फ़ुरसत में ... 106
झूठ बोले कौआ काटे
-- मनोज
कुमार
something
wrong while displaying this webpage ...इस ब्लॉग पर यह वार्निंग आ रही है !
मुझे समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है?
मेरे कंप्यूटर पर तो ब्लॉग खुल रहा था। फिर एक-दो और मित्रों ने यह शिकायत की। इस
बीच कुछेक टिप्पणियां आ चुकी थीं। इसलिए उन मित्रों की शिकायत पर कोई विशेष ध्यान
नहीं दिया। लगा उनके कंप्यूटर में ही कोई समस्या होगी। जब बुधवार को एक मित्र ने
जानकारी दी कि ब्लॉग खुल नहीं रहा और चेतावनी दे रहा है, तो मेरा माथा ठनका। मैंने
अपने कंप्यूटर पर जब इस ब्लॉग को खोलने की कोशिश की तो मेरे कम्प्यूटर पर भी यही दशा थी। अपने अल्प तकनीकी ज्ञान से ब्लॉग को खोलने की कोशिश की पर असफल रहा। तब मुझे संकट मोचक की याद आई। आप सभी जानते हैं बीएस. पाबला जी संकट की घड़ी में “ही” याद आते हैं। इस “ही” को इनवर्टेड कॉमा में रखने का कारण मैं आगे बताऊंगा, इसमें पाबला जी का दर्द भी छुपा है।
उन्हें (पाबला जी को) मेल किया और उन्होंने मेरे मेल का पांच मिनट के अंदर जवाब दिया।
मनोज जी नमस्कार
ब्लॉग के
टेम्पलेट से पराया देश संबंधित कोई विजेटनुमा सामग्री है. उसे हटा दें
ठीक हो
जाएगा
गनीमत है
अभी आपका ब्लॉग गूगल की ब्लैक लिस्ट में नहीं आ पाया है. वरना आपके ब्लॉग की
सामग्री वाले ब्लॉग खुलने बंद हो जायेंगे
विस्तृत
उपाय, विधि तथा अन्य जुगाड़ तो http://www.blogmanch.com/ पर ही दे पाऊँगा. सॉरी
उनके बताए उपाए से पांच मिनट के अंदर
मेरा ब्लॉग चालू हो गया। लेकिन मेरा दिमाग उनके द्वारा लिखे गए अंतिम वाक्य पर अटक गया। इसमें एक छुपा हुआ तथ्य था --- कि ब्लॉगमंच पर तो आते नहीं और जब मुसीबत में फंसते हो तो मेरी याद आती है। ख़ैर वहां गया तो देखा कि बग़ैर इसका सदस्य बने ज़्यादा लाभ नहीं उठाया जा सकता मैं फ़ौरन उसका सदस्य बन गया।
इसके बाद काफ़ी देर उनसे (पाबला जी से)
मेल का आदान-प्रदान और बातें होती रही। उन्होंने एक और बात कही –
“ब्लॉग मंच को ब्लॉगरों के लिए बनाया
है,
लेकिन
कोई तवज्जो ही नहीं देता दिखा तो अनचाहे मन से कठोरता का प्रदर्शन कर उस ओर इशारा
करना पड़ रहा :-(”
यही वह
“ही” लिखने का सार है। संकट की घड़ी में तो हम उन्हें याद करते हैं लेकिन उनके
द्वारा किए जा रहे सामाजिक (ब्लॉग जगत के संदर्भ में) कार्य को हम कोई खास तवज्जो
नहीं देते। यह मंच उन्होंने 2011 में हमारे लिए खोला था। यहां जाकर आप इसके बारे में विशेष
जानकारी हासिल कर सकते हैं।
पाबला जी ने “कठोरता का प्रदर्शन” शब्दों का प्रयोग
किया है। सच ही कहा है उन्होंने। यदि कठोरता का प्रदर्शन न किया जाए तो कई बार
मनवांछित हल नहीं मिलता। कई लोग कठोरता प्रदर्शन को स्ट्रेटजी की तरह इस्तेमाल
करते हैं। सरकारी महकमें तो यह बड़ा आम है। आइए आपको एक अनुभव सुनाता हूं। गोपनियता
की दृष्टि से पात्रों के नाम और स्थान बदल दिए गए हैं।
