन
जवाब देंहटाएंखेतों पर नज़रें क्या डाल गई,
पोखर तो पोखर
पेट तक खंगाल गई,
कौतूहल
सड़कों के नाम सब हुए
चौबारे
चुप्प पड़े हैं।
पूरी रचना में आंचलिक जानपदिक शब्दों की
बयार पुलकित करती आगे बढती है .
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंमनोज जी,आपका फालोवर बन गया हूँ,आपभी बने तो हार्दिक खुशी होगी,....आभार
welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
यथार्थ और सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंश्याम मिश्र जी के नवगीत तो वाक़ई ग़ज़ब के होते हैं.
जवाब देंहटाएंAanchlik bahv liya lajawab rachna ...
जवाब देंहटाएंसड़कों के नाम सब हुए
जवाब देंहटाएंचौबारे
चुप्प पड़े हैं।
सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
देशज शब्दों के अद्भुत प्रयोग से आपने कमाल की रचना रची है....बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज