रविवार, 8 मई 2011

भारतीय काव्यशास्त्र – 65

भारतीय काव्यशास्त्र – 65

- आचार्य परशुराम राय

पिछले अंक में अर्थशक्त्युत्थ ध्वनि के तीसरे भेद-कविनिबद्धवक्तृप्रौढोक्तिसिद्ध ध्वनि के चार भेदों- वस्तु से वस्तु व्यंग्य, वस्तु से अलंकार व्यंग्य, अलंकार से वस्तु व्यंग्य और अलंकार से अलंकार व्यंग्य पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में उभयशक्त्युत्थ ध्वनि और ध्वनि के अन्य भेदों पर चर्चा की जाएगी।

जहाँ व्यंग्य शब्द और अर्थ दोनों की शक्ति सिद्ध होता है, वहाँ उभयशक्त्युत्थ ध्वनि होती है। इसके अन्य भेदोपभेद नहीं होते। अन्य ध्वनि के पद, वाक्य आदि के अनुसार अन्य भेद भी किये गये हैं। पर उभयशक्त्युत्थ ध्वनि केवल वाक्यगत ही होती है। जैसे-

अतन्द्रचन्द्राभरणा समुद्दीप्तमन्मथा।

तारकातरला श्यामा सानन्दं न करोति कम्।।

यहाँ श्यामा शब्द के दो अर्थ- रात्रि और षोडशवर्षीय नायिका हैं। इस श्लोक का अर्थ है- बादलों से अनाच्छादित प्रकाशमान चन्द्रमा (षोडशवर्षीय नायिका के पक्ष में सिर पर पहना जाने वाला एक प्रकार का चन्द्राभरण) से विभूषित और कामदेव को उद्दीप्त करने वाली श्यामा (रात्रि और षोडशवर्षीय नायिका) किसको आनन्दित नहीं करती, अर्थात् सभी को आनन्दित करती है।

यहाँ इस श्लोक में चन्द्रमा से विभूषित श्यामा अर्थात् रात्रि की चन्द्राभूषण से अलंकृत श्यामा अर्थात् षोडशवर्षीय नायिका से की गयी उपमा व्यंग्य है। अतएव यहाँ उपमालंकार व्यंग्य है। चूँकि यह व्यंग्य शब्द और अर्थ दोनों के संयोग से ध्वनित हो रही है, इसलिए यह उभयशक्त्युत्थ ध्वनि का उदाहरण है।

ध्वनि के अन्य अवान्तर भेदों पर चर्चा करने के पूर्व पुनः एकबार संक्षेप में अबतक की ध्वनि के विभिन्न भेदोपभेदों की गणना करना आवश्यक है, ताकि समझने में सुविधा हो।

अबतक हमने देखा कि ध्वनि के दो भेद- अविवक्षितवाच्य (लक्षणामूलध्वनि) और विवक्षितवाच्य ध्वनि (अभिधामूलध्वनि), लक्षणामूलध्वनि के दो भेद- अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य और अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य ध्वनि, विवक्षितवाच्यध्वनि (अभिधामूलध्वनि) के दो भेदों – असंलक्ष्यक्रम ध्वनि और संलक्ष्यक्रम ध्वनि। इसके बाद असंलक्ष्यक्रम ध्वनि का केवल एक भेद, संलक्ष्यक्रम ध्वनि के कुल 15 भेद (2 शब्दश्क्त्युत्थ ध्वनि+12 अर्थशक्त्युत्थ ध्वनि+1 उभयशक्त्युत्थ ध्वनि)। इस प्रकार विवक्षितवाच्य ध्वनि (अभिधामूलध्वनि) के कुल 16 भेद हुए। यदि अविवक्षितवाच्य ध्वनि (लक्षणाममूलध्वनि) के 2 भेदों को मिला दिया जाय तो कुल संख्या अठारह हो जाती है। इनमें से उभयशक्त्युत्थ ध्वनि को छोड़कर अन्य 17 ध्वनियों के पदगत और वाक्यगत दो-दो भेद, अर्थात् कुल 34 भेद हो जाते हैं।

