फ़ुरसत में … 94
गोद में बच्चा और कोना में ढिंढोरा
मनोज कुमार
साल 2009 में दुर्घटनाबस हमारा ब्लॉग बन गया। नया-नया नेट लिए थे घर में, ब्रौडबैंड! नया मुरगी थोड़ा कुकरू कूं ज़्यादा करता है, सो समय-बेसमय बइठ जाते थे कंप्य़ूटर पर और एन्ने-ओन्ने घूमते रहते थे। जी-मेल में एकाउंट था नहीं, सो किसी तरह टो-टा के जी-मेल का एकाउंट खोले ही थे, कि एक ठो विज्ञापन टाइप का कुछ देखाई दिया - “ओपेन योर ब्लॉग, इइट्स फ़्री।“ माले मुफ़्त दिले बेरहम! मंगनी का कुच्छो मिले, त हम त टूटिए पड़ते हैं। ई त हमरा जनमजात स्वभाव था अऊर अब तो अधिकारो बन गया है।
बस, जो सब पूछता गया; भरते गए अऊर अंत में बोलिस कि कान्ग्रेचुलेशन!! आप एक ठो ब्लोग के मालिक हो गए हैं। पोस्ट लगाइए। हम त खुसी से ओइसहीं चिल्लाए जैसे यूरेका-यूरेका करके आर्केमीडिज चिल्लाया होगा। लगा कि देस का बड़का साहित्तकार बनने का कुंजी हमरे हाथ लग गया है अउर कुच्छे दिन में हम साहित्त्कार सब के अगिलका लाइन में बइठे हुए पाए जाएंगे।
जब बोला एगो पोस्ट ठेलिए, त हम एगो छोटका कहानी, जो पहिले से लिखा हुआ था, ओही पोस्ट कर दिए। हाथ पीछे ले जाकर अपना पीठ ठोके अऊर कम्प्युटर का मॉनिटर के तरफ ताक के, मने मन बुदबुदाए – “मनोज - द ग्रेट साहित्यकार!” तब हमरो नहीं मालूम था कि इसको ब्लोगिंग अउर इसको लिखे वाला को ब्लोगर कहते हैं। जल्दबाजी में ब्लोग का नामो अपने ही नाम पर धरा गया था। ओ घड़ी का मालूम था कि जो सवाल पूछा जा रहा है (अंगरेज़ी में प्रश्न था), ओही हमरे ब्लोग का नाम हो जाएगा अउर तब का मालूम था कि नाम कुछ अलगे टाइप का रखना चाहिए था। जइसे – आलू बुखारा, चस्मे-चिराग़, नूरे-नज़र ... कास! ऐसने कोनो नाम रख लिए होते ...! अपना नाम तो आज तक कोनो करामात दिखाया नहीं था, इहां का दिखाता।
पोस्टवा ठेलने के बाद हम अपने को ओहाँ खड़ा महसूस कर रहे थे, जहाँ सिनमा में अमिताभ अऊर राजनीति में लालकिसन आडबानी जी थे। उसके पहिले ब्लोग का मतलब ओही लोग का लिखल हम जानते थे। अखबार में ई लोग का नाम आता था - आज इन्होंने अपने ब्लोग पर ई लिखा, आज इन्होंने अपने ब्लोग पर ऊ लिखा।
ई सब हो जाने के बाद अपने मित्र अउर रिस्तेदार सबको बताए कि भाई हमहूं बरका आदमी हो गए हैं, काहे कि हमरो एक ठो ब्लोग है। दू-तीन दिन बीत गया। एक्को कमेंट नहीं आया। करन, अपना भतीजा, उसको भी बताए कि ई बात है। ऊ आई.टी. सेक्टर में काम करता है अऊर पहिले से एगो ब्लोग में मैथिली में कुछ लिखा करता था। त चचा का लाज बनाने के लिए हमरे ब्लोग पर आ के एगो टिप्पनी मार गया।
