फ़ुरसत में ... 88
ऊ ला ला .. ऊ ला ला !
पहली तारीख़, नए साल का पहला दिन। रात में, देर रात तक, जो नए साल के अवसर पर टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रोग्राम देखते-देखते, पुराने साल को बाय-बाय कर सोया था, उसका खुमार भोर तक चढ़ा हुआ था। सुबह-सुबह उठते ही भगवान का नाम लेने की जो पुरानी आदत थी, उसने भी हमें बाय-बाय कर दिया था। आज तो एक ही लफ़्ज़ हमारी जुबान पर चढ़ा हुआ था --- ऊ ला ला .. ऊ ला ला !
रात में हर चैनल पर यही गाना, और इस गाने पर नाचना चल रहा था। सुबह-सुबह उठते ही यह गाना मेरी जुबान पर चढ़ गया। जिधर भी जाता हूं … ऊ ला ला .. ऊ ला ला … करते हुए। किचन में व्यस्त श्रीमती जी के कानों तक मेरा ऊ ला ला .. ऊ ला ला पहुंचता है। निकल कर डयनिंग रूम में पधार चुके मुझ को देखती हैं, फिर वापिस उनके कदम किचन की ओर मुड़ने लग जाते हैं। फिर वो पलट कर देखती हैं। मुस्कुराती हैं। उनके चेहरे पर के भाव को पढ़ता हूं। कुछ अच्छा संकेत देते प्रतीत नहीं हो रहे।
रात को जो नया साल सूचित करने के लिए, 23.59 से 00.00 तक के बीच में टीवी पर घंटी बजी थी, दिमाग में बजती ही रही। और मुंह में से निकला ऊ ला ला .. ऊ ला ला! हालाकि मेरे मन में ऐसा-वैसा कुछ नहीं चल रहा था, फिर भी श्रीमती जी मेरे मन की बातें पढ़ लेती हैं। इसके लिए उन्हें कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। यह शक्ति उन्हें प्राप्त है। आज इस नए साल में कोई नई बात हुई हो, ऐसी भी बात नहीं है। पिछले चौबीस सालों से वो यह करती आई हैं, हमने कभी इसका प्रतिवाद या प्रतिकार नहीं किया है। इसलिए उन्हें अपनी सोच को सच साबित करने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
शायद वो सोचती हों कि आज के दिन, चूंकि रविवार है, तो कोई बहाना भी नहीं, अपनी 2003 मॉडल ऑल्टो में घुमाने ले जाएं। इसीका ऊ ला ला .. ऊ ला ला हो रहा हो! मैं एक बार फिर ऊ ला ला .. ऊ ला ला करता हूं। वो मुस्कुराती हैं। चौबीस साल के साथ के बाद यह मुस्कुराहट न ज़्यादा चौड़ी और न ही उतनी नमकीन लगती है।
अपनी शाही सवारी से हम निकलते हैं। चौरंगी, एस्प्लानेड, डलहौजी, महात्मागांधी रोड, चिडिया मोर, डनलप ...! वापसी में गाड़ी पार्क कर जवाहरलाल नेहरू रोड की तरफ़ पैदल बढ़ते हैं। सामने ‘क्वालिटी’ वालों का ठेला है। श्रीमती जी मचलती हैं। मैं मना नहीं कर पाता। वो आइसक्रीम खा रहीं हैं। पास खड़ा मैं सोचता हूं – ये डायबिटिज़, ब्लडप्रेशर --- उफ़्फ़! … न जीने देते, न ही मरने। छह महींने हो गए --- डॉक्टर से भी नहीं दिखाया है। कल ही मिल लेता हूं। शायद आइसक्रीम खाने को कह दे।
पास से तभी एक शव वाहन गुज़रती है। मौत – मृत्यु! क्या है? ... आइसक्रीम खाते वक़्त हम यह सवाल क्यों नहीं करते? तब तो कह देते हैं ... जब आनी है, आएगी! इसके लिए नए साल के मौज़-मस्ती को क्यों बरबाद करूं?
