फ़ुरसत में ... 93
तेरे नाल लव हो गया
मनोज कुमार
जो ग़लतियां हम कर चुके होते हैं, उन्हें बार-बार दुहराने का मज़ा ही कुछ और है! चौबीस साल पहले जिस सुनहरे दिन यह ग़लती हुई थी, वह बीते सप्ताह के अंतिम दिन (हम नौकरी पेशा लोगों का सप्ताह तो सोमवार से ही शुरू होता है), यानी रविवार को था। उसके दो दिन पहले हम दिल्ली और देहरादून की यात्रा पर थे। यह यात्रा इस अवसर के प्रति हमारी लापरवाही नहीं थी, बल्कि सरकारी नौकर होने की मज़बूरी थी। लेकिन जो हमारी “सरकार” हैं, उन्हें मेरी इस मज़बूरी से भला क्या लेना-देना?
अंगरेज़ों की बनाई रीतीयँ मानें, तो शुभघड़ी ‘मिडनाइट’ यानी ‘ज़ीरो-ज़ीरो आवर’ से ही शुरू हो जाती हैं। लिहाजा मुझे शनिवार-रविवार की ‘मिडनाइट’ को घर में होना चाहिए था, पर मैं वापस लौटा रविवार के ‘मिड-डे’ हो जाने पर। ‘वेलेंटाइन डे’ पर कोई गिफ़्ट न दे पाने और उससे जुड़े “प्रेम-प्रदर्शन” का किस्सा तो आपको सुना ही चुका हूं। ... और वह वाकयात मेरे जेहन में थे ही, सो देहरादून में ही सोच लिया था कि लौटते हुए कुछ न कुछ लेकर ही जाऊंगा। समस्या थी कि क्या लूं? इन सब बातों में इतना अनाड़ी निकलूंगा, यह मुझे मालूम ही न था।
बाज़ार पहुंचकर जब मेरे मन में गिफ़्ट को लेकर चिंतन-मनन की प्रक्रिया चल रही थी, तो दूसरी ओर मेरी जेब में पड़े बटुए का मुझसे द्वन्द्व चल रहा था। जब मैंने ज्वेलरी शॉप की ओर निगाहे घुमाईं तो बटुए की गर्म सांसें तेज़ रफ़्तार हो चुकी थी। किसी तरह अपने मन को मना, जैसे ही मैं मुड़ा, बटुए ने राहत की सांस ली। सामने लेदर के सामान की एक दुकान दिखी। उसमें प्रवेश करते ही बटुए की धड़कन फिर तेज़ हो गई। एक ओर सामान पर लगा प्राइस टैग मुझे चिढ़ा रहा था कि किधर मुंह मारने चले आए और दूसरी ओर बटुआ मुझे धमका रहा था कि अब चलो भी। इस बार मैंने ही ठंडी सांसों (पर लगाम लगाई) पर क़ाबू पाया और चुपचाप बाहर निकल गया।
बाहर निकलते ही वैलेट ने गुहार लगाई – “जो भी लेना, उसके पहले अपनी नहीं तो कम-से-कम मेरी हैसियत को ध्यान में रखना।” इस गुहार के बाद मेरी चिंतन-मनन की प्रक्रिया काफ़ी तेज़ हो गई और उसकी विचारों की सूई साड़ी पर आकर अटक गई। आज तक तो साड़ी नहीं ख़रीदी थी। लेकिन शांतिपूर्ण कल के लिए आज का खतरा तो उठाना ही होगा।
वैसे तो साड़ियों की दुकानें तो कई थीं, पर एक में अपेक्षाकृत अधिक भीड़ थी। हमने सोचा वहीं जाकर देखें। जब अन्दर की धक्का-मुक्की से दो-चार हुए तो बात समझ में आई कि यहां तो ‘सेल’ लगा है। हमने भी सोचा कि जब ओखल में सर डाल ही चुके हैं, तो मूसल से क्या डरना?
