नहीं वह गांव, नहीं वह घर
श्यामनारायण मिश्र
बचपन बीता जहां,
नहीं वह गांव, नहीं वह घर।
आंखों का बाग
और कमलों की गड़ही।
तोंते का पिंजड़ा,
सींके का दूध, दही।
आंखें खोज रही,
बोतल में छतने का महपर।
ऊंटों से टीले,
औ नीम का दरख़्त।
निगल गया समय का,
अजगर कमबख़्त।
कच्ची दीवार,
बांस का ठाठ, कांस का छप्पर।
दादी की धौंस,
और दादा का रोब।
नेउर की खनक,
नक्कारे की चोब।
पी गया मक्कार,
शहर का ऊँचा घंटाघर।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
शहर होते गाँव का दर्द ढल गया है इस रचना में .शहर से गाँव की और भी कभी पलायन होगा शायद शहरी विष बढ़ जाने पर लोग इलाज़ के लिए तात्विकता से संयुत हवा पानी की तलाश में आएं .बेहतरीन रचना श्यामनारायण मिश्र की मनोज जी के सौजन्य से .
जवाब देंहटाएंअतिशय रीढ़ वक्रता का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
कमाल का चित्र खींचा है मिश्र जी ने और पीछे छिपी वेदना भी स्पष्ट है!!
जवाब देंहटाएंसब हमें अकेला छोड़ गये,
जवाब देंहटाएंसब अपनी राह चले जाते।
ये दिन क्या आये
जवाब देंहटाएंसब लगने लगे पराये
ऊंटों से टीले,
जवाब देंहटाएंऔ नीम का दरख़्त।
निगल गया समय का,
अजगर कमबख़्त ...
वाह ... गज़ब की अभिव्यक्ति ... प्रभावी .... बिना लाग लपेट के शब्द ...
बहुत सुंदर रचना .... मिश्र जी की रचनाएँ सत्य के धरातल पर बुनी हुयी होती हैं
जवाब देंहटाएंमिश्रजी पुरातन के मोह को नहीं छोड़ पाते थे। आधुनिक परिवर्तन से टूटते सामाजिक ताने-बाने से बाराबर उनमें असन्तोष बना रहता था। यह कविता उनके एवं उनके जैसे लोगों की मानसिकता को बड़े ही बेलौस तरीके से व्यंजित करती है।
जवाब देंहटाएंये कविता नहीं है बल्कि अराजक बदलाव का सशक्त प्रमाण है..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबचपन की बहुत - सी बातें स्मृति - पटल पर कौंध गईं …
अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आभार !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं के सृजन के साथ-साथ ऐसे पुनीत कार्य होते रहें, यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
saty hai ,ab gaaon mein shahar ghus gayaa hai
जवाब देंहटाएंbahut hi marmsparshi...
जवाब देंहटाएंबचपन की बहुत - सी बातें स्मृतियां आज भी मन को कुदेरती रहती है...मार्मिक अभिव्यक्ति.. -
जवाब देंहटाएंपिछली बार जब गाँव गई थी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ था !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ....
Sach wo ghar jo nahee hai,aajbhee bulata hai!
जवाब देंहटाएं'निगल गया समय का,
जवाब देंहटाएंअजगर कमबख़्त।'
- कल कोई समझनेवाला भी न हो शयद ,दोष किसे दें !
दादी की धौंस,
जवाब देंहटाएंऔर दादा का रोब।
नेउर की खनक,
नक्कारे की चोब।
पी गया मक्कार,
शहर का ऊँचा घंटाघर।
बचपन की स्मृतियां