गुरुवार, 23 अगस्त 2012

आँच- 117 : केतकी का सुवास पूरे वातावरण में खुशबू भर देता है!

आँच- 117
केतकी का सुवास पूरे वातावरण में खुशबू भर देता है!
Salil Varma की प्रोफाइल फोटोसलिल वर्मा
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“केतकी” कहानी की लेखिका हैं श्रीमती अनुलता राज नायर यह कहानी उनके ब्लॉग “माई ड्रीम्स एन’ एक्सप्रेशंस” पर दिनांक १४.०८.२०१२ को प्रकाशित हुई. अनुलता जी को इनके ब्लॉग पाठक अनु के नाम से जानते हैं और इन्हें इनकी कविताओं से पहचानते हैं. यह इनकी दूसरी कहानी है. अपने बारे में कहती हैं कि मध्य प्रदेश में पली-बढ़ी हैं (शायद इसी कारण मूलतः मलयाली होते हुए भी हिन्दी में अभिव्यक्ति बहुत स्पष्ट है) और मेरी ही तरह रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर हैं अर्थात साहित्य से कोई सीधा सम्बन्ध न होते हुए भी (ब्लॉग जगत में बहुतायत है ऐसे रचनाकारों की) स्तरीय कविताएं और कहानियाँ लिख रही हैं.

“केतकी” उनकी इस कथा की मुख्य-पात्र है. कॉलेज में पढ़ने वाली और ज़िंदगी से लबरेज. एक ऐसी लड़की जिसे हर कोई पहली मुलाक़ात में ही अपना दोस्त बनाने को मचल जाए. उसके जीने का अन्दाज़ भी बड़ा अनोखा है. एक ऐसा अन्दाज़ जो उसे अपने जैसी और लडकियों से अलग करता है. अंश नाम का एक लड़का बचपन से ही उसके साथ ही पढता है और उसका सबसे अच्छा दोस्त है. धीरे-धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल जाती है. दोनों महसूस करते हैं पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. बाद में उसके जोर देने पर अंश किसी और जगह शादी कर लेता है और वो गोवा चली जाती है. अंश को शादी की रात ही खबर मिलती है कि केतकी ने समुद्र में जलसमाधि ले ली. कारण उसका यह (अंध)विश्वास कि उसके जन्म के समय उसकी माता की मृत्यु, फिर पिता, फिर उसके मौसा-मौसी का बे-औलाद रहना और अंश का प्रणय निवेदन के दिन दुर्घटना ग्रस्त होना. निष्कर्ष के तौर पर अपने नाम की सचाई बताना कि केतकी का फूल महादेव को नहीं चढाया जाता, और यह उम्मीद कि शायद अगले जन्म में वो हरसिंगार बने.

इस कहानी की केन्द्रीय पात्र है केतकी. मगर कहानी कहने वाला है अंश. कहानी के आधे भाग में उसके चरित्र को स्थापित करने की चेष्टा की गयी है. कथावस्तु में नवीनता भले ही न हो, किन्तु जिस तरह से उसका ट्रीटमेंट किया है अनु जी ने वह बेहद सराहनीय है. पढते हुए ऐसा लगता है मानो उन्हीं की कविताओं के अलग-अलग हिस्से पढ़ रहे हों. दरसल पूरी कहानी उस लड़की का पोर्ट्रेट है, जिसकी हँसी और चंचलता, खुलेपन और सचाई, बिंदासपन और चुलबुलेपन के पीछे एक गहरी उदासी छिपी है. और उस उदासी का अंत, उसके जीवन के अंत के साथ होता है. कहानी पर कई फ़िल्मों का प्रभाव दिखाई पड़ता है. एक दुखांत कथा, नायिका के चरित्र को मजबूती से स्थापित करने के लिए, उसकी आत्महत्या और सुसाइड नोट पर पटाक्षेप.

लेखिका की यह कथा कम से कम यह आभास नहीं देती कि उन्होंने यह दूसरी कहानी ही लिखी है. उनकी अभिव्यक्ति बहुत ही स्पष्ट है, जैसा कि उनकी कविताओं में होता है. इसलिए इस कथा में भी कहीं भटकाव नहीं है, कहानी की मुख्य पात्र केतकी है और चूँकि घटनाक्रम उसी के इर्द-गिर्द बुने गए हैं इसलिए उसके चरित्र के साथ न्याय हुआ है. मगर इस क्रम में वे अन्य पात्रों के साथ न्याय नहीं कर पायी हैं. नायक अंश, पूरी घटनाओं को याद कर रहा है लेकिन स्वयं उसके चरित्र, उसकी मनःस्थिति, उसकी प्रतिक्रियाएं और उसके मनोभावों का खुलकर पता नहीं चलता. ऐसा लगता है कि कहानी कहने वाला भले ही पुरुष हो (नायक अंश) किन्तु वास्तव में कहने वाली कोई महिला है.