एक मित्र का एस.एम.एस. किया शे’र याद आता है –
जीवन में जोड़ लो चाहे कितने ही हीरे और मोती,
बस इतना याद रखना कफ़न में जेब नहीं होती।
मैं अचानक उदास हो जाता हूं। शायद श्रीमती जी सोचती हों, --- खुशी का वातावरण इसे पसंद नहीं।
पार्क स्ट्रीट की तरफ़ हम बढ़ते हैं। बड़ी भीड़ है। ऊ ला ला .. ऊ ला ला! मैं इस भीड़ का हिस्सा बन जाऊं ... मन में आता है। भीड़ में धंसकर फुटपाथ पर बढ़ता हूं। चलता हूं। अब लगता है मैं फुटपाथ पर आ गया हूं। आह! फुटपाथ से, …. लगता है, लगता क्या है ... है ... फुटपाथ से मेरा परिचय --- पुराना, बहुत पुराना है। इस फुटपाथ और ज़िन्दगी के फुटपाथ में कोई अन्तर नहीं है – अन्तर तो उधर है – फुटपाथ से दूर उस तरफ़ के मकानों में, उनकी ऊंचाई में, गहराई में, उनमें रहने वालों में, उनके मन में, उनकी रहन-सहन में, आदतों में, इरादों में। फुटपाथ पर तो अपनापन है, समरसता है, ज़िन्दगी है, मज़ा है। कोलकाता का हो, या मुम्बई का, दिल्ली का हो या चेन्नई, बेगलुरू का, फुटपाथ सब जगह समान ही है। एक-सा!
एक बार फिर से सामने की अट्टालिका देखता हूं – वह छोटी नज़र आती है। उसमें रहने वाले लोग जो खिड़की से झांक रहे हैं --- हम फुटपाथिए भी तो उन्हें छोटे ही नज़र आ रहे होंगे – हां देखने का नज़रिया होता है – दो तरह का --- दो तरह से चीज़ें देखने में छोटी नज़र आती हैं --- एक दूर से --- दूसरी गुरूर से!
फुटपाथ पर एक साधु बैठा है। लोगों के भविष्य बांच रहा है। लोग उसके चरण छूते हैं। मैं उससे पूछता हूं, -- सबके भविष्य बताते हैं, ... लोग आपको पूजते हैं, पूज्य मानते हैं, -- फिर भी नीचे बैठे हैं ? क्यों ?
वो बोलता है, --- बच्चा ! यह बात याद याद रखो। ... नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं!
फुटपाथ मुझे रास आता है। यह मुझे मेरे नीचे बैठे होने का अहसास कराता है। सामने की 26 मंजिली इमारत की रोशनी की चमक अब मेरे लिए फींकी है।
... ये मैं क्या सोचने लगा हूं? – फ़ुरसत में जब होता हूं, तो मुझे अपने इर्द-गिर्द इतना कुछ क्यों दिखने लगता है? पीछे से श्रीमती जी आ रही हैं। उनका आइसक्रीम खत्म हो चुका है। खाली डब्बा वो सड़क के किनारे फेंक देती हैं। सड़क पर कारें और टैक्सियां भाग रही हैं। मुझे देखकर श्रीमती जी मुस्कुराती हैं। ऊ ला ला .. ऊ ला ला !
ऊ ला ला का नशा तभी उतरेगा जब डर्टी पिक्चर देख लोगे !
जवाब देंहटाएं''जीवन में जोड़ लो चाहे कितने ही हीरे और मोती,
जवाब देंहटाएंबस इतना याद रखना कफ़न में जेब नहीं होती। ''
वाह-वाह...दुआ है कि आप साल भर ऊ लाला करते रहें....
bas khush rahiye aur gaiye ...
जवाब देंहटाएंउनका आचार-विचार-व्यवहार अधिक संतुलित लगता है - कृपया बुरा न माने !
जवाब देंहटाएंkalkatte ki yaad dila di aapne to......bahut sahajta se likhe hain.
जवाब देंहटाएंउ ला ला गाते रहिये आप . और भाभी जी ऐसे ही मुस्कराती रहे . हमने याद कर लिया ---"नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं "
जवाब देंहटाएंनये साल की बात हो और ऊ-ला-ला न हो यह कैसे सम्भव है।
जवाब देंहटाएंआपका पूरा परिवार आनन्दित रहे इस नये वर्ष में।
इसी कामना के साथ-
आपका
डर्टी पिक्चर का उल्ला ला उल्ला ला हिट गाना है आजकल .
जवाब देंहटाएंजो लोग अपनी बेटियों/बच्चों को नाम और पैसा कमाने के लिए glamour and sexy exposure की इजाज़त दे देते हैं उन्हें इसके परिणाम से वाकिफ़ कराती है ये फिल्म.
पिक्चर देखने लायक है.