खरीदने वालों में से अधिकांश महिलाएं थीं, जो साड़ियों का विभिन्न कोणों से निरीक्षण कर उन्हें बड़ी बेरहमी से नकार रही थीं। श्रीमती जी के साथ एकाध बार साड़ी की दुकान में जाना तो हुआ है, पर उनकी उबाऊ साड़ी-चयन पद्धति ने हमेशा मुझमें इस कला के प्रति अरुचि ही पैदा की। इसलिए साड़ी ख़रीदते वक़्त उसके किन-किन भागों का निरीक्षण-परीक्षण करना होता है, उससे अनजान हमने उसकी फेस-वैल्यू, यानी रंग से अपनी संतुष्टि कर ली, उस पर लगा क़ीमत का टैग देखकर मेरे बटुए ने भी ठंडी सांसें भरकर मुझे इज़ाज़त दे ही दी, बोला, “ले-लो! बचे पैसों से घर भी आराम से पहुंच जाओगे।”
आनन-फानन में साड़ी खरीद कर जब मैं दुकान के बाहर आ रहा था, तो शंकाओं के बादल ने मुझे घेर लिया था – पता नहीं पसंद आएगी भी या नहीं? चलो जो होगा देखा जाएगा। कोलकाता हवाई अड्डे पर विमान के उतरते ही, देहरादून और दिल्ली की ठंड से बचने के लिए पहना गया स्वेटर भी शरीर से उतर गया। फिर घर तक की एक घंटे की यात्रा ‘रश-आवर’ में डेढ़ घंटे की हो गई, ... और हमने पसीने से भींगे तन और सहमे हुए मन के साथ गृह-प्रवेश किया तो गृह-स्वामिनी का चेहरा – “ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर” टाइप का पाया।
“आ गए?”, (जैसे दिखा ही नहीं मैं), “कैसा रहा सम्मेलन?” (जैसे फोन पर बताया नहीं था), आदि-आदि, इस तरह के तटस्थ और औपचारिक प्रश्नों के आदान-प्रदान के बाद उनकी निर्विकार चेहेरे के साथ शांत उपस्थिति और बच्चों का हमारे आस-पास मंडराना, हमें उचित अवसर प्रदान ही नहीं कर रहा था कि मैं उन्हें हमारी ‘मैरिज एनिवर्सरी विश’ कर सकूं। उचित अवसर की तलाश में जब मेरा धैर्य चुकने लगा, तो फाइनली बैग में पड़े साड़ी का पैकेट निकाल कर मैंने हौले से उन्हें प्रदान किया।
उनके चेहरे पर न हंसी थी, न ही रोष। एक अनमना-सा प्रश्न उछाला उन्होंने, “क्या है ये?”
“साड़ी!” (मेरी अवाज़ की तीव्रता की कल्पना आप कर सकने में सक्षम हों तो कर लीजिए)
“किसके लिए है?”
“आपके लिए ही।”
“क्यों?”
“एनिवर्सरी गिफ़्ट ...”
“अच्छा! बड़ा याद रहता है ना आपको ... (मेरे लिए गिफ़्ट लाना) ! सस्ते में मिल गया होगा, उठा लाए होंगे कहीं से!”
