शनिवार, 11 अगस्त 2012

फ़ुरसत में … चिठियाना का साक्षात्कार


फ़ुरसत में … 109

चिठियाना का साक्षात्कार


मनोज कुमार
(पिछले फ़ुरसत में की पोस्ट पर एक चिठियाना (भाई राजेश उत्साही) के टिपियाना से एक नए चरित्र चिचियाना का सृजन हुआ। एक महोत्सव में शामिल हुए चिठियाना को चिचियाना ने धर लिया और उसका साक्षात्कार कर डाला। लीजिए पेश है वही साक्षात्कार।)
चिचियाना
चिठियाना जी, इस महोत्सव में आपका स्वागत है
चिठियाना
आज मैं अपने आप को संसार का सबसे खुश्किस्मत प्राणी मानता हूं। (दोनों हाथों से स्वागत ग्रहण करता है)
चिचियाना
सबसे पह्ले तो यह बताइये कि आप इस हिंदी (चिट्ठाकारिता) समाज सेवा के प्रोफेशन में कब से हैं ?
चिठियाना
बस समझिए कि पैदा होने के पहले से ही हूं। कहते हैं ना पूत के पांव पालने में ही दिखाई देते हैं, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही संयोग हुआ। जब मैं गर्भ में था, तो मेरी मां बहुत सारे चिट्ठा पढ़ा करती थी। मेरे पिताजी का भी कुछ यही हाल था। जब मैंने पहली किलकारी मारी तो वह फ़ेसबुक का सबसे फ़ेमस स्टैटस अपडेट था। एक राज़ की बात बताऊँ, मेरा नाम भी मम्मी ने ट्विट करके हासिल किया था।
चिचियाना
हिंदी (चिट्ठाकारिता) समाज सेवा से जुड़कर आपको कैसा महसूस हुआ ?
चिठियाना
मुझे तो बस समझिए कि कुछ-कुछ नहीं बहुत-बहुत कुछ-कुछ महसूस हुआहालाँकि अच्छी सलाह की हमेशा उपेक्षा कर दी जाती है, फिर भी, केवल इस वजह से सलाह देना बंद तो नहीं करना चाहिए। तो बन्धुवर! मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा कि सब लोग इससे जुड़ें और बस जुड़े ही रहें। चिठियाना आज नहीँ तो कल उन्हें आ ही जाएगा।
चिचियाना
आपकी नज़रों में साहित्य-संस्कृति और समाज (यानी चिट्ठाजगत) का वर्तमान स्वरुप क्या है? 
चिठियाना
पुराने समय से कोई भिन्न नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जो नए हैं वे कल पुराने हो जाएंगे। और जो पुराने हैं वे आज तक नए हैं, क्योंकि वे पुराने हैं। वो क्या कहते हैं न कि पुराना चावल ही पथ्य चढ़ता है। हमें ही देखें और सोचें कि यह सम्मान हमें क्यों मिला, क्योंकि हम पुराने हैं। अब इस सम्मान के बाद हम फिर से नए हो जाएंगे। इसलिए जो वर्तमान स्वरूप है, वह पुराना ही है। और राज़ की बात कहूं तो नए को पिछली पंक्ति में ही रहना चाहिए ताकि वे पुराने से शिक्षा ग्रहण करते रहें। आफ़्टर ऑल बड़े बुज़ुर्ग ने यों ही नहीं कहा कि नया नौ दिन और पुराना सौ दिन। उनकी इस एक पंक्ति में उनके जीवन का निचोड़ था।
चिचियाना
हिंदी चिट्ठाकारिता की दिशा दशा पर आपकी क्या राय है ? 
चिठियाना
वाह! बहुत ही सुन्दर प्रश्न पूछा है आपने! इस प्रश्न के दो मुख्य भाग हैँ. सबसे पहले दिशा की बात कर लेँ तो दशा स्वयं निर्धारित हो जाएगी. चिठ्ठाकारिता की दिशा मुख्यत: तीन केन्द्रोँ से संचालित हो रही है. देश के भीतर महानगरोँ एवम कस्बाई इलाकों से. देश के बाहर विदेशी भूमि से भी इस क्षेत्र मेँ काफी निवेश हुआ है. अत: हिन्दी चिठ्ठाकारिता की दिशा तो चतुर्दिक है.