एक दिन सुबह सुबह दफ्तर पहुंचा तो
माहौल विचित्र था। सीपी काफी तमतमाया हुआ इधर से उधर घूम रहा था और कुछ बड़बड़ाए
जा रहा था। पी.ए. से पूछा तो मालूम हुआ कि सीट पर बैठते ही सीपी के हाथों अर्दली
ने ट्रांसफर आर्डर थमा दिया। कोलकाता से कटनी ट्रांसफर का आदेश देख कर उसका पारा
सातवें आसमान पर चढ़ गया और तब से वह अपने शब्दकोश के सारे सभ्य सुशील शब्दों
का बड़े असंयत भाव से प्रयोग कर रहा है।
खैर मैं अपने दैनिक कार्यों का
निपटारे करने में लग गया और एक महत्वपूर्ण फाइल जिस पर बड़े साहब से चर्चा करनी
थी, को लेकर उनेक
दफ्तर में गया और विचार-विमर्श करने लगा।
थोड़ी ही देर बीते थे कि अपना सीपी
अनुमति लेकर भीतर प्रवेश किया और बड़े साहब के बैठने का इशारा किए जाने के बावजूद
खड़े-खड़े अपनी अत्माभिव्यक्ति करने लगा।
“सर दिस इज नौट फेयर ! मिड ऑफ़ द सेशन में मेरा तबादला....? दिस इज़ अन जस्ट !”
“बैठो........ बैठो........”
“व्हाट सर? दिस इज द रिवार्ड व्हिच आय एम गोइंग टू गेट आफ्टर गिविंग माई
बेस्ट ट्वेंटी थ्री इयर्स ऑफ सर्विस एट दिस स्टेशन।”
“इतने सालों से तुम यहां थे, इसलिए तो तुम्हारा तबादला हुआ है। जो बीस सालों से अधिक एक ही कार्यालयों
में थे उनका ही तबादला किया गया है|”
“नही सर यह हमारे ऊपर अन्याय है। हमने पूरी कोशिश की आपको
खुश रखने की। पर ....... लगता है कुछ लोग (मेरी तरफ इशारा था) मुझसे ज्यादा स्मार्ट
निकला। ठीक है सर आप न्याय नहीं दे सकते तो भगवान देगा। आप के पास कुछ कहने से
होगा नहीं”
सीपी ने एक लंबा (pause) पौज मारा और ऊपर की जेब से एक पेपर साहब की तरफ
बढ़ाते हुए बोला –“ये रहा
मेरा पेपर....... इसे कंसीडर कर दीजिएगा। आई एम नो मोर इंटरेस्टेड इन सर्विंग द ऑर्गनाइजेशन। बिफोर
रिलिजिंग मी, मेरा वी.आर एक्सेप्ट कर लीजिएगा।" और वह दन्न से मुड़ा। वहां से निकल गया।
बड़े साहब के चेहरे पर कुछ ऐसे भाव थे
जो मैं पढ़कर भी अनजान बना रहा।
उन्होंने मुझसे कहा- “तुम अभी जाओ बाद
में चर्चा करेंगे।”
मैं जब बड़े साहब के दफ्तर से बाहर
निकल रहा था तो मेरे होठों से एक गाना निकल रहा था -अरे! झूठ बोले कौआ काटे , काले कौवे से
डरियो। मैं माइके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो।
ये "मैं माइके चली जाऊंगी"
वाली धमकी, पहले तो मुस्कान ला देता है चेहरे पर, फिर बाद में देखा
जाता है कि यह इफेक्टिव/प्रभावशाली/कारगर भी काफ़ी होता है। मन चाही मुराद पूरी
हो जाती है!
सीपी ने अपने तेइस साल के सर्विस
कैरियर में पहले भी तीन बार इस तरह का पांसा फेंका है। और हर बार दांव उसके पक्ष
में गया है। इस बार देखें क्या होता है?
खैर मैं अपने ऑफिस में आ गया। शाम
होते-होते मेरे टेबुल पर एक आंतरिक आदेश पहुंचा। सीपी का वी आर एप्लीकेशन अण्डर
कंसीडरेशन है और ट्रांसफर आर्डर केप्ट इन अबेयांस टिल फर्दर ऑर्डर!!
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