सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

गुरु की महत्ता

---मनोज कुमार

"गुरुतर महत्ता का प्रतीयमान 'गुरु' शब्द स्वयं में ही अलौकिक श्रद्धा का प्रतीक है । विश्वगुरु भारत की समृद्ध गुरु-शिष्य परम्परा पर समय समय आर अपसंस्कृति की धूल जमने का प्रयास करती रही है किंतु इसकी शाश्वत उज्ज्वलता आज भी विद्यमान है। अब तो गुरु-वंदना में अखिल विश्व भारत का अनुसरण कर रहा है। मासपूर्व भारत ने शिक्षक दिवस मनाया तो आज, ५ अक्टूबर को 'विश्व शिक्षक दिवस' है। जो अखंड ब्रह्माण्ड रूप में चर और अचर सब में व्याप्त है, जो ब्रह्मा, विष्णु और देवाधि देव महेश हैं, उन्हें हमरा सत सत नमन ! "

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांव़।
बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो मिलाये।।
संत कबीर दास की ये पंक्तियां हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति में गुरु के महत्व को अभिव्यक्त करती हैं।
देश के दूसरे राट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन के जन्म दिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1994 से यूनेस्को द्वारा 5 अक्तूबर को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
किसी भी राष्ट्र के शिक्षा और विकास में शिक्षकों के अमूल्य योगदान को जताने का आज सुअवसर है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए शिक्षक की ज़रूरत को समझा और समझाया जा सके विश्व शिक्षक दिवस का यही मकसद है। आज दुनिया भर के 108 से अधिक देश विश्व शिक्षक दिवस मनाते हैं।
आज सारे संसार में तरह-तरह के बदलाव आ रहे हैं। हर तरफ परिवर्तन की आंधी है। ऐसे समय में शिक्षकों के समक्ष चुनौतियां और बढ़ गई है। आज शिक्षक का काम किसी विद्यार्थी को केवल विषय में निपुण बनाना भर नहीं रह गया है बल्कि देश और दुनिया के जिम्मेदार नगरिक भी बनाना है।

हमारे देश में जहां एक ओर शिष्यों के गुरु की प्रति निष्ठा और समर्पण की भावना में ह्रस हुआ है वहीं दूसरी ओर शिक्षकों की गुणवत्ता में कमी आई है। आज हमें प्रशिक्षित ही नहीं बल्कि शिक्षा के प्रति समर्पित शिक्षकों की बहुत ही अधिक आवश्यकता है। हमें ऐसे शिक्षक चाहिए जो भारतीय संस्कृति के अनुरुप शिक्षक की परिभाषा को सही साबित करते हुए देश को विकास के पथ पर आगे ले जा सकें।

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