अब इन सत्रह ध्वनियों के पदगत भेदों को उदाहरण द्वारा क्रमशः समझते हैं। सर्वप्रथम अविवक्षितवाच्यध्वनि के दो भेदों- अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य ध्वनि और अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य ध्वनि- के पदद्योत्य (पदगत) उदाहरण लेते हैं।

अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य ध्वनि-

यस्य मित्राणि मित्राणि शत्रवः शत्रवस्तथा।

अनुकम्प्योSनुकम्प्यश्च स जातः स च जीवति।।

अर्थात् जिसके मित्र मित्र हैं और शत्रु शत्रु हैं एवं जिसके कृपापात्र कृपापात्र हैं वही भाग्यशाली व्यक्ति वास्तव में उत्पन्न हुआ है और वही जीता है, अर्थात् जिस व्यक्ति के मित्र मित्र, शत्रु शत्रु और कृपापात्र कृपापात्र हैं, उसी का जन्म लेना और जीना दोनों सार्थक हैं या जिसके मित्र, शत्रु और कृपापात्र सदा यथावत रहते हैं, उसका जन्म और जीवन दोनों सार्थक हैं।

यहाँ दूसरी बार आए मित्र, शत्रु और कृपापात्र शब्द क्रमशः आश्वस्तता, नियंत्रणीयता और स्नेहपात्रता दूसरे अर्थ में संक्रमित हो जा रहे हैं। अतएव यहाँ अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य ध्वनि के पदगत (पदद्योत्य) व्यंग्य है।

निम्नलिखित दोहा पदद्योत्य अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य ध्वनि का एक अच्छा उदाहरण है-

राधा अति गुन आगरी स्वर्न बरन तनु रंग।

मोहन तू मोहन भयो परसत जाके अंग।।

यहाँ पहली बार आया मोहन शब्द कृष्ण का वाचक है, जबकि दूसरी बार प्रयुक्त मोहित करने की सामर्थ्य से युक्त अर्थ में संक्रमित हुआ है।

पदद्योत्य अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य ध्वनि का उदाहरण-

खलववहार दीसन्ति दारुणा जहवि तहवि धीराणाम्।

हिअअवअस्सबहुमआ ण हु ववसाआ विमुज्झन्ति।। (प्राकृत भाषा में)

(खलव्यवहारा दृश्यन्ते दारुणा यद्यपि तथापि धीराणाम्।

हृदयवयस्यबहुमता न खलु व्यवसाया विमुह्यन्ति।। संस्कृत छाया)

अर्थात् यद्यपि दुष्टों के व्यवहार बड़े ही दारुण दिखते हैं, फिर भी हृदयंगम मित्र द्वारा अनुमोदित धीर पुरुषों के निश्चय भंग नहीं होते, अर्थात् दुष्टों द्वारा कार्य में विघ्न डालने पर भी धीर व्यक्ति अपने निश्चय पर अटल रहते हैं।

यहाँ विमुह्यन्ति पद में पदद्योत्य अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य ध्वनि है।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. मनोज जी मेरे तो सिर पर से निकल गया ये आलेख एक बार पढने से समझ मे नही आया इसे बुकमार्क कर लिया है। बहुत कुछ नया, अनोखा ग्यानवर्द्धक दुर्लभ ग्यान है आपके ब्लाग पर। इस ग्यान भंडार को बाँटने के लिये धन्यवाद।

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  2. अर्थात् यद्यपि दुष्टों के व्यवहार बड़े ही दारुण दिखते हैं, फिर भी हृदयंगम मित्र द्वारा अनुमोदित धीर पुरुषों के निश्चय भंग नहीं होते, अर्थात् दुष्टों द्वारा कार्य में विघ्न डालने पर भी धीर व्यक्ति अपने निश्चय पर अटल रहते हैं।

    I agree !

    .

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  3. बहुत ज्ञानवर्धक सुन्दर पोस्ट!
    --
    मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
    --
    बहुत चाव से दूध पिलाती,
    बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
    सीधी सच्ची मेरी माता,
    सबसे अच्छी मेरी माता,
    ममता से वो मुझे बुलाती,
    करती सबसे न्यारी बातें।
    खुश होकर करती है अम्मा,
    मुझसे कितनी सारी बातें।।
    "नन्हें सुमन"

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  4. बहुत ज्ञानवर्धक हर बार की तरह.

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  5. एक बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट।

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