जूड़े से,
जुही कहीं महकी,
दिशा-दिशा बहकी,
पोर-पोर गांठ खुली मन की।
पानी की पर्त सभी आवरण हुए,
तार तार संस्कार-आचरण हुए,
अंग-अंग फूल हुए,
ओठ से पराग चुए,
जन्मों की प्यास धुली मन की।
एक आग तैर रही मौन जल रहे,
भीतर के अटे हुए हिम पिघल रहे,
भावों के भंवर जाल,
मत्त हुआ मन मराल,
लहरों पर नाव तुली तन की।
काल के प्रवाह बीच पांव टिक गए,
लहर-लहर श्वांसों के छंद लिख गए,
उम्र के विहान रुके,
देह के वितान झुके,
आन-बान-शान धुली मन की।
पानी की पर्त सभी आवरण हुए,
जवाब देंहटाएंतार तार संस्कार-आचरण हुए
सशक्त।
बहुत प्यारा लगा ये नवगीत ,वाह.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत!
जवाब देंहटाएंकाल के प्रवाह बीच पांव टिक गए,
जवाब देंहटाएंलहर-लहर श्वांसों के छंद लिख गए,
उम्र के विहान रुके,
देह के वितान झुके,
आन-बान-शान धुली मन की।
बहुत ही मनभावन रचना..बहुत भावमयी सुन्दर प्रस्तुति..
"पानी की पर्त सभी आवरण हुए,
जवाब देंहटाएंतार तार संस्कार-आचरण हुए,
अंग-अंग फूल हुए,
ओठ से पराग चुए,
जन्मों की प्यास धुली मन की।
एक आग तैर रही मौन जल रहे,
भीतर के अटे हुए हिम पिघल रहे,
भावों के भंवर जाल, मत्त हुआ मन मराल,
लहरों पर नाव तुली तन की।"
सुन्दर गीत.. पढ़ कर मन भीग जाता है.. आनंद आ जाता है.. इस रसमय नव गीत की प्रतुती के लिए बहुत बहुत आभार !
शब्द नहीं मेरे पास जो इसके रस और सौन्दर्य की प्रशंसा में मैं कह पाऊं....
जवाब देंहटाएंअद्वितीय !!! अप्रतिम !!!!
बहुत सुन्दर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंपानी की पर्त सभी आवरण हुए,
तार तार संस्कार-आचरण हुए...
Lovely lines ..
.
एक आग तैर रही मौन जल रहे,
जवाब देंहटाएंभीतर के अटे हुए हिम पिघल रहे,
भावों के भंवर जाल,
मत्त हुआ मन मराल,
लहरों पर नाव तुली तन की।
वाह, वाह !
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं !
मनोज जी ,इतना सुन्दर नवगीत पाठकों तक पहुंचाने के लिए साधुवाद !
aadarniy sir fir vilamb se hi pahunch rahen hainaapke blog par .par dil me sharmindagi bhi hai ki main jaldi jaldi nahi aa paa rahi hun .karan aap jante hi han.
जवाब देंहटाएंpar aapki post bahut higahan bhav ko abhivykat karti hai .kavi var shyam narayan mishr ji li kavitaayen hamne apne cours me padhi hain.itne mahaan kavi ke baare me main kaya likhun .
काल के प्रवाह बीच पांव टिक गए,
लहर-लहर श्वांसों के छंद लिख गए,
उम्र के विहान रुके,
देह के वितान झुके,
आन-बान-शान धुली मन की।
bahut bahut behtreen rachna
badhai v
naman
poonam
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं--
पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!
सुंदर और मनोहारी नवगीत| शब्द सज्जा अनुपम और भावों का सफल चित्रण| नमन|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुमधुर ....रसमयी ..सुंदर रचना ..
जवाब देंहटाएंजितनी तारीफ़ की जाये कम है ...!!
बहुत सुंदर नवगीत है, मिसिर ही का। पढ़ने के साथ ही लय में मन दाखिल हो जाता है। आभार!
जवाब देंहटाएं@ मिसिर ही का।
जवाब देंहटाएं-- विनम्र सुधार , मिसिर जी का।
उन्र के विहान रूके,
जवाब देंहटाएंदेह के वितान झुके,
आन-बान शान धुली मन की।
मन के अप्रतिम भावों को दर्शाता मिश्र जी का नवगीत 'उम्र के विहान' की शब्द योजना और काव्य सौष्ठव अच्छा लगा।
bahut sunder prem ras me doobe bhavo kee abhivyktimanhsthitee ka sshakt chitran.
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR LAGA YAH NAWGEET .
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत....भावमयी रचना!!
जवाब देंहटाएंमिश्र जी को पढ़ने का आनन्द ही अप्रतिम है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत।
आभार,