शनिवार, 28 मई 2011

फुरसत में ... दिल ढूँढता है फिर वही ऊटी ... !

फुरसत में ...

दिल ढूँढता है फिर वही ऊटी ..!

IMG_0545_thumb[1]मनोज कुमार

झिंगूर दास 237आपको तो याद ही होगा … हाथों में हाथ डाले हनीमून कपल की चर्चा हमने पिछले पोस्ट में की थी। क्या कहा …. भूल गए ?!  ‘अरे! ये कैसे कर सकते हैं आप?’

झिंगूर दास 232स्वच्छंदता से घूमने-फिरने और रोमांस के लिए जस्ट मैरिड (नवविवाहित जोड़ों) की पसंदीदा रोमांटिक जगहों की भारत में कमी नहीं है। फिर भी मुझे लगता है कि सबसे अधिक वे पर्वतीय प्रदेशों में जाना पसंद करते हैं। इठलाती-मचलती नदी, अपनी ताज़गी से मदमाता प्राकृतिक सौन्दर्य, ऊंची-ऊंची बर्फ़ीली पर्वत चोटियां, सुंदर पशु-पक्षियों का समूह, हरे-भरे जंगलों से आच्छादित घाटी, चट्टानों पर गिरते झरने और फलों से लदे बाग, हनीमून मनाने के लिए लोगों की पहली पसंद तो होगी ही।

झिंगूर दास 180दक्षिण भारत में ऊटी भी इसी तरह का स्थल है! इस हिल-स्टेशन को कुदरत ने सदाबहार ख़ूबसूरती से नवाज़ा है। गरमी हो या सर्दी, यहां हर मौसम में मस्ती, रोमांस, रोमांच का एक संपूर्ण पैकेज मौज़ूद रहता है। इस जगह पर आकर हमें तो काफ़ी सुकून भरे एहसास का अनुभव हुआ। जीवन के सफ़र की शुरुआत करने वालों के लिए तो यह एक बहुत ही हसीन जगह है, जहां रंग-विरंगे फूलों की कतारें, हरी चादर से ढकी धरती स्वप्नलोक सरीखी लगती है। इसमें कोई शक नहीं कि नवदंपत्ती के लिए एक-दूसरे को समझने, एक-दूसरे के लिए समर्पण की भावना जगाने, तथा एक-दूसरे के दिल की गहराइयों में जगह बना लेने में ऊटी की सुरम्य वादियां निश्चित रूप से मददगार साबित होती होंगी।

नीलगिरी की पहाड़ियों में बसी नगरी ऊटी को दक्षिण भारतीय ‘पर्वतों की रानी’ कहते हैं। नीलगिरी संसार के सबसे पुराने पर्वत श्रेणियों में से एक है। यह हिमालय से भी पुराना है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक की संधि-स्थल पर स्थित यह पश्चिमी घाट झिंगूर दास 197पर्वत श्रृंखला अपने विशिष्ट जैव-विभिन्नता के लिए जाना जाता है। 36 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह हिल स्टेशन समुद्र तल से 2,240 मीटर की ऊंचाई पर है। गर्मियों में यहां का औसत तापमान 10 से 250 C और जाड़े में 0 से 210 C होता है। यहां की सैर के लिए अप्रील से जून और सितम्बर से नवम्बर अनुकूल मौसम होता है। गर्मी में तो हलके ऊनी वस्त्र से काम चल सकता है पर जाड़े में मोटे ऊनी वस्त्रों की ज़रूरत पड़ती है। यहां की सादगी भरी सुंदरता में ऐसा ग़जब का आकर्षण है कि यह देखने वालों को चकित कर देती है।

कोलाकाता की, शहरी भाग-दौड़ की ज़िन्दगी, तपती गरमी और उमस भरे वातावरण से हटकर ऊटी जैसे सुरम्य हिल स्टेशन पहुंचना हमारे लिए एक असीम आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाला था। प्रकृति के सान्निध्य में कुछ क्षण सुकून के बिताने का अवसर वर्णनातीत है। अंग्रेज़ों ने तो जिस जगह की जलवायु और मौसम को इंगलैंड के ही समान माना था, उस जगह की सुरम्य वादियों का अनछुआ नैसर्गिक सौन्दर्य बरबस ही हमारा मन मोह ले रहा था। धुंध से ढ़की घाटियां और शीतलता प्रदान करता वातावरण मन में रूमानी अनुभूतियों का मेला सा लगाता प्रतीत होता रहा।झिंगूर दास 192