यह कथा यदि वर्णनात्मक न होकर संवादों में हमारे समक्ष प्रस्तुत की गयी होती तो दोनों चरित्र खुलकर सामने आ पाते, बल्कि चरित्र स्वयं अपना परिचय होते और घटनाएँ परत दर परत खुलकर सामने आतीं. लेखिका की अनुपस्थिति, चरित्रों को उजागर करने में सहायक होती. कुछ बातें और हैं जो खटकती हैं, जैसे केतकी को खुली किताब की तरह बताया गया है और अदृश्य रोशनाई से लिखी किताब भी, अंधविश्वास के प्रति गहरा विश्वासी भी बताया है (जिसे चाहती है उसे जीवन साथी नहीं बना पाती और आत्महत्या कर लेती है) और सारी उँगलियों में अंगूठी पहनने वाली भी. अंधविश्वास को सच मानकर अपना जीवन समाप्त कर लेना कहीं से भी सराहा नहीं जा सकता. मगर दूसरी ओर कुछ संवादों पर बरबस वाह निकल जाती है, जैसे – क्षितिज से उगता सूरज कभी ओल्ड फैशन हो सकता है भला!” या फिर “नहीं अंश, मेरे हाथ में कोई लकीर नहीं....सब बह गयी पानी में.” जो इन वक्तव्यों को लिख सकता है उसने संवादों में इतनी कंजूसी क्यों की, समझ नहीं आता.

अंत में यही कहा जा सकता है कि केतकी नाम की सार्थकता के लिए और उससे जुडी मान्यताओं के लिए तो यह कहानी सही है, किन्तु किसी ने यह समझने की कोशिस क्यों नहीं की कि भले ही केतकी देवता पर न चढाई जाती हो, किन्तु उसका सुवास पूरे वातावरण में केवड़े की खुशबू भर देता है!









38 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे पहले तो आभारी हूँ मनोज जी की,कि उन्होंने मेरी कहानी को आँच पर चढाने के काबिल समझा...
    सलिल जी कि हर आलोचना से सहमत हूँ....अपनी कमियों का भान ही शायद तभी होता है जब कोई इंगित करे....शायद लेखिका के तौर पर अभी अपरिपक्व हूँ इसलिए...हां सुधार क्या कर सकती हूँ ये ज़रूर समझ पायी सलिल जी की समीक्षा से.
    आँच पर तप कर ही तो सोना कुंदन होता है
    :-)
    ....सो अगली कहानी में कमियां कम हो ये प्रयास करूंगी.
    बहुत बहुत शुक्रिया
    सादर
    अनु

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  2. सलिल जी नमस्कार आपने केतकी कहानी की शानदार समीक्षा की बधाई . कभी कभी कुछ अंश पाठकों के लिए भी छुट जाता है या कहें सुधि पाठकों के अनुरूप नहिं लिखा पाता. ऐसा शायद हो जाता है .अब देखिये न मुझे ही ऐसा लगता है कि केतकी लाल रंग का फुल है किन्तु उसमें गंध होता ही नहीं जबकि आपने उसमें केवड़े सी गंध बता दी है .

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    1. रमाकांत जी, केतकी पर विकिपीडिया (हिन्दी) में यह जानकारी उपलब्ध है..

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    2. केतकी सफ़ेद फूल है रमाकांत जी...झाड़ी है ये, और इसी से केवडा निकाला जाता है...इसकी सुगंध मादक होती है.मैंने कहानी के साथ चित्र भी संलग्न किया है.
      सादर
      अनु

      हटाएं
    3. ----केतकी के फूल सफ़ेद व पीले होते हैं ... सफेद को केवडा कहते हैं...असली केतकी पीली होती है जिसे स्वर्ण केतकी कहते हैं....