चिचियाना
इसे तनिक विस्तार से समझायेंगे!
चिठियाना
देखिए वह दिशा जो महानगरों से उठती है, वहीं तक सिमटी रहती है, और छोटे नगरों वाले उस दिशा में गुम हो जाना चाहते हैं। छोटे-क़स्बे से निकलने वाली दिशा हानगरों को आदर्श मानकर अपनी शैली और रुख में बदलाव लाती हैं। ये जो तीसरी दिशा है, विदेशी निवेश की, वही सारी दिशा-दशा तय करती है। जब देश के हर विकासशील क्षेत्र में इसका प्रभुत्व है, तो चिट्ठाकारिता में तो होना लाजिमी है। जब आप इस दिशा को ठीक से समझने लगते हैं, तो आपको दशा के बारे में बताने की कोई ज़रूरत ही नहीं रह जाती।
चिचियाना
आपकी नज़रों में हिंदी चिट्ठाकारिता का भविष्य कैसा है ? 
चिठियाना
जब तक अंग्रज़ी बोलने, सोचने, समझने वाले लोगों का वर्चस्व यहां रहेगा और विदेशी निवेश होता रहेगा, तो इसका भविष्य मुझे सुनहरा एवम उज्जवल दिखता है। भाई हम इम्पोर्ट करने में माहिर हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सारे ओरिजिनल थॉट बाहर से ही तो आए हैं।
चिचियाना
हिंदी ब्लॉगियाना के विकास में अंतरजाल कितना कारगर सिद्ध हो सकता है ?
चिठियाना
ये प्रश्न ही बड़ा बेतुका है। अजी हम सब इस जाल में जब से पड़े हैं, तब से ही तो इसका चतुर्द्दिक विकास हो रहा है। इससे छूटने का जितना प्रयास (नाटक) हम करते हैँ और जितना हाथ पैर मारते हैँ, उतना ही यह फैलता चला जाता है!
चिचियाना
आपने चिठियाना कब शुरू किया और उस समय की परिस्थितियाँ कैसी थी ? 
चिठियाना
बस यूं समझ लीजिए कि जब से आपने अंतरजाल पर क ख ग लिखना शुरु किया, तबसे हमने चिठियाना शुरु कर दिया। उस समय की परिस्थितियां बड़ी भिन्न थीं। हमने बहुत हाथ-पांव मारे तब जाकर खुद को स्थापित कर पाए। इतनी मेहनत आज कौन करता है। आज तो लोगों को फ़ास्ट-फ़ूड चाहिए, बना-बनाया, पका-पकाया।
चिचियाना
आप तो स्वयं सधे हुए साहित्यकार हैं, एक साहित्यकार जो गंभीर लेखन करता है उसे चिट्ठा लेखन करना चाहिए या नहीं ? 
चिठियाना
ये लाख टके का सवाल है। तो मेरा जवाब है – हां, हां और हां। अब देखिए, यदि आज के इस समारोह मेँ मुख्य पुरस्कार धारक के रूप में हम उपस्थित न होते, तो इस समारोह की शान में बट्टा लगता कि नहीं। इसको दूसरे ढ़ंग से कहें तो किसी भी महोत्सव की शान हमारे जैसे सच्चे साहित्य सेवी ही बढ़ा सकते हैं, बाक़ी मुद्दे तो विवाद के लिए ही होते हैं। वाद-विवाद ज़रूरी है, पर पहले संवाद तो हो। यहां एक हम हैं कि गंभीर चिठियाना करते हैं और विवाद सिर्फ टिपियाना जी ही करते रहते हैं। अब आपने इस साक्षात्कार में टिपियाना जी को नहीं बुलाया है, सो हम उनके बारे में अपनी प्रतिक्रिया रिज़र्व ही रखते हैं।
चिचियाना
आपके (चिठियाना) और टिपियाना के बीच विचारधारा और रूप की भिन्नता के वाबजूद साहित्य की अंतर्वस्तु को संगठित करने में आज चिट्ठाजगत सफल है या नहीं? 