“अरे नहीं! कल मैंने .. खास इसी मौक़े के लिए ली है।”
(ऊपर से) अनमने ढंग से उन्होंने पैकेट खोला और उसके रंग को देखते ही बिफ़र पड़ीं, - “ये कैसा रंग हुआ? हरा-हरा! (छिः) ... मैं यह सब नहीं पहनती। ... (चौबीस साल हो गए, मेरी पसंद ना-पसंद की भी समझ नहीं है।)”
मैंने कहा, -- “कितना अच्छा तो है! ... पहनोगी तो हरी-भरी दिखोगी!! ... और तुम्हें देखकर हमारी तबियत भी हरी हो जाएगी ...।”
इसी बीच साड़ी पूरी फैलाई जा चुकी थी। “छिः ... ये क्या कंबीनेशन है?! ... आंचल पीला और ब्लाऊज पीस जामुनी रंग का!! ... पैसे ठग लिए उसने (तुम्हें उल्लू बना दिया) । मैं तो यह पहन ही नहीं सकती किसी भी हालत में। अरे भाई! लाने का मन रहे तब ना कोई ढंग की चीज़ लाया जाए। खाली दिखाने के लिए फुटपाथ से जो मिला ले आए उठाकर।”
आज पता चला कि उनके और मेरे सौंदर्य-बोध में कितना का फ़र्क़ है। गिफ़्ट से महिलाएं प्रसन्न होती होंगी, लेकिन उसके लिए गिफ़्ट का मन लायक़ होना भी एक इम्पौर्टेंट फ़ैक्टर है। यहां तो हमने अपनी सौंदर्य-दृष्टि से उसका (मेरा तात्पर्य साडी से है) चयन किया था। यह तो साबित हो ही चुका था कि उनकी दृष्टि कुछ और ही तलाश कर रही थी। कभी-कभार यह तुलना भी मन पर हावी रहती है कि उसकी साड़ी ऐसी है, तो मुझे भी वैसी ही चाहिए।
मुझे लगा मैं कठघरे में खड़ा कर दिया गया हूं और मुझे आई.पी.सी. (इन्डियन पत्नी कोड) की हर धाराओं के अंतर्गत दोषी करार दिया गया। अब तो सज़ा सुनाना भर बाक़ी था, अब इससे पहले ही मुझे ज़मानत का इंतज़ाम कर लेना चाहिए। मैंने तुरंत अरज़ी दी, “तुम नहा-धोकर तैयार हो जाओ,, मैं मिठाई लेकर आता हूं।” अन्य किसी प्रश्न का वार हो, उसके पहले ही मैं घर से बाहर निकल आया था।
रास्ते में मेरे मन में कुछ विचार घुमड़ रहे थे। दाम्पत्य जीवन को निभाते हुए भी हम यह विश्वास पाले रहते हैं कि हम एक-दूसरे को समझते हैं, समझा सकते हैं। समझाना आसान है, समझना मुश्किल। समझाना आत्म-मुग्धता है, समझना आत्म-मंथन। हम इतने आत्म-मुग्ध होते हैं कि हमें लगता है सबसे ज़्यादा गुणी और ज्ञानी तो हम ही हैं। अकसर ऐसी परिस्थितियों में हम एक-दूसरे को समझाने में ही लगे रहते हैं, समझने में नहीं। परिणाम ... ?! ... सम्पन्न किए गए काम में से निरंतर दूसरे पक्ष द्वारा ग़लतियां निकाल दी जाती हैं, और तब हमें लगता है कि हम भ्रम में ही थे कि हम एक-दूसरे को समझते हैं।
मिठाई लेकर घर वापस आया, तो देखा कि श्रीमती जी पूजाघर में रमी हुई थीं। आम गृहिणियाँ इस दिन क्या दुआ मांग सकती हैं भला! ... आपको लगता है, बताने की ज़रूरत है क्या? नहीं न। हां जो बताने की ज़रूरत है वह यह कि वही साड़ी पहनकर वो पूजा कर रही थीं। मेरी तो बांछे खिल गईं। आज इतना तो साबित हो ही गया कि स्त्रियाँ प्रेम से दिया कोई तोहफा खुशी-खुशी क़ुबूल कर लेती हैं!
पूजा के बाद जब हम डायनिंग टेबुल पर जमे थे, तो हमने प्रस्ताव रखा, -- “कहीं घूमने चलें?”
“कहां?”
“कहीं भी।”
“ ... ये कोई बात हुई? पागल की तरह कहीं भी चले जाएं। ...”
मुझे जो सबसे पहले जगह सूझी उसी का प्रस्ताव रखा, “मंदिर चलते हैं ... दक्षिणेश्वर!”
“हां, -- तुम्हरे लिए दोपहर में मंदिर के कपाट खोलकर रखे होंगे ना ...”
“तो, ... विक्टोरिया या मिल्लेनियम पार्क चलते हैं।”
“अब इस उमर में तुम्हें तो यही सूझेगा ही! ...”
“तो, यूं ही ... मार्केट आदि घूम आते हैं।”
“इतनी कड़ी धूप में मुझे कहीं नहीं जाना।” उन्होंने अपनी तरफ़ से पटाक्षेप कर दिया।
मैंने अंतिम मोहरा फेंका, -- “तो, फ़िल्म ही देख आते हैं।”
इस बार उनका स्वर असहमति वाला नहीं था, “कौन-सी?”