बहुत सुन्दर.." नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं "...
जवाब देंहटाएंनीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ऊँची बात है भईया....
सादर बधाई...
नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं....
जवाब देंहटाएंये तो बड़ी ऊंची बात कह दी सिरीमान जी ने।
नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं!
जवाब देंहटाएं....जिंदगी का एक बहुत बड़ा सच...शुभकामनायें!
मनोज भाई!
जवाब देंहटाएंआजकल आप "फुर्सत में" बच्चा लोग को घर पर छोडकर भागे रहते हैं... अब समझ में आया कि बच्चे जब बड़े हो जाएँ तो अपना यौवन लौट आता है.. अब देखिये न.. पार्क स्ट्रीट, कैमक स्ट्रीट, क्वींस मैन्शन सब घुमा दिए कल्ले-कल्ले.. तभी तो हो गयी है बल्ले-बल्ले और आप ऊ ला ला करते हुए मस्त हैं..
नया साल में नया फलसफा लेकर आये हैं..मौत से किसकी रइश्तेदारी है/आज उसकी तओ कल हमारी बारी है.. मगर नीचे बैठने वाले से सावधान.. जरूरी नहीं कि वो इसलिए बैठा हो कि उसे और गिरने का डर नहीं.. बल्कि गौर से देखियेगा तो पता चलेगा कि उसकी निगाह सबसे ऊंची जगह पर है..! मज़ा तो तब है जब दुनिया के शिखर पर ऐसे बैठे मानो फुटपाथ पर बैठे हों!!!
नया साल आपके जीवन में ऊ ला ला बरकरार रखे यही शुभाकामना है...!और आप फुर्सत में बने रहें यही आशा है!!
नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं....
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर.
हम फुटपाथिए भी तो उन्हें छोटे ही नज़र आ रहे होंगे – हां देखने का नज़रिया होता है – दो तरह का --- दो तरह से चीज़ें देखने में छोटी नज़र आती हैं --- एक दूर से --- दूसरी गुरूर से!
जवाब देंहटाएंउ ला ला के साथ इतनी गहन बात ? फुर्सत में काफी कुछ सोचने की मिल जाता है .. साधू की बात सटीक है नीचे बैठने वाले को गिराने का अंदेशा नहीं रहता ..
पेट भरा हो तो फ़ुरसत में फलसफा हो ही जाता है...
जवाब देंहटाएंलेकिन फलसफा यथार्थ की धरती पर हो तो और भी सशक्त बन जाता है...बातों-बातों में बड़ी बात कही है आपने।
मनोज जी,
जवाब देंहटाएंऐसे ही खुश रहिये गाईये क्या फर्क पड़ता है उ ला ला हो या कोई और शब्द !
फुर्सत में लिखा हुआ बहुत अच्छा लगा !
वो बोलता है, --- बच्चा ! यह बात याद याद रखो। ... नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं!
जवाब देंहटाएंवाह...क्या अद्भुत रचना है...लाजवाब. मुझे महान फिल्म मुगले आज़म का वो सीन याद आ गया जिसमें शेह्ज़दा सलीम "तेरी महफ़िल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे..." गीत /कव्वाली वाले मुकाबले में हारने वाली अनारकली को गुलाब के फूल के बजाय उसके कांटे उपहार में देता है जिसे लेकर वो मुस्कुराते हुए कहती है "शुक्रिया शेह्जादे काँटों को मुरझाने का खौफ नहीं होता"
नीरज
ऊ ला ला...ये चैनल वाले भी उलटे-सीधे गीतों को इतना सुनते हैं...कि धीरे -धीरे पुराने गीतों के शौक़ीन भी इन्हें गुनगुनाने लगते है...भप्पी दा, जो ना सुनवाएं वो कम...लगता है भाभी जी ने मूवी नहीं देखी...वर्ना नए साल में चाय भी ना मिलती...
जवाब देंहटाएं२५ साल में एक ही शेष है। ऊ लाला।
जवाब देंहटाएंयह गाना सुनते सुनते पक गये हैं, फिर भी जीवन ऊ ला ला
जवाब देंहटाएंअच्छा है।
जवाब देंहटाएं... नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं!.
जवाब देंहटाएंनए साल में यह पाठ हमने याद कर लिया.उ ला ला ऊ ला ला .