चिठियाना
सफलता या असफलता बड़ा ही वस्तुनिष्ठ विषय है। अब देखिए मैं सफल हूं, जिसे आपने भी मान्यता दी, तो मेरा तो कर्त्तव्य बनता ही है कि इसे सफल कहूं। आप टिपियाने के विचार भी ले लें।
चिचियाना
फिलहाल तो हमें आपके विचार चाहिए।
चिठियाना
अधिकांश टिपियाने ऐसे ही हैं, जिन्हें अपनी बात ही सबसे अच्छी लगती है।
निज कवित केहि लाग न नीका।
सरस होई अथवा अति फीका।
जे पर भनिति सुनत हरषाही।
ते बर पुरूष बहुत जग नाहीं।
जो दूसरे की बात को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे लोग बहुत कम हैं। एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि अच्छा टिपियाना ब्लॉगियाना के लिए लाभदायक होते हैं। इसलिए सभी टिपियानों को टिपियाने की न सिर्फ़ छूट होनी चाहिए बल्कि इसका उन्हें प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए। उन्हें यह भी महसूस होना चाहिए कि उनके टिप्पों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जा रहा है। वर्ना वे उदासीन हो जाएंगे।
साथ ही हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि ‘मैं सबकुछ जानता हूं’ का भाव रखने वाला प्राणी सबसे मूर्ख होता है। इससे अहंकार की सृष्टि होती है। ऐसे लोगों के बारे में वेदव्यास, महाभारत में कहते हैं, “अभीश्चरति यो नित्यं मन्त्रोsदेयः कथंचन।’ अर्थात्‌ जो  टिप्पाकार अपने को बुद्धिमान मानकर निर्भय विचरता है, उसे कभी कोई (टिप) सलाह नहीं देनी चाहिए क्योंकि वह दूसरे की (टिप) सलाह नहीं सुनता है।
चिचियाना
आज के रचनात्मक परिदृश्य में अपनी जड़ों के प्रति काव्यात्मक विकलता क्यों नहीं दिखाई देती? 
चिठियाना
आप विकलता के ‘क’ को ‘फ’ में तबदील कर दें। हम तो सफल है। तभी तो यहां हैं।
चिचियाना
आपकी नज़रों में साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार क्या होना चाहिए ? 
चिठियाना
आत्म तुष्टि।
हां, जहां तक संवेदना की बात है तो मेरा मानना है कि सारे समय टिपियाना द्वारा चिठियाने  को निर्देश ही नहीं देते रहना चाहिए। कभी-कभार चिठियाने की राय भी लेनी चाहिए। जो अपने साथियों से सलाह-मशवारा नहीं करते वे अपने लिए मुसीबत को न्यौता ही देते हैं। एक दिन यह उसके लिए असफलता का कारण भी बन सकता है (मॉडरेशन ऑन है, यहां टिप्पणी की सुविधा नहीं है)। तब वह अपने को नितान्त अकेला पाएगा।
कहा गया है, ‘एक काम के लिए एक की जगह चार दिमाग बेहतर नतीज़ा दिखाता है।’ हालांकि इसके उलट भी है, ‘ज़्यादा जोगी मठ उजाड़’। किन्तु जब निर्णय लेने की बारी हो तो यह सिद्धान्त काम नहीं करता। कोई भी निर्णय कई विकल्पों में से किसी एक का चयन होता है। इसलिए व्यक्ति को अधिक से अधिक लोगों की राय लेनी चाहिए, जिनके आधार पर वह सही निर्णय ले सके। जो लोग प्रभावी होते हैं वे विभिन्न टिप्पों का स्वागत करते हैं। हमें खुले दिमाग का होना चाहिए, खाली दिमाग का नहीं। खुला दिमाग लचीला होता है। यह गुणों के आधार पर किसी विचार या टिप्पा को स्वीकार या अस्वीकार करता है।
