सोमवार, 6 अगस्त 2012

मिली नहीं रोटी दो जून की


मिली नहीं रोटी दो जून की

श्यामनारायण मिश्र

ज़िंदगी गुज़र गई
मस्जिद का द्वार लांघते
रोज़ पांच वक़्त मांगते
मिली नहीं रोटी दो जून की।

अब्बा सा खांसता खखारता
सुबह सूर्य खोलता मसहरी,
जंफर सी फटी-फटी धूप
फातिमा सी खीजती दुपहरी
किसी शाम चंदा ने धर दी
रोटी  पै  डली  नून  की।

मौलवी  के  अजान  सी
हमीदिया  बड़ी  हो  गई
चिश्ती की खौलती नज़र
इक  अजीब  डर बो गई
जिस पर उम्मीद टंगी थी
टूटी वह गुमटी परचून की।
***  ***  ***
चित्र : आभार गूगल सर्च

23 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. काश! सभी को मिले नेवाला।
      'जीव' भक्षण पर लग जाये ताला.
      दावतों से अगर पड़ता हो पाला
      'बचे अन्न को' बनो देनेवाला.

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  2. अब्बा सा खांसता खखारता
    सुबह सूर्य खोलता मसहरी,
    जंफर सी फटी-फटी धूप
    फातिमा सी खीजती दुपहरी।
    किसी शाम चंदा ने धर दी
    रोटी पै डली नून की।
    कमाल की रचना। बधाई।

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  3. पांचो वक्त नमाज के, आरत सुबहो-शाम |
    न रहीम से रोटियां, न ही देते राम |
    न ही देते राम, भूख से व्याकुल काया |
    हो जाती है शाम, चाँद पर नून धराया |
    जरा चढ़ा जो मांस, घूरते जालिम कैसे |
    पाय अध-जली लाश, घाट पर कुक्कुर जैसे ||

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |

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  5. बेहद मार्मिक और उत्कृष्ट रचना...

    सादर
    अनु

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  6. मिश्र जी को पढ़ना हमेशा सुखद होता है लेकिन इस मार्मिक रचना ने दिल बींधकर रख दिया!!

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  7. श्यामनारायण मिश्र जी की बेहतरीन मार्मिक भाव की सुंदर रचना,,,,

    RECENT POST...: जिन्दगी,,,,

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  8. श्यामनारायण मिश्र की यह रचना बेहद मार्मिक है...


    अब्बा सा खांसता खखारता
    सुबह सूर्य खोलता मसहरी,
    जंफर सी फटी-फटी धूप
    फातिमा सी खीजती दुपहरी।
    किसी शाम चंदा ने धर दी
    रोटी पै डली नून की।

    नि:शब्द ...

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  9. बहुत मार्मिक चित्रण -यशपाल की 'परदा'कहानी की याद आ गई .

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  10. किसी शाम चंदा ने धर दी
    रोटी पै डली नून की।

    क्या लिक्खूँ अश्रु ही थमते

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  11. मार्मिक गीत...
    चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड धानी दे मौला....

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  12. मौलवी के अजान सी
    हमीदिया बड़ी हो गई
    चिश्ती की खौलती नज़र
    इक अजीब डर बो गई
    जिस पर उम्मीद टंगी थी
    टूटी वह गुमटी परचून की।

    यही दोमुहा जीवन संसार का

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  13. निःशब्द कर गई रचना, बेहद मार्मिक...
    रोज़ पांच वक़्त मांगते
    मिली नहीं रोटी दो जून की।

    किसी शाम चंदा ने धर दी
    रोटी पै डली नून की।

    श्यामनारायण जी की रचना पढवाने के लिए आभार.

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