शिवस्वरोदय-43
आचार्य परशुराम राय
अयनतिथिदिनेशैःस्वीयतत्त्वे च युक्ते यदि वहति कदाचिद्दैवयोगेन पुंसाम्।
स जयति रिपुसैन्यं स्तम्भमात्रस्वरेण प्रभवति नहि विघ्नं केशवस्यापि लोके।।232।।
भावार्थ – सूर्य अथवा चन्द्रमा के अयन के समय यदि अनुकूल तत्त्व प्रवाहित हो रहा हो, कुम्भक करने मात्र से अर्थात् साँस को रोक लेने मात्र से बिना युद्ध किए विजय मिलती है, चाहे शत्रु कितना भी बलशाली क्यों न हो।
English Translation – During the flow of breath through the left or right nostril suitable Tattva is present, just holding the breath is sufficient to defeat the enemy without any war, whoever and how mighty the enemy is.
‘जीवं रक्ष जीवं रक्ष’ जीवाङ्गे परिधाय च।
जीवो जपति यो युद्धे जीवं जयति मेदिनीम्।।233।।
भावार्थ – जो व्यक्ति अपनी छाती को कपड़े से ढककर ‘जीवं रक्ष’ मंत्र का जप करता है, वह विश्व-विजय करता है।
English Translation – A person who recites the Mantra ‘Jeevam Raksh’ by covering his chest with cloth, he becomes competent to conquer the whole world.
भूमौ जले च कर्त्तव्यं गमनं शान्तकर्मसु।
वह्नौ वायौ प्रदीप्तेषु खे पुनर्न भयेष्वपि।।234।।
भावार्थ – जब स्वर में पृथ्वी या जल तत्त्व का उदय हो तो वह समय चलने-फिरने और शांत प्रकृति के कार्यों के उत्तम होता है। वायु और अग्नि तत्त्व का प्रवाह काल गतिशील और कठिन कार्यों के उपयुक्त होता है। लेकिन आकाश तत्त्व के प्रवाहकाल में कोई भी कार्य न करना ही उचित है।
English translation – The breath whether flows through right or left nostril and Prithvi or Jala Tattva is flowing we should walk or undertake work of peaceful nature. When Agni or Vayu Tattva rises in it, we should undertake hard or speed related work. But there is flow of Akash Tattva in the breath, better to avoid any work to undertake.
जीवेन शस्त्रं बध्नीयाज्जीवेनैव विकाशयेत्।
जीवेन प्रक्षिपेच्छस्त्रं युद्धे जयति सर्वदा।।235।।
भावार्थ – युद्ध में शत्रु का सामना करते समय जो स्वर प्रवाहित हो रहा हो, उसी हाथ में शस्त्र पकड़कर उसी हाथ से शत्रु पर प्रहार करता है, तो शत्रु पराजित हो जाता है।
English Translation – While fighting in war field with enemies, one should hold the weapon in the hand of the side through which nostril the breath is running and attack on the enemy. Thus he gets victory.
आकृष्य प्राणपवनं समारोहेत वाहनम्।
समुत्तरे पदं दद्यात् सर्वकार्याणि साधयेत्।।236।।
भावार्थ – यदि किसी सवारी पर चढ़ना हो साँस अन्दर लेते हुए चढ़ना चाहिए और उतरते समय जो स्वर चल रहा हो वही पैर बढ़ाते हुए उतरना चाहिए। ऐसा करने पर यात्रा निरापद और सफल होती है।
English Translation – At the time boarding in any vehicle we should do so while breathing in and we should take step with the foot of the side through which nostril breath is running. In this way our journey becomes safe and successful.
अपूर्णे शत्रुसामग्रीं पूर्णे वा स्वबलं तथा।
कुरुते पूर्णतत्त्वस्थो जयत्येको वसुन्धराम्।।237।।
भावार्थ – यदि शत्रु का स्वर पूर्णरूप से प्रवाहित न हो और वह हथियार उठा ले, किन्तु अपना स्वर पूर्णरूपेण प्रवाहमान हो और हम हथियार उठा लें, तो शत्रु पर ही नहीं पूरी दुनिया पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
English Translation – In case, an enemy holds the weapon to fight when his breath is not flowing in full swing and your breath is flowing fully and you hold the weapon, you will conquer not only the enemy, but even the world if desirable.
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ज्ञान का भंडार है...शिवसरोदय...स्वर के बारे में सुना था...कि जो स्वर चल रहा हो वही पैर सो कर उठने के बाद पहले नीचे रखना चाहिए...इस बात का आधार आज मिला...
जवाब देंहटाएंयदि किसी सवारी पर चढ़ना हो साँस अन्दर लेते हुए चढ़ना चाहिए और उतरते समय जो स्वर चल रहा हो वही पैर बढ़ाते हुए उतरना चाहिए। ऐसा करने पर यात्रा निरापद और सफल होती है।....
जवाब देंहटाएंयात्राओं के कारण कई दिन बाद ब्लॉग पर लौटी और आपकी अमूल्य पोस्ट की इन पंक्तियों ने यात्रा के अनुभव ताज़ा कर दिए।
बहुत ही सुन्दर और उपयोगी जानकारी मिली! आपके हर एक पोस्ट से नयी जानकारी मिलती है ! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंज्ञान का सागर है यह। बहुमूल्य पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबेहद ज्ञान वर्धक आभार.
जवाब देंहटाएंज्ञान के भण्डार में एक और खजाना. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक आलेख!
जवाब देंहटाएंआज की पोस्ट भी सदा की तरह मूल्यवान और ज्ञान वर्धक है।
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