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    4. वास्तव में केवडा व केतकी अलग अलग पौधे हैं .... केवडा के पुष्प सफ़ेद व केतकी से बड़े होते हैं ...अधिक अंतर न होने से उसे ही केतकी समझ लिया जाता है....
      --- केतकी नाम का पेड़ भी होता है ... जिसकी लकड़ी मजबूत व सम होती है फर्नीचर बनाने में उत्तम..
      --- किसी की भी पूजा में केतकी के फूल नहीं चढाये जाते ...कहीं कहीं केवडा विष्णु व् शिव को छोडकर अन्य देवों पर चढाया जाता है ...
      --- केतकी की झाडी में प्राय: सर्प रहते हैं अतः प्रातकाल तोडने पर दुर्घटना होने आशंका से उसे देवों पर चढाने से वर्जित किया गया होगा....

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    5. आभार श्याम जी,
      जानकारी के लिए शुक्रिया.

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  3. "केतकी "एक नायिका प्रधान कहानी है जिसमे मानसी तत्व ज्यादा हैं .पुरुष स्त्री के मन का अस्पष्ट धुंधलका और चाहत ज्यादा है यथार्थ कम .कहानी पढ़ते हुए लगता है केतकी एक अति -महत्वकांक्षी
    शख्शियत है जिसके लक्ष्य निर्धारित हैं लेकिन आखिर में वह एक असामान्य चरित्र बनके रह जाती है ,आत्म ह्त्या की प्रवृत्ति से लैस .कहानी में मानसिक कुन्हासे का ज्यादा वजन है जो एक असंतुलन पैदा करता है , देर तक छाई रहती है ये मानसिक धुंध .फिर शादी की आकस्मिकता है जैसे शादी अचानक एक दुर्घटना सी घट गई हो .अंश एक जीता जागता सामान्य इंसान है जिसे बौखलाने के लिए केतकी का सिर्फ एक घंटा कॉफ़ी है .कहानी रोचकता लिए है .बहाव भी .कुछ शब्द प्रयोग अखरते हैं मसलन -"अनबुझ ","आकस्मात ",नार्सिस्ट,इनके शुद्ध रूप हैं :अनबूझ ,आकस्मिक /अकस्मात /आकस्मिकता ,Narcissus/Narcissism/Narcissist/Narcissistic नार्सीसिस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    ....कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    बुधवार, 22 अगस्त 2012
    रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
    What Puts The Ache In Headache?

    जवाब देंहटाएं
  4. , सलिल जी आपकी समीक्षा समीचीन है ,यह कहानी अगस्त १७ ,२०१२ को प्रकाशित हुई थी ,पढ़ी भी थी और गुणी भी थी .आपने एक और कोण इसमें तलाशा अंधविश्वास का ,कई चीज़ें इत्तेफाकी होतीं हैं समाज उन्हें अशुभ घोषित कर देता है .आखिर दुर्घटनाएं जीवन में ही तो होतीं हैं .
    ....कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    बुधवार, 22 अगस्त 2012
    रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
    What Puts The Ache In Headache?

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  5. सलिल जी आपकी समीक्षा समीचीन है ,यह कहानी अगस्त १७ ,२०१२ को प्रकाशित हुई थी ,पढ़ी भी थी और गुणी भी थी .आपने एक और कोण इसमें तलाशा अंधविश्वास का ,कई चीज़ें इत्तेफाकी होतीं हैं समाज उन्हें अशुभ घोषित कर देता है .आखिर दुर्घटनाएं जीवन में ही तो होतीं हैं .
    ....कृपया यहाँ भी पधारें -
    बृहस्पतिवार, 23 अगस्त 2012
    Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
    Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle

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  6. आह केतकी आह है, गजब समर्पण भाव |
    दृष्टान्तों का दोष से, किया स्वयं अलगाव |
    किया स्वयं अलगाव, जरा सोचा तो होता |
    यही अंश का वंश, तुम्हारा वक्ष भिगोता |
    अवसर देती एक, नेक यह होती घटना |
    देता मैं भी साथ, खले चुपचाप निपटना ||

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  7. सलिल बाबू और मनोज जी के ज़रिये इस कहानी को और उसकी लेखिका को जान-समझ पाया | अनु जी की कवितायेँ प्रभावित करती हैं.मैं यह कहानी उनके ब्लॉग पर व्यस्ततावश नहीं पढ़ पाया पर सलिल जी ने इसका स्वाद करा दिया.
    अनुजी के लिए ढेर शुभकामनाएँ !