चिचियाना
कभी-कभी सुझाव (टिप्पा) के रूप में आलोचना भी मिलती है।
चिठियाना
सही आलोचना फ़यदा ही पहुंचाती है। इसे एक अच्छी सलाह के रूप में लेना चाहिए। बचाव की कोशिश नही करनी चाहिए। हमें तो उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए जो रचनात्मक आलोचना करता है। वह हमारी सहायता कर रहा है।
निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय॥
अधिकतर ऐसा पाया जाता है कि किसी निर्देश का सही पालन तभी सहज होता है जब उसके बारे में लोगों से चर्चा कर ली जाए, जिन्हें यह काम करना है। इसके लिए अपने व्यवहार में नम्रता लानी चाहिए। लोगों के पास जाकर मिलजुल कर रहना चाहिए।
ऊंचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय।
नीचा हो सो भरिए पिए, ऊंचा प्यासा जाय॥
(टंकी आरोहण – अवरोहन)
चिचियाना
आज की चिट्ठाकारिता की आधुनिकता अपनी देसी जमीन के स्पर्श से वंचित क्यों है? 
चिठियाना
क्योंकि हम जो ऊपर दिशा की बात कह आए हैं वह बात इस क्षेत्र में भी लागू होती है।
चिचियाना
क्या हिंदी ब्लोगियाना  में नया सृजनात्मक आघात देने की ताक़त छिपी हुई है?
चिठियाना
घात-प्रतिघात से ही तो आघात का सृजन होता है। आए दिन यह होता ही रहता है। और फिर इस महोत्सव से जितने आघात का सृजन हुआ है, वह क्या कम है।
चिचियाना
कुछ अपनी व्यक्तिगत चिट्ठाकारिता से जुड़े कोई सुखद संस्मरण बताएं? 
चिठियाना
आपका जब फोन आया कि आप मेरा साक्षात्कार चाह्ते हैँ, तो वह क्षण मेरे चिट्ठाकारिता जीवन का सबसे सुखद क्षण था।
चिचियाना
कुछ व्यक्तिगत जीवन से जुड़े सुखद पहलू हों तो बताएं? 
चिठियाना
जब टिपियाना का मुंह हमने बंद कर दिया। (यहां टिप्पणी की सुविधा नहीं है)
चिचियाना
इस महोत्सव की सफलता के सन्दर्भ में कुछ सुझाव देना चाहेंगे आप?
चिठियाना
आप तो ब्लॉगियाना की दिशा और दशा तय कर रहे हैं। लगे रहें।
चिचियाना
नए चिट्ठाकारोँ के लिए कुछ आपकी व्यक्तिगत राय?
चिठियाना
कई बार ब्लॉगियाना मे देखा जाता है कि अच्छी सलाह देने से चिट्ठाकार कतराते हैं। पर मैं नहीं। हालांकि सलाह का कदाचित ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, वे ही इसे सबसे कम पसन्द करते हैं। फिर भी मैं तो यही कहना चाहूंगा कि लोग मुझसे सीख लें और लगे रहें। बड़े चिट्ठाकार, मठाधीश टाइप के चिट्ठाकार अन्य लोगों से सुझाव लेने में रुचि नहीं दिखाते। शायद वे ये सोचते हों कि यह उनकी कमी मान ली जाएगी। उन्हें यह भी लगता होगा कि अगर उन्होंने किसी का सुझाव लिया तो लोग सोचेंगे कि वह बात उसने ख़ुद क्यों नहीं सोची। यानी उनका बड़प्पन दांव पर लग जाएगा। यह सोच ग़लत है। वे ब्लॉगियाना के योग्य चिट्ठाकारों से अनजान रहते हैं। वे जितना अधिक चिठियाना से मिलेंगे, उनकी सुनेंगे इससे उनका बड़प्पन घट नहीं जाएगा।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाहिं
गिरिधर मुरलीधर कहं, कछु दुख मानत नाहिं
 
