मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

पादप यहां न कोई तेरा

--- मनोज कुमार
पादप ! यहां न कोई तेरा !

तरु- तरु लिपट रहीं वल्लरियां,
भंवरों से चुम्बित मधु कलियां,
और अकेला खड़ा विजन में,
नित देखे तू सांझ – सवेरा ।
पादप ! यहां न कोई तेरा !

सरसिज पर क्रीड़ा मराल की,
लहरें चूमें तृषा डाल की।
तुमको मिला न कोई साथी,
करे रात जो यहां बसेरा।
पादप ! यहां न कोई तेरा !

सबके साथी अपने-अपने,
देख रहे सब सौ-सौ सपने
तेरे भी कुछ सपने होंगे
साथी प्रिय हो कोई मेरा।
पादप! यहां न कोई तेरा!
*** ***

12 टिप्‍पणियां:

  1. सबके साथी अपने-अपने,
    देख रहे सब सौ-सौ सपने
    तेरे भी कुछ सपने होंगे
    कोई चिर-स्नेही हो मेरा।
    पादप! यहां न कोई तेरा!
    bahut sundar .aap aaye blog par khusi hui .

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  2. sundar rachna! ekaaki jeevan ke vyaatha ki marmsparshi abhivyakti. shilp sahaj evam manohaaree. kintu phir bhi main kuchh kahnaa chaahunga,
    करे रात जो यहां बसेरा।
    पादप ! यहां न कोई तेरा !
    "यहां" kee punurukti ko roka jaa sakta tha.... kyonki yahaan yah "punurukti" alankaar ka chamtkaar vyakt nahi kar paa raha hai !

    कोई चिर-स्नेही हो मेरा।
    mere khyaal se is pankti me "pravaah" baadhit ho rahaa hai ! chhuki kavita chhadbaddh hai, atah chhand-vyavastha ka yathaasambhav paalan "kaavy-soundarya" vardhak siddh ho saktaa hai !! Lekin prastut rachna ka kaavya saushthav kaheen se kam nahee hai !!!

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  3. करणजी आपका सुझाव अच्छा लगा। कुछ संशोधन कर दिया।

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  4. Manoj ji Adbhut kavita hai aapki...padh kar dil baag baag ho gaya...hindi shabdon ka chamatkari prayog...waah.

    Neeraj

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  5. सुंदर कविता ... बधाई !!!

    http://gunjanugunj.blogspot.com

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  6. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

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  7. तरु- तरु लिपट रहीं वल्लरियां,
    भंवरों से चुम्बित मधु कलियां,
    और अकेला खड़ा विजन में,
    नित देखे तू सांझ – सवेरा ।
    पादप ! यहां न कोई तेरा !

    मनोज जी इस लय बद्ध रचना को पढने का अलग ही स्वाद आया ......बहुत खूब .....!!

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  8. बहुत सुन्दर रचना ....गति और लय के साथ सुन्दर शब्दों का समायोजन ...और एक सन्देश भी छिपा हुआ है ...

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  9. और अकेला खड़ा विजन में,
    नित देखे तू सांझ – सवेरा ।
    पादप ! यहां न कोई तेरा !
    - वसंत ऋतु में एकाकी खड़े वृक्ष की व्यथा का सुन्दर निरूपण १

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  10. अंत:स को छूती प्रस्तुति ......

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  11. besahaaron ka sahara ab hame hee banna padega..padap vyatha ke madhyam se manveey man kee vyatha ka chitrn karti sunder racha..sadar badhayee ke sath

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