ooty-botanicalइस नगर को पहले ऊटकमंडलम के नाम से जाना जाता था। बाद में बिगड़कर के ऊटी हुआ। ऊटी के जिन स्थलों को हमने देखा उनमें बोटेनिकल गार्डेन ने काफ़ी प्रभावित किया। ट्वीडेल के मार्कुएस ने 1897 में 55 एकड़ में फैले इस उद्यान की नींव रखी थी। पेड़-पौधों में रुचि रखने वालों के लिए यह तो स्वर्ग ही है। इस उद्यान में 650 से अधिक प्रजातियों के पौधे हैं। कुछ तो बहुत ही दुर्लभ प्रजाति के हैं। इसमें बीस मीलियन वर्ष पुराना एक फ़ौसिल भी है। पूरा बाग बहुत ही करीने से सजाया गया है। इसके सैर करने की लुत्फ़ बड़ा ही मनभावन है।

झिंगूर दास 230रोज़ गार्डेन ऊटी शहर की शान में चार चांद लगाता है। ऐसा दावा किया जाता है कि जितने अधिक किस्म के गुलाब इस गार्डेन में हैं उतने देश में अन्यत्र किसी गार्डेन में नहीं है। मंत्रमुग्ध होकर हम तो इसके क़रीब 2,500 क़िस्म के गुलाबों का नज़ारा करते रहे।

toy-train1897 में स्थापित टॉय ट्रेन से आप मेट्टुपलयम से ऊटी तक की इन हसीन वादियों में 45 किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं। इस यात्रा में 16 गुफाओं से यह ट्रेन गुज़रती है। बलखाती पहाड़ियों पर सुरंगों से गुज़रती ट्वाय ट्रेन जब धीरे-धीरे आगे बढ़ती है तो मन अद्भुत रोमांच से भर जाता है।

झिंगूर दास 244बोट हाउस यहां का सबसे प्रसिद्ध स्थल है। 1894 में ऊटी के तत्कालीन कलक्टर जॉन सुल्लिवान द्वारा इस कृत्रिम झील का निर्माण किया गया था। ऊटी के सुहाने मौसम का भरपूर आनंद इस झील में बोटिंग कर के कई गुना बढ़ जाता है। पानी की लहरों पर बोट चलाना एक असीम आनंद देने वाला अनुभव होता है। कुछ लोग मोटर बोट से भी मज़ा उठाते हैं पर पैडल बोट की आनंद ही कुछ और है!

बोट हाउस की दूसरी तरफ़ थ्रेड गार्डेन है। इस झिंगूर दास 196आश्चर्य जनक कारीगरी को गिन्नीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ किया गया है। 60 मीलियन मीटर की एम्ब्रॉयडरी की कारीगरी 50 कुशल कारीगरों द्वारा 12 वर्षों में तैयार हुई थी।

ऊटी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डोड्डाबेट्टा नीलगिरी की सबसे ऊंची चोटी है। पूर्व और पश्चिम घाट की संधि-स्थल पर स्थित यह पहाड़ी समुद्र तल से 2,623 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां से पूरे प्रदेश का विहंगम दृश्य देखने का सुख ही अलग है। इस ऊंची चोटी से अन्य चोटियों को और नीचे घाटी और समतल की ओर देखने का सुख ही अलग है। इस जगह से ढ़लती सांझ क नज़ारा देखने लायक होता है। इस पर एक टेलिस्कोप घर भी है। यहां से ऊटी की अद्भुत प्राकृतिक सुषमा देख कर इसी पर्वतीय-प्रदेश में बस जाने का मन करता है।

झिंगूर दास 202डोड्डाबेट्टा के रास्ते में टी म्यूज़ियम पड़ता है। यह सबसे ऊंची जगह पर बनी चाय की फ़ैकटरी है। यहां चाय की पत्ती के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में जानने का अविस्मरणीय अनुभव हुआ। इसे हम अगली पोस्ट में साझा करेंगे। इस फ़ैक्ट्री से पूरे ऊटी शहर का नज़ारा मन को हर्षित कर गया।

हर क़दम पर यहां भरपूर सौंदर्य बिखरा पड़ा है। इसे छोडकर जाने का मन तो करता नहीं, पर अपनी मज़बूरी वापस तो जाना ही था। ऊटी से 105 कि.मी. का सफ़र सड़क से तय कर हम कोयंबटूर पहुंचे और वहां से हवाई यात्रा से वापस कोलकाता आ गए। वापसी के समय जिस मोटर कार से कोयंबटूर एयरपोर्ट की तरफ़ जा रहे थे उसमें यह गीत बज रहा था और हम मन ही मन गाए जा रहे थे ...

दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन -
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए


जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर -
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए

या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें -
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए

बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर -
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिये हुए

32 टिप्‍पणियां:

  1. लोगों से सुन रखा था कि ऊटी का जवाब नहीं, आज आपने भी तस्‍दीक करदी। अच्‍छा लगा जानकर।

    ---------
    हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
    अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

    जवाब देंहटाएं
  2. ऊटी का मनोरम दृश्य, चित्र और विस्तृत विवरण सहित वाक़ई मन को लुभाने वाला है.आपका प्रस्तुतीकरण भी ग़ज़ब का है.

    जवाब देंहटाएं
  3. उटी के बारे में विस्तृत जानकारी ... देखा हुआ है ..एक बार फिर यादें ताज़ा कर दीं.. बढ़िया प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. ऊँटी देखा हुआ है लेकिन आपके विवरण से यादें फिर ताजा हो गयी। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. हम तो उटी जाने एक लिए बेताब हो गए ...रोचक विवरण के साथ सुंदर तस्वीरें वहां के प्राकृतिक सोंदर्य को बखूबी अभिव्यक्त कर रहीं हैं ....आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. फिर घूम आये हम ऊटी आपके सुँदर यात्रा वृतांत के साथ . एकदम मस्त .

    जवाब देंहटाएं
  7. ऊटी का मनोहारी चित्रण किया है और साथ मे पसंदीदा गाने के बोलों ने चार चाँद लगा दिये।

    जवाब देंहटाएं
  8. 'ऊटी ' के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी, वह भी इतने मनमोहक अंदाज़ में ......वाह क्या कहना !

    चित्रों का संयोजन और लेख का आकर्षण अद्वितीय ...

    जवाब देंहटाएं
  9. ऊटी के विषय में सुंदर विवरण और जानकारी भी .....
    यादें ताज़ा हो गयीं .
    आभार.

    जवाब देंहटाएं
  10. उटी jaa to nahi sake ab tak, lekin sundar manoram chitran aur prastutikaran ko dekhkar man mein aa raha hai ek baar jarur jaayengi.. .. itni pyari jagah jo hai....
    prastuti ke liye dhanyavaad...aabhar!

    जवाब देंहटाएं
  11. गरमी के तपे हुए दिनों में ऊटी का भ्रमण करा कर आपने शीतलता की बयार ला दी...सुन्दर प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  12. बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर -
    वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
    आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिये हुए.

    ये गीत भूपेंद्र जी की आवाज और ऊटी की मदमस्त तरो-ताजगी. सुंदर यात्रा वृतान्त. ऐसा लगा हम खुद ऊटी में हैं. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  13. चलो चलें यहां से उदगमण्डलम के लिये!

    जवाब देंहटाएं
  14. पिछले बरस जाते जाते रह गए। चलिए आपकी पोस्‍ट के साथ ही यात्रा कर ली।

    जवाब देंहटाएं
  15. चार साल पहले गया था, यादें ताजा करवा दीं आपने।
    हां शहद चांद जैसा कोई चक्कर नहीं था, उसके काफी बाद की बात है :-)

    जवाब देंहटाएं
  16. हनीमून टाईप से तो नहीं..बाल बच्चों भाई भौजाई सबके साथ हम ऊटी और इसके आस पास के कई इलाकों में करीब आठ वर्ष पहले घूमने गए थे...और जो रोमांचक सफ़र रहा था,जो हृदयहारी सौदर्य ने हमें अपने से बाढ़ लिया था...आपकी पोस्ट पढ़कर सब याद आ गया...

    सचमुच वहां पहुँच जो अनुभव होता है,शब्दों में बता पाना संभव नहीं...

