फ़ुरसत में …..
‘यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे।’
मनोज कुमार
आज कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 150वीं वर्षगांठ है। अपनी संस्कृति के प्रति असीम श्रद्धा रखते हुए उन्होंने विश्व-कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। इस विश्व-कल्याणकारी महान आत्मा के चरणों में बारंबार नमन।
विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर अमर विभूति हैं। आचरण की पवित्रता और दिव्य संदेश के सहारे उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को सच्ची राह दिखाई। कविता, चित्रकला, नाटक, संगीत की दुनिया में उनका विशेष स्थान है। गीति-कवि की दृष्टि से पूरे विश्व में उनकी बराबरी करने वाला अन्य कोई कवि नहीं है।
सृजनात्मक प्रेरणा उनमें इतनी बलवती थी कि साठ वर्ष से अधिक समय तक निरंतर साहित्य रचन के बाद भी क्षीण नहीं हुई। कवि ने अपनी जिस साधना से मानव-जीवन में प्रेम को उच्चतम धरातल में अधिष्ठित किया था, वही साधना ‘गीतांजलि’ के रूप में स्फुरित हुई।
मुझे उनका गीत ‘यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे।’ हमेशा से प्रेरित करती रही है। इस गीत में सार्थक आत्मविश्वास से भरे जीवन का दर्शन हुआ है। इसका अनुपालन हमें हर स्थिति में करनी चाहिए। हमें किसी के साथ की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हम न तो सभी को प्रसन्न रख पाएंगे और न ही सभी को अपने साथ चलने के लिए प्रेरित कर पाएंगे। इस आस में हम आगे बढ़ने के वजाए रुके रहें तो यह जीवन की सार्थकता की आहुति देने के समान होगा। यह हमारी मानसिक निर्बलता का परिचायक ही होगा।
इसका गीत का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हम सबका विरोध करें। न ही यह हमें प्रेरित करता है कि हम सबके विपरीत चलें। इसका अर्थ तो सिर्फ़ यह है कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का अनुपालन करें - चाहे इसमें हमारा कोई साथ दे या ना दे। मैं देखता हूं कि लोग कहते हैं कि हम सुधार तो चाहते हैं पर कोई साथ नहीं देता। तो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित है? इससे तो अच्छा है कि हम अपने निर्धारित मार्ग पर चलते रहें। इतिहास गवाह है कि ऐसे मनुष्य ही मानवता के पथ-प्रदर्शक होते हैं जो एकला चलने में विश्वास रखते हैं। कई बार ऐसा हुआ है कि सभी उन्ही के पदों का अनुसरण करने लगते हैं।
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!
यदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे!
यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे!
**** जब वे तुम्हारी पुकार ना सुनें, तो एकला चलो! जब कोई तुमसे कुछ ना कहे, अरे अभागे, जब सब तुमसे मुंह फेर लें सब भयभीत हों - तब अपने अन्दर झांको अरे अपने मुंह से अपनी बात एकला बोलो। जब सब दूर चले जाएँ, अरे अभागे, जब कंटीले पथ पर कोई तुम्हारा साथ ना दे -- तब अपने पथ पर काँटों को अकेले ही पद-दलित करो। जब कोई प्रकाश न करे, अरे अभागे, जब रात काली और तूफानी हो -- तब अपने ह्रदय की पीड़ा के आवेश में अकेले जलो। ****
Walk alone ...and ..take the world in your stride ...!!
जवाब देंहटाएंएक्ला चौलो ..एकला चौलो ...एकला चौलो ...एकला चौलो रे .....!!
इतना सुंदर गीत ....और उतनी ही सुंदर प्रबल भावना से आज प्रात हुई ...!!
आभार ..मनोज जी ..!!
Manoj jee bhav bheenee shruddhanjalee yug puruh ko.
जवाब देंहटाएंaapke lekh ke dwara poora geet bhee padne ko mila jo bada hee preranadayak hai .......
aabhar
विश्व कविगुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं वर्षगांठ पर इस पोस्ट की प्रस्तुति उनके प्रति आपकी समर्पित अनुरागिता को स्वरूपेण एवं सर्वभावेन प्रदर्शित करती है। उनका गीत-'यदि तोर डाक शुने केऊ ना आसे तबे एकला चलो रे' आज के परिवेश मे हम सब के लिए एक प्रकाशस्तंभ सा वन गया है।आशा ही नही अपितु मेरा पूर्ण विश्वास है कि आप हमे साहित्य जगत के ऍसे हस्ताक्षरों से सर्वदा रू-ब-रू कराते रहेगे।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकविगुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं वर्षगांठ पर उन्हें मेरा नमन.