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  8. क्यों नहीं चढ़ाते शिव को केतकी का पुष्प ?
    यह जानकारी उपलब्ध है..
    http://religion.bhaskar.com/article/flower-kaetqui-1220239.html

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  9. बहुत अच्छी समीक्षा की है सलिल जी ने 'केतकी' की। लेखिका और समीक्षक दोनों को बधाई....

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  10. भले ही केतकी देवता पर न चढाई जाती हो, किन्तु उसका सुवास पूरे वातावरण में केवड़े की खुशबू भर देता है
    यह वक्तव्य बहुत सुंदर लगा मुझे बढ़िया समीक्षा क़ी है ....आभार
    अनु आपको भी बहुत बहुत बधाई इतनी सुंदर
    कहानी के लिये !

    जवाब देंहटाएं
  11. भले ही केतकी देवता पर न चढाई जाती हो, किन्तु उसका सुवास पूरे वातावरण में केवड़े की खुशबू भर देता है
    यह वक्तव्य बहुत सुंदर लगा मुझे बढ़िया समीक्षा क़ी है ....आभार
    अनु आपको भी बहुत बहुत बधाई इतनी सुंदर
    कहानी के लिये !

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  12. very good thoughts.....
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन समीक्षा सलिल जी. आपकी समीक्षा एक बेंचमार्क बना देती है....अनु जी की कहानी भी अच्छी है...आंच को नियमित देख अच्छा लग रहा है...

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    उत्तर
    1. अरुण जी यह आपके द्वारा दिए गए सुझाव का ही प्रतिफल है।

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  14. लेखिका और समीक्षक दोनों को बधाई....बहुत अच्छी समीक्षा की है सलिल जी ने 'केतकी' की।

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  15. कहानी पहले पढ़ी थी ..... जो बातें मन में उठी थीं वो आपने समीक्षा में कह दीं .... सटीक समीक्षा ... समीक्षक और कहानीकार दोनों को बधाई और शुभकामनायें

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  16. केतकी कहानी पढ़ी थी और उस पर टिप्पणी भी दी थी। लेकिन जिस दृष्टि से सलिल जी ने इस कहानी को देखा है,उस कोण से मैंने नहीं देखा था। कहानी में अंधविश्वास की आहट मुझे सुनाई नहीं दी। लेकिन कहानी का प्रवाह,शब्द-संयोजन और उसकी बनावट में कहीं कोई कमी नजर नहीं आई। समाज में सच में कुछ पात्र केतकी की तरह के होते हैं। इसलिए इस कहानी में असहजता और अवास्तविकता के दर्शन नहीं होते। यद्यपि कहानी का अंत दुखांत है,लेकिन यह समाज में होता है और बहुत से लोग केतकी की तरह व्यवहार करते हैं। एक दृष्टि से वे अच्छे लोग होते हैं,संवेदनशील होते है। किसी को दु:ख देना नहीं चाहते। अपने बारे में एक विशिष्ट सोच लेकर चलते हैं और अपने अतीत की घटना से स्वयं को इतना जोड़ लेते हैं कि वे सारी उम्र उस से मुक्त नहीं हो पाते और कभी-कभी किसी का अहित न हो यह सोचकर आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं। कहानी का अंत केतकी की आत्महत्या से होता है लेकिन उसके अंतिम शब्द अनमोल हैं: अगले जन्म में भी अंश ही बनना......और मैं बनूंगी तुम्हारी,सिर्फ तुम्हारी....झरूंगी तुम पर हरसिंगार बन कर...

    हर जन्म में केतकी बनूँ ,इतनी भी अभागी नहीं हूँ !!!

    इन शब्दों में भी आशा की एक किरण है...लेकिन वह अगले जन्म तक फैल गई है...फिर दूसरा जन्म भी हममें से बहुत लोगों के लिए अंधविश्वास ही है।

    कहानी में फिल्मी पन बेशक है लेकिन कहानी में कविता की तरह अनेक अर्थ भी निहित हैं। निश्चित ही एक बेहतरीन कहानी।

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  17. मेरी टिप्पणी स्पैम में है मनोज जी!!! कृपया उसे मुक्ति दें।

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  18. अजवाब समीक्षा है केतकी की ... इस कहानी का ताना बाना नारी पात्र को लेके लिखा गया है ... कहानी और समीक्षा सार्थक है ...