मैंने कहा, “दो फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं ... एक माधवन की और दूसरी रितेश देशमुख की। बोलो कौन-सी चलना है देखने?”
उनका स्वर थोड़ा और सहमति वाला हो गया था, -- “आप ही डिसाइड कर लीजिए।”
मैंने ठंडी सांस छोड़ी, और अपना निर्णय सुनाया, “‘जोड़ी ब्रेकर’ चलते हैं।”
सुनते ही वही बदला स्वर – “हां-हां, आज के दिन इससे बेहतर आपको और क्या सूझ सकता है? आप तो चाहते ही यही हैं कि किसी तरह छुटकारा मिले।”
आज तो मेरा हर दाँव ही उलटा पड़ रहा था। ये ... फ़िल्मवालों को क्या हो गया है? कैसी-कैसी फ़िल्में बनाते हैं? कम-से-कम नाम तो ढंग का हो। मैं दूसरी फ़िल्म का नाम लेता, उसके पहले अर्द्धागिनी खुद ही बोल पड़ीं, “आप तो ‘तेरे नाल लव हो गया’ कहने से क्या देखने से भी रहे।”
मैंने कहा, “अब दो-दर्जन साल साथ तुम्हारे रहकर मुझे कहना पड़ेगा क्या – ‘तेरे नाल लव हो गया’?”
***
बहुत सुंदर फुरसत में लिखी यह पोस्ट !
जवाब देंहटाएंकुछ कुछ स्वगत में कही बाते पढ़कर मै मुस्कुरा रही हूँ !
देर से सही शादी की वर्षगाँठ की बहुत बहुत बधाई ........
भाया ओज मनोज का, उल्लू कहती रोज ।
जवाब देंहटाएंसम्मुख माने क्यूँ भला, देती रहती डोज ।
देती रहती डोज, खोज कर मौके लाती ।
करूँ कर्म मैं सोझ, मगर हरदम नखराती ।
मनोजात अज्ञान, मने मनुजा की माया ।
चौबिस घंटे ध्यान, मगर न मुंह को भाया ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
शादी के इतने वर्षों बाद हर घर में यही कहानी है , मजाल है जो किसी की लाई हुई कोई चीज पसंद आ जाये , या फिर यह है कि इन वर्षों में आपसी रिश्तों में सहजता आ जाती है , कोई कृत्रिमता नहीं रहती कि साथी बुरा मान जायेगा !
जवाब देंहटाएंशादी की वर्षगाँठ की बहुत शुभकामनायें !
पाठकों के लिए बढि़या तोहफा.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya. navdampattiyon ke liye sandesh bhi hai....
जवाब देंहटाएंअपनी बात को पाठक के सामने सलीके से परोसने की कला बखूबी आपमें है.बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है,एकदम सजीव चित्रण कर दिया.पढ़ते वक़्त मन को इतना अच्छा लग रहा था की धीरे धीरे मज़े के साथ पढ़ने लगा.आपकी क़लम की दाद देनी पड़ेगी.और हाँ,शादी की वर्षगांठ की हार्दिक बधाई भी आप दोनों को.
जवाब देंहटाएं...चलो आखिर में वह हरी साड़ी आपके और उनके मन को हरिया गई ! बधाई सालगिरह की !
जवाब देंहटाएंHahaha!
जवाब देंहटाएंहमे तो उस महत्वपूर्ण दिन भाभी जी ने रसगुल्ला खिलाया . इतनी तो मिठास थी . ना जाने आप कैसे नहीं समझ पाए , अरे वही latent मिठास. अच्छा हुआ इस बार आप गिफ्ट नहीं भूले , नहीं तो सच में भाभी जी जोड़ी ब्रेकर ही देखने जाती , और आई पोड पर वो वाला गाना सुनती ".जा जा जरे तुझे हम जान गए ".