दोसर दिन एगो कबिता लगा दिए ब्लोग पर। एक दिन बाद सोभना चौरे जी का एगो कमेंट आया तब खुसी का ठिकाना नहीं रहा, बुझाया कि हमरा लिखना सार्थक हुआ. ऐसहिंए ‘कर्सर’ घुमा रहे थे, त गलती से कुछ क्लिक हो गया अऊर हम उनके ब्लोग पर पहुंचे। क्लिक-फ्लिक करके हमरा ज्ञान का गगरी भरने लगा अऊर जाने कि और भी बहुत सा ब्लॉग है, ब्लोगर हैं, विजेट है, एग्रीगेटर है आदि-आदि। एक रोज घूमते-घामते “चिट्ठाजगत” पर पहुंचे। वहां रजिस्ट्रेसन करबाया और कोई दस-बारह हजार का नम्बर मिला। ओहीं से जाने कि इहाँ पर टॉप पचास ब्लोग का लिस्ट होता है। उसका नम्बर ‘बिनाका गीत-माला’ के पायदान की तरह ऊपर-नीचे होता रहता है। हमरो जूनून सबार हो गया, ऊ पचास में घुसने का। अंदर का खबर मालूम हुआ कि जो जितना टिपियाएगा, उतना बड़ा ब्लोगर कहलाएगा, तो बिस्वस्त सूत्र से ज्ञात हुआ कि जो जितना टिप्पनी पाएगा, ओतना बड़ा ब्लोगर कहलायेगा। त हमहूं रात-रात भर जग के जगह-जगह टिपियाये फिरते थे।
हमरे बड़े-भाई हमको समझाए कि तुम काहे एन्ने-ओन्ने बौराये फिरते हो (उनके कहने का मतलब था कि कटोरा ले-के काहे…) पागल हो गए हो, ई बात नोट कर लो कि भीख माँगने से भीख मिलता है, साम्राज्य नहीं, साम्राज्य अर्जित करना पड़ता है, सामर्थ्य से!!
सेयर मार्केट के तरह ब्लोग का रेटिंग बढ़ता-घटता रहता था। का-का करामात होता था. आगे पोस्ट, पाछे पोस्ट, पोस्ट के ऊपर पोस्ट, गाली पर पोस्ट, पोस्ट पर गाली, नामी पोस्ट, बेनामी पोस्ट, ईनामी पोस्ट … हम सब छोटका ब्लोगर लफंदरगिरी करते रहते थे, अऊर बडका ब्लोगर लोग - दादा गिरी। कोनो न कोनो बात-बेबात लेकर लड़ाई-झगड़ा। उसपर नामी-बेनामी का टिपियाना। कभी एन्ने कुछ बोल आये, त ओन्ने धरा गए कि ऐसा क्या लिखे, काहे लिखे। एन्ने कोनो गट्टा पकड़ता, ओन्ने कोनो कॉलर धरता... का बताएं!! एकदम टूअर के तरह एन्ने-ओन्ने बौआते रहते थे। कभी अन्ताक्छरी खेल आते, त कभी गाली-गलौज बाले पोस्ट पर अपना गियान बघार आते। ई सब करते-धरते चिट्ठाजगत का हमरा रेटिंग घटते-घटते (इहाँ नंबर घटने का माने ऊंचाई पर पहुँचना होता था) सौ के नीचे आ गया। मगर हमरा किस्मत भी हमारे ब्लॉग के तरह एक्सीडेंटली लिखाया था, जैसहीं हमरा रेटिंग पचास से साठ के बीच में था कि चिट्ठाजगत ही बंद हो गया अऊर हमरा आस धरा का धरा रह गया कि कभी हम भी टॉप फ़िफ़्टी में पहुंचें।
आज न ऊ देबी है, न कराह। केतना लोग जो ई सब खेला के सूत्रधार थे आज नेपथ्य में चले गए हैं अऊर हैं भी, त हमको पता नहीं। अब हमहुं तो नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे बौउआते नहीं हैं। बड़े भाई की सलाह पर अमल कर लिए हैं भीख माँगने से भीख मिलता है, साम्राज्य नहीं.. साम्राज्य अर्जित करना पड़ता है सामर्थ्य से!! अब तो जो हमरे इहां आते हैं, हम भी उनके इहां ही जाते हैं। अपना दायरा (सामर्थ्य) सीमित हो गया है। कुछ नया लोग से दोस्ती हो गया है, तs कुछ पुराना लोग.... …! अब जाने भी दीजिए!!