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  19. केतकी देवता पर न चढाई जाती हो, किन्तु उसका सुवास पूरे वातावरण में केवड़े की खुशबू भर देता है!
    बहुत ही अच्‍छी समीक्षा की है आपने ...आभार सहित शुभकामनाएं आपको, अनु जी को बधाई ...

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  20. आपने अपनी समीक्षा में कहानी के गुण-दोषों को इतनी बारीकी से परखा है कि कहानी बिना पढ़े मैं समझ गया। लेकिन लगा कि एक बार कहानी अवश्य पढ़ लेनी चाहिए। पढ़ा तो मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरी कल्पना इतनी सटीक कैसे बैठी। वास्तव में संक्षेप में जो धूप के साथ वर्षा का रंग दिखाया है, प्रशंनीय है। लेखिका के लिए इतना सुझाव दिया जा सकता है कि इस प्रकार की मानसिकता को लेखन में प्रश्रय नहीं देना चाहिए चाहे भले ही स्वाभाविक हो या सच घटना पर आधारित ही क्यों न हो। इसमें किसी ऐसी परिस्थिति को जन्म देने की आवश्यकता थी कि केतकी अपनी इस प्रकार की मानसिकता से उभरकर समाज के लिए एक उपयोगी पात्र के रूप में दिखे। साहित्यकार का काम समाज को उसके भद्दे रूप का आइना दिखाकर श्रेय की ओर प्रेरित करना है। केतकी के चरित्र में भले ही पाठकों उदात्तता दिखे। लेकिन मुझे वह एक मानसिक रोग से पीड़ित सी लगी। यह टिप्पणी अगर लेखिका या पाठकों को अच्छा न लगे, तो उसके क्षमा करेंगे।
    जो भी हो समीक्षा लाजबाब है।

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    उत्तर
    1. केतकी इतनी नकारात्मक भी नहीं है कि उसे मानसिक रोगी करार दिया जा सके? क्या अनिष्ट के विचार को प्रश्रय देना श्रेयसकर होगा? केतकी को उससे ज्यादा कौन जानता है? केतकी में लोकहीत के कार्यों को भी तो लेखिका ने लिखा है। वह अपने पुराने कपड़े किस तरह से लोगों में बांट देती है। कैसे अपने आस-पास के लोगों के दुखों को भांप लेती है और कैसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनको खुश करती है। इस ओर शायद आपने ध्यान नहीं दिया। यह मानवीय संवेदना ही है जो व्यक्ति-व्यक्ति को भिन्न संस्कार देती है। केतकी के संस्कार अच्छे हैं। वह हमेशा दूसरों का सुख चाहती है। वर्ना तो समाज में स्वार्थी लोगों की भीड़ है। जिन्हें अपने न्यस्त स्वार्थ के अलावा कुछ नज़र नहीं आता। केतकी संवेदनशील लड़की है और उसमें मानसिक रोगी के गुण देखना बिलकुल उचित नहीं है।

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    2. मेरी एक टिप्पणी फिर स्पैम में है।

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    3. कृपया दूसरे वाक्य को यूं पढ़ें:"क्या दूसरों के अनिष्ट के विचार को प्रश्रय देना श्रेयसकर होगा?"

      हटाएं
    4. आदरणीय आचार्य जी
      आपके सुझाव सर माथे...ये मेरी दूसरी कहानी थी...भविष्य में आपको निराश न करूँ ऐसा प्रयास रहेगा.
      सादर
      अनु

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  21. कहानी भी पढी़ और समीक्षा भी । लाजवाब !

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  22. मनोज जी के आदेश (वे इसे अनुरोध की संज्ञा देते हैं) के तहत, तुरत इस कहानी का चुनाव और अपनी कार्यालयीन व्यस्तताओं के बीच बहुत ही जल्दबाजी में लिखी गई यह समीक्षा लोगों ने सराही तथा इस पर विमर्श किया और अपने विचार रखे. सही अर्थों में यही "आँच" के सफलता है, जब समीक्षक की समीक्षा से बाहर जाकर लोग अपने विचार रखें और समीक्षा को इंटरैक्टिव बनाएँ.
    प्रिय मित्र मनोज भारती की बातें इस पोस्ट का विस्तार सिद्ध हो रही हैं तथा आचार्य परशुराम जी की टिप्पणी ने कथा के सन्देश को एक दिशा और सोच प्रदान की है. अन्य पाठकों ने जिन त्रुटियों (जैसे प्रकाशन की तिथि आदि) की ओर इंगित किया है वह सहज स्वीकार्य है और उसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से क्षमा प्रार्थी हूँ.
    "आँच" इस ब्लॉग का एक ऐसा स्तंभ है, जहाँ स्तरीय रचनाओं का बिना किसी पूर्वाग्रह के मूल्यांकन किया जाता है और प्रयास यही रहता है कि इसमें उस रचना के प्रति एक पाठक के विचार शिल्प और विधा, अभिव्यक्ति और सन्देश के आईने में परखे जा सकें!!
    आप सभी पाठकगन का मैं व्यक्तिगत रूप से और मनोज-परिवार की ओर से आभार व्यक्त करता हूँ!