जवाब देंहटाएंमनोज जी .... मैंने बहुत एन्जॉय किया , सबको पढकर सुनाया , हँसते हँसते बुरा हाल हो गया .... ढेर सारी शुभकामनायें . अगली बार सोच समझके फिल्म का नाम लीजियेगा
जवाब देंहटाएंबधाई !साड़ी के अनेक रंग जीवन में खिलते रहें !
जवाब देंहटाएंसमझाना आत्म-मुग्धता है, समझना आत्म-मंथन। हम इतने आत्म-मुग्ध होते हैं कि हमें लगता है सबसे ज़्यादा गुणी और ज्ञानी तो हम ही हैं। अकसर ऐसी परिस्थितियों में हम एक-दूसरे को समझाने में ही लगे रहते हैं, समझने में नहीं। परिणाम ... ?! ... सम्पन्न किए गए काम में से निरंतर दूसरे पक्ष द्वारा ग़लतियां निकाल दी जाती हैं, और तब हमें लगता है कि हम भ्रम में ही थे कि हम एक-दूसरे को समझते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत आत्म मंथन किया .... रोचक प्रस्तुति ....
शादी की वर्षगांठ की हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंवैसे बहुत रोचक व्यंग है...मजा आ गया पढ़ कर.
भगवान जुगल जोडी बनाए रखें... इस घटना का सार सिरफ इसी एक वाक्य में समाया है कि प्रेम से दिया कोई भी तोहफा स्वीकार्य होता है और यही जीवन की सच्ची मिठास है..!! आपने स्वयं को पात्र बनाकर जितनी भी घटनाएँ लिखी हैं (सच अथवा कल्पना) दिल को छू गयी हैं!! बहुत कठिन है स्वयं को केंद्र में रखकर कोई कथा रचना... लेकिन बहुत सहज होता है उसे पाठकों द्वारा ग्रहण करना!! पुनः विलंबित बधाई उस मधुर दिवस की.. आपको भी और उनको भी!! कहियेगा यह कमेन्ट पढते समय उस हरी सादी का पीला आँचल सिर पर रख लें.. हम बड़े हैं भाई!!! :)
जवाब देंहटाएंबहुत भाया. झेली हुई यादें ताज़ी हो गयीं.
जवाब देंहटाएंseedee-saral bhasha men likhi aapki 'aapbeeti'bahut hi swabhawik aur achchi lagi.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़ते पढ़ते अपने भविष्य की आशंका में खो गया था...अब वापस आ गया..
जवाब देंहटाएंbehtreen post.abhi kuch sochne sa lga hun ......
जवाब देंहटाएंमनोज जी,...बीती बात बिसारिये आगे की शुधि लेय,.....
जवाब देंहटाएंशादी की सालगिरह की बहुत२ बधाई शुभकामनाए,......
होली सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल!
होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल!!
NEW POST...फिर से आई होली...
सहज , रोचक और बहुत मज़ेदार ...!!
जवाब देंहटाएंविवाह की वर्षगांठ पर आप दोनों को शुभकामनायें ...!!
बेहद उम्दा :)शादी की सालगिरह की बधाई
जवाब देंहटाएंहोली है होलो हुलस, हाजिर हफ्ता-हाट ।
जवाब देंहटाएंचर्चित चर्चा-मंच पर, रविकर जोहे बाट ।
रविवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंरंगों के त्यौहार होलिकोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएँ!
आज मेरे विवाह का वर्षगाँठ है. आपका पोस्ट एक उपहार के रूप में मिला है.
जवाब देंहटाएंआज मेरे विवाह का वर्षगाँठ है. आपका पोस्ट एक उपहार के रूप में मिला है.
जवाब देंहटाएंवर्णन काफी रोचक है। वैसे मुझे दूसरे ही दिन मालूम हो गया था। वर्षगाँठ की बधाई टेलिफोन से तो दे दिया था। आज दम्पती को लिखित रूप में हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंदाम्पत्य जीवन को निभाते हुए भी हम यह विश्वास पाले रहते हैं कि हम एक-दूसरे को समझते हैं, समझा सकते हैं। समझाना आसान है, समझना मुश्किल। समझाना आत्म-मुग्धता है, समझना आत्म-मंथन। हम इतने आत्म-मुग्ध होते हैं कि हमें लगता है सबसे ज़्यादा गुणी और ज्ञानी तो हम ही हैं। अकसर ऐसी परिस्थितियों में हम एक-दूसरे को समझाने में ही लगे रहते हैं, समझने में नहीं। परिणाम ... ?!
