श्यामनारायण मिश्र
कौन करे दिये-बत्तियां
तुमने जो लिखी नहीं
मैंने जो पढ़ी नहीं
आंखों में तैर रहीं चिट्ठियां।
छाती से
सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर,
अभी अभी बैठा हूं
आंखों के दरवाज़े
पलकें उढ़काकर।
भीतर ही भीतर
लगता है कोई
खोद रहा खत्तियां।
सुबह-शाम
विष की थैली उलटाकर
समय-सांप सरका।
नेह-छोह से तुमने
लीपा था पोता था,
भीतर अहसासों का चौरा दरका।
खेल हैं, खिलौने हैं,
किसके संग करूं कहो
फिर सग्गे-मित्तियां।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत है!
जवाब देंहटाएंबड़ा ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ... अद्भुद
जवाब देंहटाएंनेह-छोह से तुमने
जवाब देंहटाएंलीपा था पोता था,
भीतर अहसासों का चौरा दरका।
सुन्दर गीत पढवाने का शुक्रिया
दिल को छूने वाली कविता है। श्याम नारायण जी मिश्र की इस अनमोल कविता को आपने यहाँ हम सब लोगों से सांझी किया इसके लिए आभार।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंऐसी कविता पर टिपण्णी करने या कुछ भी कहने का अभी तक मुझमें हैसियत नहीं आई है ... बस इतना कह सकता हूँ कि अद्भुत है ... सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही गज़ब की रचना है………सुन्दर शब्द संयोजन्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत है.
जवाब देंहटाएंयह कविता तो इस मेज कुर्सी के वातावरण से मन को उड़ा कर ले गयी जाने किस दु्नियां में!
जवाब देंहटाएंबहुत तिलस्म है इसमें!
मर्मस्पर्शी...
जवाब देंहटाएंभावुक करती अतिसुन्दर रचना...
कौन करे दिये-बत्तियां
जवाब देंहटाएंतुमने जो लिखी नहीं
मैंने जो पढ़ी नहीं
आंखों में तैर रहीं चिट्ठियां।
दिल छूती पंक्तियाँ. बहुत खूबसूरत कविता.
dil per dastak dete ehsaas
जवाब देंहटाएंचिठियो के माध्यम से व्यक्त एक संवेदन शील कविता
जवाब देंहटाएंbahut hi adbhut aur marmsparsi sunder rachanaa.
जवाब देंहटाएंplese apnaa maarddesan dene ke liye mere blog main aaiye.aur cooments dijiye.thanks
दिल छूती पंक्तियाँ. बहुत प्यारी कविता है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकौन करे दिये-बत्तियां
जवाब देंहटाएंतुमने जो लिखी नहीं
मैंने जो पढ़ी नहीं
आंखों में तैर रहीं चिट्ठियां।
बहुत प्यारी कविता.....!!!