ऊब जाओ यदि कहीं ससुराल में
एक दिन के वास्ते ही गांव आना।
लोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
हो गये दंगे अचानक ईद को।
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं दीद को।
और, वैसे ही सरल है आजकल
आदमी का ख़ून गलियों में बहाना।
शहर के ऊंचे मकानों के तले
रेंगते कीड़े सरीख़े लोग।
औ’ उगलते हैं विषैला धुंआ
ये निरन्तर दानवी उद्योग।
छटपटाती चेतना होगी तुम्हारी
ढ़ूंढ़्ने को मुक्त सा कोई ठिकाना।
बाग़ में फूले कदम्बों के तले
झूलने की लालसा होगी तुम्हारी।
पांव लटका बैठ मड़वे के किनारे
भूल जाओगी शहर की ऊब सारी।
बैठकर चट्टान पर निर्झर तले
मुक्त क्रीड़ामग्न होकर खिलखिलाना।
बहुत खूबसूरत नवगीत ... ताज़गी देता हुआ
जवाब देंहटाएंबाग़ में फूले कदम्बों के तले झूलने की लालसा होगी तुम्हारी। पांव लटका बैठ मड़वे के किनारे भूल जाओगी शहर की ऊब सारी। बैठकर चट्टान पर निर्झर तले मुक्त क्रीड़ामग्न होकर खिलखिलाना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत्।
बहुत सुन्दर भाव प्रवण गीत है।
जवाब देंहटाएंलोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
जवाब देंहटाएंहो गये दंगे अचानक ईद को।
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं दीद को।
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण गीत! बढ़िया लगा!
उन्मुक्य अहसास ....उत्तम रचना
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह दिल को छूता ही नहीं,सहलाता है यह नवगीत!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत...एकदम ताज़गी भरा...
जवाब देंहटाएंकाश ऐसे ही समय बीते, निश्चिन्त।
जवाब देंहटाएंbahut taro-taaza......
जवाब देंहटाएंकदम्ब के तले झूलना, झरने की कल कल ...
जवाब देंहटाएंगाँव का मनोहारी चित्रण शहर वालों को खींच ही लायेगा!
छटपटाती चेतना होगी तुम्हारी
जवाब देंहटाएंढ़ूंढ़्ने को मुक्त सा कोई ठिकाना।
बहुत सुंदर
दिल को छूता है यह नवगीत
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंमानों गाँव की यात्रा पर निकले हों
ससुराल में इतने सुख कहाँ...बस बीवी को ना बताना...जो ताना-बाना आपने बुना है...बरबस गाँव की ओर खींच रहा है...बच्चों की छुट्टियाँ भी हो गईं हैं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंगांव और शहर की तुलना करते समय गांव का नोस्टाल्जिया बहुधा मन मोहता है। पर कभी कभी भय होता है कि वह गांव कहीं बचा है या नहीं!
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।