जवाब देंहटाएंजितने बढ़िया कवि.. उतने ही बढ़िया उपन्यासकार.. कथाकार.. संगीतकार... चित्रकार... विश्व में शायद ही कोई दूसरा रविन्द्र नाथ हुआ हो या हो कभी.... कवि गुरु टैगोर को सादर नमन... उनकी एक कविता जो मुझे सबसे प्रिय है और इंस्पायर भी करती है...
जवाब देंहटाएं.. वेयर दि माइंड इस विदाउट फीअर.. एंड हेड इज हेल्ड हाई
वेयर नालेज इज फ्री... इंटो दैट हेवेन आफ फ्रीडम माई फादर
लेट माई कंट्री अवेक....
बहुत भावपूर्ण और प्रेरणादायी गीत है यह ..... गुरुदेव को नमन
जवाब देंहटाएंमहात्मा और गुरुदेव का यह मिलन अच्छा लगा ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंपढ़ कर उत्साह से भर गया सरजी,
जवाब देंहटाएंगुरूदेव की रचना ने एक बार फिर से प्रेरणा भर दी जीवन में संधर्ष करने की। गुरूदेव के बारे में कुछ कहना तो सुर्य को दीया दिखाना होगा पर आपकों गुरूदेव के प्रति इस सम्पर्ण के लिए साधुवाद।
कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 150वीं वर्षगांठ पर आपने उनका अति लोकप्रिय गीत प्रस्तुत कर उनको सच्ची श्रधांजलि दिया है !यह गीत मनुष्य को विषम परिस्थितियों में भी अपने आत्मविश्वास के साथ गन्तव्य की ओर बढ़ते रहने को प्रेरित करता है !
जवाब देंहटाएंआभार !
रवीन्द्र नाथ जी की १५० वीं जयंती पर यह सार्थक श्रधान्जली प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय है. मैं आपके द्वारा व्यक्त विचारों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ. 'एकला चलो रे'मुझे भी बहुत पसंद है और मैं यथा-संभव इसका पालन करने का भी प्रयास करता हूँ.लगता है आपने मेरे दिल की ही बातें लिख दीं हैं.
जवाब देंहटाएंविलक्षण प्रतिभा धनी विरले ही होते हैं, रवीन्द्र जी एक उदाहरण हैं
जवाब देंहटाएंउन्होंने अविस्मरणीय रचनायें दी हैं इसमें किंचित मात्र कोई सँदेह नहीं, पर...
पर वह अँग्रेज़ एवँ अँग्रेज़ी प्रेम को लेकर विवादों में भी रहे हैं ।
मुझे उनकी ऎसी कोई रचना याद नहीं आती, जिसमें परिवर्तन का उद्घोष हो !
दादा, भालो !
जवाब देंहटाएंटैगोर का चिंतन मुझे बहुत पसंद आता है, इनका विश्व-मानवतावाद विशेष तौर पर। अच्छा लगा, कभी इसपर कुछ लिखूँगा।
एकला चलो रे, शूरमाओं के लिये मोती है। अच्छा लगा पढ़कर!! सुन्दर !
हर बार विश्वास भर जाता है यह गीत।
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.
जवाब देंहटाएंआप भी बन सकते इस ब्लॉग के लेखक बस आपके अन्दर सच लिखने का हौसला होना चाहिए.
समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
.
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एक प्रेरक गीत...गुरुदेव को शत शत नमन..
जवाब देंहटाएंGreat post ! with very inspiring song .
जवाब देंहटाएंगुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का गीत "एकला चलो रे" काफी प्रसिद्ध और प्रेरक रहा है। उन्हें शत-शत नमन।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव को शत शत नमन!! रवींद्र जैन ने इसी से प्रेरित होकर एक गीत लिखा था:
जवाब देंहटाएंसुनके तेरी पुकार,
संग चलने को तेरे कोइ
हो न हो तैयार
हिम्मत न हार,
चल चला चल, अकेला चल चला चल!!
एक्लो चौलो रे....कुछ बात तो है इस गीत में.जो सदियाँ बीत गईं पर प्रभाव आज भी वैसा है.
जवाब देंहटाएंआभार इतनी खूबसूरत पोस्ट का.
"एकला चलो.." ये मेरा सबसे पसंदिदार गाना है! बहुत सुन्दरता से आपने कविगुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं वर्षगांठ पर प्रस्तुत किया है! कविगुरू को मेरा शत शत नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट ...गुरुदेव को नमन ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट के लिए आभार