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    उत्तर
    1. बड़े भाई,
      निवेदन ही कर सकता हूं। किया।
      आपने मान रखा।
      आभार।
      पात्रों का चयन और उसके चरित्र को गढ़ना रचनाकार के दायरे में आता है। समाज में कई ऐसे पात्र मिल जाते हैं। समीक्षा में आपने विभिन्न बिन्दुओं को बड़ी सूक्ष्मता से विश्लेषित किया है। आंच पर रचनाओं का चयन रचना के कुछ अलग और विशिष्ट होने के कारण ही किया जाता है। और समीक्षक अपने नज़रिए से उसे देखते हैं तो एक विशिष्ट आभा का सृजन होता है।
      रचनाकार भी, एकाध अपवाद को छोड़कर इसे सकारात्मक ही लेते आए हैं। हमें इस बात की ख़ुशी रही है।

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  23. गम्भीर कहाँनी की उतकृष्ट समीक्षा ...!!

    अनु जी आपको व सलिल जी दोनो को बधाई ...!!

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  24. आपका समीक्षात्मक वर्णन ही बहुत कुछ समझा गया

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  25. आपकी समीक्षा एपिटाइज़र का काम कर रही है । कहानी पढूंगी तब फिर से आऊंगी यहां ।

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  26. इस पर तभी ध्यान गया जब अपनी कविता पढ़ी आँच पर। आज फुर्सत मिला तो पहले कहानी पढ़ी फिर समीक्षा। कहानी का अंत पढ़कर लगा कि कोई बात किसी के मन मस्तिष्क पर कितना गहरा जख्म दे जाती है! खुद को मनहूस ही समझ लिया केतकी ने!!

    आपकी समीक्षा पढ़ी आपने अंगूठी से जोड़कर उसे अंधविश्वासी सिद्ध कर दिया। आपकी समीक्षा में आई कुछ बातों को छोड़कर (जैसे अंश के बारे में....) सभी से सहमत हूँ। पूरी कहानी पढ़ते वक्त केतकी इतनी छाई रही कि अंश के बारे में जानने की इच्छा ही नहीं हुई।

    मुझे कहानी उत्कृष्ट लगी। वह शायद इसलिए भी कि इतना डूब कर बहुत दिनो बात मैं कोई कहानी पढ़ सका। मुझे अंधविश्वासी नहीं मानसिक आघात से अभिषप्त एक लड़की की कहानी लगी। अंश की एक बात के लिए आलोचना करना चाहूँगा कि वह सच्चा प्रेमी नहीं था। उसे पता लगाना चाहिए था केतकी के बारे में। डूबना चाहिए था नदी में और साफ करनी चाहिए थी उसकी शंकाएं। अंश ने प्रेमी के रूप में निराश किया।

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    उत्तर
    1. शुक्रिया देवेन्द्र जी..
      मेरे ख़याल से केतकी अति संवेदनशील और भावनात्मक रूप से कमज़ोर लड़की है....और वो अपने भावनाएँ उजागर भी नहीं करती...बल्कि उसने झूठे दिखावे किये अंश को स्वयं से दूर करने के लिए..
      और वो अंगूठियों का पहनना अंधविश्वास नहीं बल्कि उसका पागलपन कह लें...दीवानी सी लड़की की कल्पना की थी मैंने केतकी का चरित्र गढ़ते समय....हां अंश के लिए आपकी आलोचना सही है...उसका चरित्र कुछ अस्पष्ट और दबा सा रहा.....
      अभी सीख ही रही हूँ अतः मेरी कमियों को माफ किया जाय :-)
      सादर
      अनु

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