मिली नहीं रोटी दो जून की
श्यामनारायण मिश्र
ज़िंदगी गुज़र गई
मस्जिद का द्वार लांघते
रोज़ पांच वक़्त मांगते
मिली नहीं रोटी दो जून की।
अब्बा सा खांसता खखारता
सुबह सूर्य खोलता मसहरी,
जंफर सी फटी-फटी धूप
फातिमा सी खीजती दुपहरी।
किसी शाम चंदा ने धर दी
रोटी पै डली नून की।
मौलवी के अजान सी
हमीदिया बड़ी हो गई
चिश्ती की खौलती नज़र
इक अजीब डर बो गई
जिस पर उम्मीद टंगी थी
टूटी वह गुमटी परचून की।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
1. ब्लॉगर में LinkWithin का Advance Installation
2. मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है
3. तख़लीक़-ए-नज़र
काश सभी को मिले नेवाला।
जवाब देंहटाएंकाश! सभी को मिले नेवाला।
हटाएं'जीव' भक्षण पर लग जाये ताला.
दावतों से अगर पड़ता हो पाला
'बचे अन्न को' बनो देनेवाला.
अब्बा सा खांसता खखारता
जवाब देंहटाएंसुबह सूर्य खोलता मसहरी,
जंफर सी फटी-फटी धूप
फातिमा सी खीजती दुपहरी।
किसी शाम चंदा ने धर दी
रोटी पै डली नून की।
कमाल की रचना। बधाई।
बहुत मार्मिक रचना...
जवाब देंहटाएंपांचो वक्त नमाज के, आरत सुबहो-शाम |
जवाब देंहटाएंन रहीम से रोटियां, न ही देते राम |
न ही देते राम, भूख से व्याकुल काया |
हो जाती है शाम, चाँद पर नून धराया |
जरा चढ़ा जो मांस, घूरते जालिम कैसे |
पाय अध-जली लाश, घाट पर कुक्कुर जैसे ||
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएंuff!
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक और उत्कृष्ट रचना...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
मुझे आपके भाव बेहद अच्छे लगे.
जवाब देंहटाएंमिश्र जी को पढ़ना हमेशा सुखद होता है लेकिन इस मार्मिक रचना ने दिल बींधकर रख दिया!!
जवाब देंहटाएंश्यामनारायण मिश्र जी की बेहतरीन मार्मिक भाव की सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: जिन्दगी,,,,
श्यामनारायण मिश्र की यह रचना बेहद मार्मिक है...
जवाब देंहटाएंअब्बा सा खांसता खखारता
सुबह सूर्य खोलता मसहरी,
जंफर सी फटी-फटी धूप
फातिमा सी खीजती दुपहरी।
किसी शाम चंदा ने धर दी
रोटी पै डली नून की।
नि:शब्द ...
बहुत मार्मिक चित्रण -यशपाल की 'परदा'कहानी की याद आ गई .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंकिसी शाम चंदा ने धर दी
जवाब देंहटाएंरोटी पै डली नून की।
क्या लिक्खूँ अश्रु ही थमते
behad marmik......
जवाब देंहटाएंwaahhhhhhh bahut khub,........
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना ....
जवाब देंहटाएंमार्मिक गीत...
जवाब देंहटाएंचिड़ियों को दाने बच्चों को गुड धानी दे मौला....
बहुत गहरी है !
जवाब देंहटाएंमौलवी के अजान सी
जवाब देंहटाएंहमीदिया बड़ी हो गई
चिश्ती की खौलती नज़र
इक अजीब डर बो गई
जिस पर उम्मीद टंगी थी
टूटी वह गुमटी परचून की।
यही दोमुहा जीवन संसार का
निःशब्द कर गई रचना, बेहद मार्मिक...
जवाब देंहटाएंरोज़ पांच वक़्त मांगते
मिली नहीं रोटी दो जून की।
किसी शाम चंदा ने धर दी
रोटी पै डली नून की।
श्यामनारायण जी की रचना पढवाने के लिए आभार.