    जवाब देंहटाएं
  17. ऊटी और आपका लेखन दोनों का जबाब नहीं. उसपर अंत में ये मदमस्त गीत - चेरी ऑन द क्रीम केक.

    जवाब देंहटाएं
  18. आपके द्वारा बार बार प्रयोग किए गए 'उटकमंडल ' शब्द ने कुछ याद दिला दिया...बचपन में एक खेल खेलते थे.." लड़का-लड़की-शहर-सिनेमा" जिसमे एक ही अक्षर से शुरू हुए चारो नाम लिखने पड़ते थे.
    तब शहर का नाम ,उ से उटकमंडल ही लिखा जाता था :)
    रोचक वृत्तांत

    जवाब देंहटाएं
  19. मनोज भाई!
    २२ साल्पुराना सब नज़ारा नज़र के सामने ला दिए आप. और अंत में गुलज़ार साहब का गीत जो उन्होंने ग़ालिब की ज़मीन पर लिखा है, वास्तव में उस माहौल की कशिश को दोगुना कर देता है. तस्वीरें तो फेसबुक्पर्देख चुका था कुछ, पर वर्णन ले गया उसी झील में, जहां मेरी श्रीमती जी गाया करती थीं, "दिंल दीवाना, बिन सजना के माने ना."
    - सलिल

    जवाब देंहटाएं
  20. @ केवल भाई ज़रूर हो आइए। अभी सीजन है।

    जवाब देंहटाएं
  21. अधिकांश पाठकों ने कहा है कि वे इस मनोरम स्थल की यात्रा पहले कर चुके हैं, उसके बावज़ूद भी उन्हें यह आलेख पसंद आया। आपका आभार और धन्यवाद।

    जो न जा सके हैं अब तक उनसे निवेदन कि जल्द से जल्द हो आएं। अभी बहुत अच्छा समय है वहां जाने का।

    जवाब देंहटाएं
  22. या गर्मियों कि रात जो...पुर्वाईयाँ चलें...ठंडी सफ़ेद चादरों पे (छत पे सोने का दौर तो ख़तम लगता है...ये ठंडक ए. सी. की है...) सोचें उटी के बारे में...दिल में वहां की नैचुरल ठंडक लिए हुए...मेरे यहाँ ए सी नहीं है...पर जब सोचने की छूट है..तो इसमें दरिद्रता कैसी...

    जवाब देंहटाएं
  23. आप यात्रा-वृत्तान्त अच्छा लिखते हैं। आपमें पत्रकारिता की अच्छी प्रतिभा है। ऊटी का दूसरा अंक भी पहले की तरह रोचक लगा। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  24. सुन्दर प्रस्तुति. वैसे ऊटी अब बहुत ही अधिक व्यवसायिक हो चला है. पश्चिमी घाट श्रृंखला में नयी जगहों को तलाशा जा सकता है.

    जवाब देंहटाएं
  25. कभी जायेगे हम भी ऊंटी सुना हे बहुत सुंदर हे, सभी चित्र ओर विवरण बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  26. सुन्दर चित्रों से सजा बढ़िया यात्रा संस्मरण!
    पोस्ट के अन्त में
    रचना भी बहुत बढ़िया लगाई है आपने!

    जवाब देंहटाएं
  27. उती वाकई खूबसूरत स्थान है ...फूलों और हरियाली से भरपूर ..
    हमारी यादों में भी बसा है ये पर्वतीय स्थल ...जब वाहन में गूंज रहा था " पहाड़ों को चंचल किरण चूमती है "..

    जवाब देंहटाएं
  28. दार्जिलिंग,श्री नगर और कारगिल प्रत्यक्ष देखे थे,अब आपने घर बैठे ऊटी(उताक्मंलम)घुमा दिया.

    जवाब देंहटाएं
  29. स्वर्गीय अभिनेता राजकुमार का एक बड़ा सा फार्म हाउस है यहां। अजीत भी फिल्मों में दुबारा वापसी करने से पहले,इसी शहर में अंगूर की खेती करते थे।

    जवाब देंहटाएं
  30. आदरणीय मनोज जी-ऊटी का बहुत ही मनोरम दृश्य आप ने प्रस्तुत किया -और सुन्दर गाने लगा के मन भी लुभाया -बधाई हो -
    आशा है आप अपने सुझाव , समर्थन , स्नेह देते रहेंगे
    साभार -
    शुक्ल भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।