(सुना है इस साक्षात्कार को देखने-सुनने के बाद टिपियाना ने अपना पक्ष रखने के लिए एक प्रेस-कॉन्फ़्रेन्स कर डाला। फिर कभी फ़ुरसत में उसका जायज़ा लिया जाएगा।)

32 टिप्‍पणियां:

  1. चिचियाना की चतुरता, प्रश्नों में प्रगटाय |
    चिठियाना की विकलता, आय दागती ठांय |
    आय दागती ठांय, दिशा गावों में जाए |
    बिन बिजली बहलाय, कहीं भी निपटा आये |
    रविकर ब्लॉगर श्रेष्ठ, सुने न समालोचना |
    मिठ्ठू मियां अकेल, करे खुरपेंच-कोंचना ||

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  2. बस साक्षात्कार के बहने सब कुछ कह डाला जाय और परोक्ष रूप से सबको सलाह भी दे दी जाय इससे अच्छा और क्या हो सकता है. वैसे फुरसत के क्षण सार्थक चिंतन में गुजर रहे हें और औरो के लिए लाभकारी भी हें.

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  3. भाई जी , ये क्या हुआ आपको , आप तो एकदम खतरनाक मूड में है आजकल . नख से शिख तक खिचाई टाइप . देखिएगा अगले पोस्टवा तक एक" खिसियाना" पात्र मिल जायेंगे आपको . कुछ बड्डे लोग तो माडरेसन लगाने के लिए कुछ भी उल जुलूल दलीले देते है . डरते होगे आलोचना से . हा हा . एकदम झकास टाइप का साक्षात्कार .

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  4. लो जी यहां चिचियाना ने पैदा होते ही साक्षात्‍कार भी कर डाला। बधाई हो।

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  5. निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
    बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय॥

    जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाहिं
    गिरिधर मुरलीधर कहं, कछु दुख मानत नाहिं

    ham to isi leek par chalte the, chalte hain, chalte rahenge ji. :-)


    bahut sunder.

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  6. यह भी साहित्य की एक विधा है!
    --
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  7. सुना सुना सा सक्षात्कार लग रहा है...

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  8. बहुत खूब रही वार्ता ...
    सुन्दर प्रस्तुति

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  9. ब्लॉगरम ब्लॉगिओसा, चिठियाना उदासियोकम, टिपिय़ार्डिया चतुरकम, चिचियम च्वांचिचोचम, पिपियाना कष्टकम, प्रदूषकम कबाड़ीफ़ोलिया तथा इगोइगो भौंभौं इन सप्त द्रव्यों को पुष्य नक्षत्र की रात्रि में जब आकाश निरभ्र हो तथा सप्तर्षिमंडल दृष्टिगोचर हो रहा हो तब जंगल में जाकर ब्लॉग देवता की स्तुति करते हुये टिप्टिप्टिपाटिपा देव से अनुमति लेकर सावधानी पूर्वक उखाड़ लेवें। परमिटेड मात्रा में विष अवश्य घोला गया हो जिस मिनरल वाटर में ऐसे स्वच्छपेय से इन सभी द्रव्यों को अच्छी तरह धोकर स्वच्छ करलें तदुपरांत सूर्यदेव की तीव्र किरणों के प्रताप से इन्हें शुष्क कर लेवें। शुद्ध मन से श्रद्धावनत हो कूट-पीस कर रख लें, आवश्यकतानुसार “लवणम् मरिचम् च” का संयोग करें। अपनी-अपनी सहनशक्ति का स्मरण करते हुये मात्रा स्वतः ही निर्धारित करलेवें। भगवान ब्लॉगराचार्य द्वारा अन्वेषित व उपदेष्टित यह अद्भुत् योग दुःखी-पीड़ित तथा अवसाद को प्राप्त हुये तथाकथित साहित्यकारों एवं ब्लॉगरित्यकारों की प्राणरक्षा करने में पूर्णतः समर्थ है। हे कलियुग के मानवो ! इसमें किंचित भी संशय नहीं है। यह अद्भुत् योग विषमता को प्राप्त हुये वात, पित्त तथा कफ़ इन तीनो दोषों को साम्यावस्था में लाकर मन को शुद्ध कर देता है अतः हे चिट्ठाकार मानवो ! यह योग सदा-सर्वदा कल्याणकारी है।
    टीप :- इस नुस्ख़े का पेटेंट हो चुका है अतः ईमान खो गया है जिनका ऐसे कोई भी सज्जन इसे चुराने की कृपा न करें। केवल कल्य़ाण की भावना से इसे यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। लाभ होने पर दक्षिणा अर्पित करना विस्मृत न करें। ॐ शांतिः ! शांतिः !! परम् शांतिः !!!