मौसम की तरह ब्लोगजगत का तापमान भी आजकल अस्थिर रहता है। ऊ टाइम भी था मगर कुछ ज़्यादा ही था। एही हफ्ता के सुरुआत में मुम्बई/दिल्ली/देहरादून जाना था। ऊहां के एगो ब्लोगर मित्र से पूछे कि उहां का तापमान कैसा है? त ऊ बताए, दिन में गरम है.. भोर और रात में हल्का ठंड लगता है. एगो स्वेटर रख लीजियेगा.. या खुला जैकेट.. । अब हमरे पास जैकेट त चंडीगढ़ के ठंड वाला था। सोचे स्वेटर ही लेते जायेंगे। पछिला साल फरवरी में गए थे। वहां शाम होते होते एगो स्विटर खरीदना पड़ा था। सो रिस्क लेना ठीक नहीं था। जैकेट से एगो फ़ायदा था कि उसको सामने से खोल सकते हैं .. स्वेटर में गरमी लगा तो लादना पडता। खैर यात्रा दो दिन भर का है, लेकिन वापसी का फ़्लाइट आठ बजे वाला हैं सो शाम के लिए कुछ त रखना पड़ेगा। मित्र बताए हां रख लीजिए.. काहे कि नेगलेक्ट भी नहीं कर सकते हैं.. ठंडा का मिजाज पत्नी से ज्यादा सख्त है यहाँ पर!!
खैर! ब्लोगिंग से अउर कोई फायदा हुआ या नहीं एतना तो जरूर हुआ है कि कुछ निमन दोस्त बन गए हैं जिनके साथ चैटिया लेते हैं, उनके सहर जाते हैं तो बतियाइयो लेते हैं। केतना बार त हम लोगों के साथ का चैट भी छाप देते हैं "फुर्सत में" कभी वह मनोरंजक बन जाता है .. कभी मन-भंजक।
दरअसल चैट से जो पोस्ट निकलता है वह बहुत करामाती होता है ... इसका कारन भी है .. अपना पोस्ट में एक दिमाग काम करता है .. चैट में दो दिमाग लगा होता है .. यहाँ दो शैलियों का मिश्रण होता है.. यह एक त्वरित प्रतिक्रया होती है, जो नेचुरल होता है। सोच कर लिखिए त कुछ न कुछ कृत्रिम तो हो ही जाता है
अपने ब्लोगर मित्र से चैट करते-करते हमरा पोस्ट पूरा होने को आ गया। तभी ऊ कहते हैं चलिए अब गुड़ नाईट.. लापता गंज और एफ.आई.आर. का टाइम हो गया.. हम उनको बताते हैं अरे ऊ त साथ में चल ही रहा है ... हमारा त बाएं तरफ़ लैप टोप होता है दाएं तरफ़ टीवी … गर्दन घुमा-घुमा कर दुन्नो काम करते रहते हैं। … कभी कभी त लैप टोप के स्क्रीन में ही टीवी का सीन देख लेते हैं। माने कि गोद में बच्चा (लैपटॉप) और कोना में ढिंढोरा (टीवी)!
हाहहहह
अपने के तो जबाबे नै है। जे हे से की एक दम सचे सचे लिख देलखिन। हमरो साथ ऐसने कुछ होलै।
जवाब देंहटाएंरोचक दास्ताँ ब्लॉगिंग के सफर की ...और तापमान का क्या , घर /प्रान्त /देश/दुनिया का भी घटता बढ़ता रहता है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जात्रा रही यह...सबै के कहानी यही तरा के है !
जवाब देंहटाएंमनोरंजक और होली की तरंग में लिखी गई पोस्ट !
rochak
जवाब देंहटाएंबिहारी हिंदी में लिखी कईयों की आपबीती, यह तो ब्लॉग्गिंग जगत के विकास का क्रम है जिससे हर ब्लॉगर गुजरता है, कुछ सफल होते हैं साम्राज्य पाते हैं, तो कुछ विलुप्तप्राय या फिर बिलकुल ही विलुप्त.
जवाब देंहटाएंअब तो आप बड़का ब्लागर बन लिये। बधाई!
जवाब देंहटाएंमनोज जी,...शुरू२ में अपना भी यही हाल था,अब धीरे२ सब समझ में आता जा रहा है,...
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
ब्लॉग जगत का सच्चा चिट्ठा .... बड़का ब्लॉगर बनाने की बधाई ....
जवाब देंहटाएंएकदमे फुर्सतियाये है आज त . हम त बहुते छोटका ब्लोगर है बस एन्ने -ओन्ने घुमत रहत है औरी समराज क बात छोरिये अभी त मनसबदारी के लायक भी ना बन पाए . मजा आ गइल.
जवाब देंहटाएंbehad manoranjak......
