एक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा
श्यामनारायण मिश्र
क्रांति के ये गीत चाहे न सुनो,
मत कहो कि प्यार से मुझको घृणा है।
संवेदना पूरी समर्पित थी कभी
इक ज़माना था किसी के प्यार का।
एक पल देखे बिना कटता न था
मुख सलोना सरल भावुक यार का।
और उठती पालकी का आज भी
चेतना में चित्र वैसा ही जड़ा है।
और कब तक गीत गाऊं मैं विरह के
छटपटाते भूख से, लोगों के आगे।
क्या सुनेंगे गीत ये श्रृंगार के
दफ़्तरों के द्वार से लौटे अभागे।
फूल को भी नोच डाले न कहीं
जो दिशाएं भी जलाने को खड़ा है।
इन लुटेरों की हवेली के लिए
एक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
इन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
संक्षेप में यही कहूंगा कि की कवि सामाजिक वैषम्य के प्रति अपना रोष प्रकट करते हुए यह कहने का प्रयास किया है कि वह यथार्थ पक्ष को ही लेखनी का माध्यम बनाएगा। एक अच्छी कविता की प्रस्तुति के लिए आपका आभार ।
गहन भावात्मक प्रस्तुति |बहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
वाह...
जवाब देंहटाएंएक पल देखे बिना कटता न था
मुख सलोना सरल भावुक यार का।
और उठती पालकी का आज भी
चेतना में चित्र वैसा ही जड़ा है।
बहुत सुन्दर रचना......
सादर
अनु
मिश्र जी के आज के इस गीत में प्रत्येक शब्द एक गरिमामय उपस्थिति दर्ज़ कर रहा है.. शब्दों का इतना सार्थक चयन कि अर्थ स्वतः स्पष्ट हो रहे हैं और भाव भी. चकित करती है रचना और ह्रदय में बस जाते हैं भाव!!
जवाब देंहटाएंआज जब हिंदी कविता नपुंसकता के दौर से गुज़र रही है.... कविता के शीर्ष पर तंत्र के प्रति विरोध का स्वर नहीं है..यह कविता दिनकर और धूमिल...गोरख पाण्डेय की याद दिलाती है... बढ़िया कविता..
जवाब देंहटाएंऔर कब तक गीत गाऊं मैं विरह के
जवाब देंहटाएंछटपटाते भूख से, लोगों के आगे।
क्या सुनेंगे गीत ये श्रृंगार के
दफ़्तरों के द्वार से लौटे अभागे।
फूल को भी नोच डाले न कहीं
जो दिशाएं भी जलाने को खड़ा है।.... कटु सत्य
ह्रदय को चीडती हुई हाहाकारी कविता के लिए.. निशब्द...
जवाब देंहटाएंसंवेदना पूरी समर्पित थी कभी
जवाब देंहटाएंइक ज़माना था किसी के प्यार का।
एक पल देखे बिना कटता न था
मुख सलोना सरल भावुक यार का।
और उठती पालकी का आज भी
चेतना में चित्र वैसा ही जड़ा है।
बहुत सुंदर भाव ....
ओज़स्वी ... बहुत कम पढ़ने को मिलती हैं ऐसी रचनाएं ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंइन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
सुंदर भाव
और कब तक गीत गाऊं मैं विरह के
जवाब देंहटाएंछटपटाते भूख से, लोगों के आगे।
क्या सुनेंगे गीत ये श्रृंगार के
दफ़्तरों के द्वार से लौटे अभागे।
फूल को भी नोच डाले न कहीं
जो दिशाएं भी जलाने को खड़ा है।...वाह: मन को छू गई ये पंक्तियाँ...आभार
गीत प्रभावी गाने होंगे,
जवाब देंहटाएंसुस्वर भावी गाने होंगे।
इन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
श्यामनारायण मिश्र जी, की मन को छूती सुंदर पढवाने के मनोज जी आभार,,,,
स्वतंत्रता दिवस बहुत२ बधाई,एवं शुभकामनाए,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
इन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
बहुत खूब, बेहतरीन !
इन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूँगा ।
बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंइन लुटेरों की हवेली के लिए
एक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
श्याम नारायण पाण्डेय जी के एक और वर्ग संघर्ष को समर्पित रचना आपने पढवाई शुक्रिया .मनोज जी , मेरे लिए भी काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा नै थी यहाँ यु एस में यह बहुत प्रचलित है मेरी छोटी बिटिया स्पाइनल एडजस्ट मेंट (लम्बर हर्नियेशन )के समाधान के लिए यह चिकित्सा ले रही है मैं भी उसके साथ काइरो -प्रेक्टिक क्लिनिक गया हूँ जिज्ञासा भाव जागा साहित्य संजोया क्लिनिक से ही और लिखने का सिलसिला धारावाहिक इसी चिकित्सा व्यवस्था पे चल निकला लग - भग दस आलेख मौजूद हैं राम राम भाई पर . अगला आलेख TMJ SYNDROME AND CHIROPRACTIC.
इन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
इस रागानुरागी ,अद्भुत रचना शील प्रवृति को ,सौ सौ बार नमन ...... ऐसे साहित्यों ने ही साहित्य को बरकरार रखा है बधाई शब्द अत्यंत छोटा है ऐसी रचना व मिश्र जी जैसे पुरोधा के लिए ..पुनः वंदन /
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
जवाब देंहटाएंइक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
कितनी वेदना है दिख रहा है !
bahut samvedansheel geet......
जवाब देंहटाएंगीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
जवाब देंहटाएंइक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
तारीफ़ के लिये शब्द भी कम हैं ……………बेहतरीन शानदार प्रस्तुति
मुबारक यौमे आज़ादी का दिन अगस्त १५.
जवाब देंहटाएंरोम हटाओ ॐ को लाओ ,
अब अपनी ताकत आजमाओ .
वोट व्यर्थ में अब न गंवाओ ,
इटली से पानी भरवाओ ....
'इन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।'
-अनुपम रचना !
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंइन लुटेरों की हवेली के लिए
जवाब देंहटाएंएक अक्षर भी नहीं गंदा करूंगा।
गीत लिख लिख झोपड़ी के वेदना के
इक जनम में मौत मैं सौ सौ मरूंगा।
यश कमाकर अमर होने से कहीं
इस तरह की मौत मरना भी बड़ा है।
आक्रोश को आपका शब्द शब्द उजागर करता है ।