जवाब देंहटाएंaah ! lagta hai main Rajneesh guru k aashram me pahunch gayi hun aur satsang sun rahi hun....bada goodh gyan baanta ja raha hai aur ham jaise nereeh prani mugdh ho is gyan ganga me doob gaye hain. Aabhar aisi feelings ki lahar hamare man me uthane k liye.
24 saal bad bhi rango ki samajh nahi aayi to samjha ja sakta hai ki abhi aap ko kitne aatm manthan ki aawashyakta hai.
Anniversary ki bahut bahut badhayi (be-lated hi sahi). :-)
वाकई सत्संग हो गया ...
हटाएंशुभकामनायें आपको, आगे के लिए :)))
इन सब में भी किता प्यार छिपा है ... रोचक अंदाज़ से लिखा है ... वर्ष गाँठ की बहुत बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंविवाह की वर्षगांठ पर हार्दिक शुभकामनाएं...अरेंज्ड मैरिज में लव ऐसे ही होता है...आप की दी साड़ी पहन ली...(यानि आपका दिल नहीं तोडा)...भगवान से सुखद वैवाहिक जीवन के लिय आशीर्वाद ले लिया...(यानि अपने लिए एक साल का टर्म इंश्योरेंस कवर ले लिया)...पिक्चर देखने से अच्छा पनीर कोफ्ता बना लिया जाये...(यानि आपका कोलेस्ट्राल बढ़ा दिया जाये)...हर स्त्री अगर रोमांटिक होती तो अरेंज मैरिज के लिए बचती ही कहाँ...(यानि उनके लिए प्यार करने वालों की कहाँ कमी है)...भला हो भगवान् का जो कुछ महिलाएं ऐसी भी छोड़ दीं...हम लोगों के लिए...हा...हा...हा...फागुन बौराया है...बुरा ना मानियेगा...होली की अग्रिम शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंविवाह की वर्षगांठ पर हार्दिक शुभकामनाएं...अरेंज्ड मैरिज में लव ऐसे ही होता है...आप की दी साड़ी पहन ली...(यानि आपका दिल नहीं तोडा)...भगवान से सुखद वैवाहिक जीवन के लिय आशीर्वाद ले लिया...(यानि अपने लिए एक साल का टर्म इंश्योरेंस कवर ले लिया)...पिक्चर देखने से अच्छा पनीर कोफ्ता बना लिया जाये...(यानि आपका कोलेस्ट्राल बढ़ा दिया जाये)...हर स्त्री अगर रोमांटिक होती तो अरेंज मैरिज के लिए बचती ही कहाँ...(यानि उनके लिए प्यार करने वालों की कहाँ कमी है)...भला हो भगवान् का जो कुछ महिलाएं ऐसी भी छोड़ दीं...हम लोगों के लिए...हा...हा...हा...फागुन बौराया है...बुरा ना मानियेगा...होली की अग्रिम शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंविवाह की वर्षगांठ पर जोड़ी ब्रेकर, वाह क्या आयडिया है आपका। आपको मुबारक हो यह विवाह का दिन।
जवाब देंहटाएंये ही पल अकेलेपन में एक-दूसरे का संबल होते हैं और रिश्तों की डोर थामे रहते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह वाह.. मन खुश हो गया पढ़कर.. आप बहुत अच्छा लिखते हैं मनोज जी, बहुत कुछ सीखने को मिलेगा यहां से..
जवाब देंहटाएंलव तो होना ही था जी ......होता ही है, होने के लिए .और अब हो ही गया तो .... कहाँ ही पड़ेगा ,पर थोडा देर से अहसास हुआ ....शुक्रिया जी डॉ साहब ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है
जवाब देंहटाएंदो दर्जन साल बाद भी
रह गया आपको याद
शादी के जन्म दिन की
बहुत बहुत मुबारकबाद !