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग एक बुखार की तरह जो कभी तेज़ी से कभी शीरे से चढ़ता उतरता रहता है ...
जवाब देंहटाएंपर आप एक स्थापित ब्लोगर हैं जो खाली टिप्पणियों से नहीं बनते ...
ए भाई जी! अब त बुझाता है कि हमरो कम्पिटीसन दे रहे हैं आप!! कमाल का अनुभव लिखे हैं भाई जी.. हर छोटा बड़ा ब्लॉगर कभी न कभी ई अनुभव से जरूर गुजरा होगा!! एकदम्मे से पुराना टाइम में ले गए आप! अब त आपका ब्लॉग जगत के प्रति निष्ठा देखकर लगता है कि सम्राट बनाने का लगन आपको साधु बना दिया है... एही है ई बिहार भूमि का देन! लगे रहिये!!
जवाब देंहटाएंinteresting...............
जवाब देंहटाएंहा हा हा………रोचक अन्दाज़्।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रोचक लगी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंचलो जी ये दुर्घटना भी अच्छी रही
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत अच्छी पोस्ट लगी। वैसे स्मृति-शिखर पर इसे देना चाहिए था।
जवाब देंहटाएंदरअसल चैट से जो पोस्ट निकलता है वह बहुत करामाती होता है ... इसका कारन भी है .. अपना पोस्ट में एक दिमाग काम करता है .. चैटमें दो दिमाग लगा होता है .. यहाँ दो शैलियों का मिश्रण होता है.. यह एक त्वरित प्रतिक्रया होती है, जो नेचुरल होता है। सोच कर लिखिए त कुछ न कुछ कृत्रिम तो हो ही जाता है...behad shaanaar dil ko choone wala lekh...rochakta ke sath paine shabd roopi teer....aapka hamara kam likhna hai..sahitya kee maulikta prayas nahi aati...aaur maulikta ka koi jabab nahi...uddhrit panktiyon me sahityaekhan ka ek brihat darshan chupa hai,,sadar badhay ke sath
जवाब देंहटाएंआपकी तरह हम भी दोनों काम कर लेते हैं..टीवी भी, ब्लॉग भी।
जवाब देंहटाएंसब्र का फल अवश्य मिलता है...ये नए ब्लोगर के लिए सन्देश है...कि भैया लगे रहो...जब मैंने शुरुआत की तो लगता था खुद ही टिपियाना पड़ेगा...और कोई पढ़ भी रहा है ये पता नहीं चलता था...लेकिन जब एक कविता पर अनजाने लोगों की टिप्पणियां आ गयीं तो पता चला कि ब्लॉग पढ़ने वाले भी हैं...ये टिट फॉर टैट वाला सूत्र अब पता चला है...और मठाधीशी का भी...लेकिन कुछ भी हो छपवाने से तो अच्छा ही विकल्प है...आज निश्चय ही 'मनोज' को जो स्थान प्राप्त है...उसके लिए आपका सकिय और नियमित लेखन बधाई का पात्र है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक वृतांत था ....शीर्षक का अर्थ पोस्ट के आखिर में ही समझ में आया .
जवाब देंहटाएंयहां सब तरह के लोग हैं। इसलिए,सबको अपने टाइप का मिल जाने की संभावना है। वैसे हम,अपने से भिन्न टाइप के लोगों की तलाश में रहते हैं।
जवाब देंहटाएंकोसी कमला के पानी का बहाव और मिठास दोनों है आपके पोस्ट.
जवाब देंहटाएंअब तक तो लिखा है आपने, अब बोलकर भी सुनाईये......:-)
जवाब देंहटाएंब्लाग और टीवी साइड बाइ साइड बहुत अच्छा रहता है -चाहे जब इधर ,जब चाहो उधर !
जवाब देंहटाएंआनन्ददायक पोस्ट है। ब्लागवाणी का वर्णन नहीं किया। कैसे लठ्ठमार होली होती थी वहाँ! अब तो बस तिलक होली जैसा हाल है बस।
जवाब देंहटाएंbahut badiya rochak sarthak prastuti..
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक पोस्ट....
जवाब देंहटाएं:):) क्या कमाल कमाल की बात कह गए हैं आप भी मजाक मजाक में..और हम हैं कि आज देख पाए हैं यह पोस्ट क्या करें अपने यहाँ की होली में व्यस्त थे.वह रंग छूटा तो यहाँ मिल गया जबर्दस्त्त वाला.
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