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  10. अब तो डर लगने लगा है आपसे.. अचानक से आपका यह अवतार ब्लॉग-जगत का कल्कि अवतार तो नहीं!! परमात्मा से प्रार्थना है कि सप्ताह के दिनों से शानि की दशा निकाल दे.. वरना पता नहीं आपकी दृष्टि कहाँ कहाँ पड़ेगी.. कहीं अगले साक्षात्कार में आंचलिक भाषा के जरिये पब्लिसिटी की बात न निकल आये.. जय हो चिठियाना महाराज की!!!

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  11. :) :) आज तो बहुतों को लपेट लिया है .... अभी तक चिठियाना और टिपियाना ही सुना था अब चिचियाना भी ? गजब गजब के किरदार पैदा हो रहे हैं ....

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  12. सुन्दर वार्तालाप के माध्यम से सुलझी प्रस्तुति के लिए बधाई

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  13. घात-प्रतिघात से ही तो आघात का सृजन होता है। आए दिन यह होता ही रहता है। और फिर इस महोत्सव से जितने आघात का सृजन हुआ है, वह क्या कम है

    चिठियाना चिचियाना संवाद बहुत जम रहा है । अब इसमें टिपियाना जी भी सामिल हों तो त्रिसूत्रीय वार्तालाप हो सकता है ।

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  14. ये बड़ा अच्छा तरीका निकाला है मांजने का,
    मजा आया सुबह सुबह ....बढ़िया पोस्ट है !

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  15. चिचियाना समझदारी का लक्षण नहीं है लेकिन यह तो काफी समझदार लगता है! कहीं यह बुद्धिजीवी तो नहीं?:)

    आनंद आ गया।

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    1. आजकल जब टीवी पर एंकर को साक्षात्कार करते देखता हूं, तो वे चिचियाते ही लगते हैं।

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  16. बड़े चिट्ठाकार, मठाधीश टाइप के चिट्ठाकार अन्य लोगों से सुझाव लेने में रुचि नहीं दिखाते।

    बहुत खूब !

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  17. बात कुछ ऐसी ही होनी चाहिए जो कि फुरसत में ही की जानी चाहिए . ताल-मात्राओं को ठोक-ठोक कर..

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  18. कितनों को लपेट लिया ...
    बहुत खूब आनंद आ गया ....

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  19. चिठियाना, टिपियान , चिंचियाना ..
    ज्ञान चक्षु खुल गये इस साक्षात्कार से !

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  20. लगता है इन साक्षात्कारों की श्रृंखला शुरू कर दी है आपने :)। इस मौलिक विचार और इतनी मेहनत में आपकी प्रतिभा स्पष्ट दिख रही है। वाकई बहुत मज़ा आया...

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।