वाकई नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं है..... नए साल पर इस से बड़ी सीख और क्या मिलेगी... साल की सबसे बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंइसे कॉलर ट्यून बना लें तो थोड़ा आनंद हमें भी आ जाए!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ,ज़िन्दगी का सनातन फलसफा "ऊ लला " करते समझा गये ..:)
जवाब देंहटाएंachhi hai rachna ,
जवाब देंहटाएंएक नए ब्लागर के लिए लिखने से अधिक पढ़ना सुविधाजनक होता है.
हिंदी में टिप्पणी करना भी अभी कठिन है.
मन के संतोष के लिए कुछ भी कह लिया जाय पर वास्तविकता तो यही है कि जो फुटपाथ पर है उसकी निगाह ऊपर है ...और ऊपर वाले की निगाह आसमान की तरफ है....ऊपर रह कर भी जो फुटपाथ की बात सोच पाते हैं वे ही अनुकरणीय हैं ....भारतीय नववर्ष तो अभी आया नहीं ....चलिए, पश्चिमी नव वर्ष ही सही .....सभी को मंगल कामनाएं .....
जवाब देंहटाएंऊ ला ला....... ऊ ला ला वाह इस ऊ ला ला के सहारे कलम की धार दिखा ही दी आपने ...... देखने की चार नज़रे भी हैं मनोज जी जहाँ चीजे छोटी हो जाती हैं जिसमे से दो तो आप ने बता दी तीसरी और चौथी नज़र मै बताता हूँ १-दूर-२-गुरुर ३-सरूर-४ फितूर| अरे हाँ भाई कभी कभी फितूर यानि मुगालते में भी लोगों की अनाज़रें बदल जाती हैं |
जवाब देंहटाएंफ़िलहाल बेहद गम्भीर चिंतन की और इंगित करता हुआ लेख है एल लच्छेदार प्रस्तुति के लिए आभार .
ऊ ला ला .कफ़न में जेब नहीं होती। नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं!बहुत सी अच्छी बातें हैं इस लेख में ।
जवाब देंहटाएंनिरापद फलसफे की बातें, वो भी फुरसत में......। वाह!
जवाब देंहटाएंनए साल का उलालामय आगाज़. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंश्रीमती जी मेरे मन की बातें पढ़ लेती हैं। इसके लिए उन्हें कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। यह शक्ति उन्हें प्राप्त है....शायद यह शक्ति सभी पत्नियों को प्राप्त है...उ ला ला....मस्त हो गये पढ़ कर...
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है:दो तरह से चीज़ें देखने में छोटी नज़र आती हैं --- एक दूर से --- दूसरी गुरूर से!
u la..la...se bhi nikal hi li kuchh gahen baaten...pata tha...aisa hi kuchh padhne ko milega....fursat me bhi......
जवाब देंहटाएंby-the-way aap us pandit ji k saath neeche baith ke apni kalam ki dhaar ko aur kitna tez karenge ?
sidhi to ghusi ja rahi hain dil-o-dimag me :0
जीवन में जोड़ लो चाहे कितने ही हीरे और मोती,
जवाब देंहटाएंबस इतना याद रखना कफ़न में जेब नहीं होती।
यकीनन इस सत्य से सभी परिचित होते हैं मगर समय रहते समझते नहीं ,समझना नहीं चाह्ते !
सिकंदर ने भी कहा था मेरी बाहें खुली रखना कि लोंग देख सके कि यह भी खाली हाथ ही गया !
दो तरह से चीज़ें देखने में छोटी नज़र आती हैं --- एक दूर से --- दूसरी गुरूर से!
चीजें और इंसान भी !
हँसते मुस्कुराते उ ला ला की तर्ज़ पर जीवन की सच्चाई से रुबुरू करवाया !
लाज़वाब !
sheela gayee, munni gayee ... bus kuch din ka hai u la-la.. phir koi naya aa jayega juban par...
जवाब देंहटाएं..u.la.la ke bahane bahut badiya prastuti..
Bhabhi ji ki tarah khush rahiye bas...
KHOOB ! BAHUT KHOOB !!
जवाब देंहटाएंआशा है आज एक महीने बाद भी ऊ ला ला चालू है.
जवाब देंहटाएंजीवन में जोड़ लो चाहे कितने ही हीरे और मोती,
बस इतना याद रखना कफ़न में जेब नहीं होती।
बहुत पसंद आया.हम सोच रहे हैं अभी से कपड़ा ला दो तीन जेबें सील लेते हैं.
घुघूतीबासूती