पड़ें नहीं धरती पर गोरी के पांव
श्यामनारायण मिश्र
महुए की गंध
और अमुआं की छांव,
चैत की उमंगों में झूम रहा गांव।
बौराई पवन चले
बगिया से हरहर
खेतों में कंगना
खनकाय रही अरहर।
पड़ें नहीं धरती पर गोरी के पांव।
चौरस खलिहानों से
गांव घिर गये,
ग्राम्य-लक्ष्मी के आज
भाग्य फिर गये।
जीत लिया धरती से पौरुष ने दांव।
सिर पर है बोझ
और मुख पर मुस्कान,
ग्राम्य वधु खेतों से
आती खलिहान।
डोल रही मेड़ों पर लहंगे की नाव।
महुए की गंध
जवाब देंहटाएंऔर अमुआं की छांव,
चैत की उमंगों में झूम रहा गांव।
सचित्र सुंदर वर्णन ...
मनभावन प्रस्तुति पर
हटाएंबहुत बहुत आभार |
खेतों में कंगना
जवाब देंहटाएंखनकाय रही अरहर।
वाह! कितना सुन्दर चित्रण... सुन्दर गीत...
सादर आभार.
माटी की सोंधी गंध समेटे ऋतु का यह गीत मन महका गया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रण किया है रचना में,
जवाब देंहटाएंमहुए की गंध
और अमुआं की छांव,
चैत की उमंगों में झूम रहा गांव।
बचपन से महुए की इस गंध से मै परिचित हूँ !
सिर पर है बोझ
जवाब देंहटाएंऔर मुख पर मुस्कान,
ग्राम्य वधु खेतों से
आती खलिहान।
डोल रही मेड़ों पर लहंगे की नाव।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
महुए की गंध
जवाब देंहटाएंऔर अमुआं की छांव,
चैत की उमंगों में झूम रहा गांव। wah....kya baat hai.
badhiya geet..... medon par lahro kee naav ka vimb sarvatha naveen hai
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गीत्।
जवाब देंहटाएंअहा...मनमोहक...अतिसुन्दर ...
जवाब देंहटाएंमन और आँखें सरस शीतल कर गयी रचना...
आपकी इस पोस्ट की भाषा ने जो गाँव का चित्र खींचा है वो बहुत ही प्रभावशाली है। बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंमनमोहक गीत
जवाब देंहटाएंगाँव का बहुत ही सुन्दर चित्र खीचा गया है इस नवगीत में ... सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमहुए की गंध
जवाब देंहटाएंऔर अमुआं की छांव,
चैत की उमंगों में झूम रहा गांव
वाह ...बहुत ही बढिया।
shabdon ke rang ranga behtarin chitra...behad sanjeedgi se kiya gaya gramya parivesh ka rochak chitran..sadar pranam ke sath
जवाब देंहटाएंनवगीत काफी मोहक है। पर "डोल रही मेड़ों पर लहँगे की नाव" बड़ा ही अटपटा प्रयोग है।
जवाब देंहटाएंअद्भुत, रसमय, श्रंगारमय..
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा...मनभावन नवगीत........
जवाब देंहटाएंसादर.
bahut sundar
जवाब देंहटाएंसिर पर है बोझ
जवाब देंहटाएंऔर मुख पर मुस्कान,
ग्राम्य वधु खेतों से
आती खलिहान।
डोल रही मेड़ों पर लहंगे की नाव।
ग्राम्यांचल का इससे सुन्दर सजीव वर्रण और क्या हो सकता है ?
महुए की गंध
जवाब देंहटाएंऔर अमुआं की छांव,
चैत की उमंगों में झूम रहा गांव।
गाँव जी उठा आपकी रचना में ...बहुत सुन्दर
उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंवाह, आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
महुए की गंध
जवाब देंहटाएंऔर अमुआं की छांव...
बढ़िया शब्द चित्र ...बधाई आपको !
वाह मनोज जी ! चैत का महीना और ग्राम्य परिवेश का इतना सुन्दर वर्णन ..सादर
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