-- करण समस्तीपुरी
हमारे मिथिलांचल में एक कहावत है, 'जग जीत लियो रे मोरी कानी !' हालांकि कहावत का आधा हिस्सा अभी बांकी है लेकिन वो मैं आपको देसिल बयना के इस कड़ी के अंत में कहूँगा। आईये पहले देखें कैसे बनी कहानी...
हमारे मिथिलांचल में एक कहावत है, 'जग जीत लियो रे मोरी कानी !' हालांकि कहावत का आधा हिस्सा अभी बांकी है लेकिन वो मैं आपको देसिल बयना के इस कड़ी के अंत में कहूँगा। आईये पहले देखें कैसे बनी कहानी...
कमला घाट के एक गाँव में एक लड़की थी। कुलीन। सुशील। किंतु भगवान की माया.... एक दोष था बेचारी में। वो क्या था कि वो कानी थी। बोले तो उसकी एक आँख दबी हुई थी। तरुनाई पार कर के जैसे ही यौवन की देहरी पर पैर रखी, उसके माता-पिता को उसके विवाह की चिंता सालने लगी।
बेटी का ब्याह तो यूँ ही अश्वमेघ यज्ञ के बराबर। युवतियों के सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद माँ-बाप को पता नही कितने पापर बेलने पड़ते हैं। नाकों चने चबाने पड़ते हैं। यह तो कानी ही थी। एक दूसरी कहावत भी है, "कानी की शादी मे इकहत्तर वाधा !"
बेचारी की डोली कैसे उठे। माँ-बाप रिश्तेदार सभी लगभग निराश हो चुके थे। लेकिन पंडित घरजोरे ने दूर तराई के गाँव में एक लड़का ढूंढ ही निकला। सगुण टीका हुआ। फिर निभरोस माँ बाप के द्वार पर बारात भी आई। लड़की के भाइयों ने पालकी से उतार कर दुल्हे को काँधे पर बिठा कर मंडप मे लाया। मंत्राचार, विधि-व्यवहार के बीच सिन्दूर-दान हुआ फिर बारी आई फेरों की। तभी पंडिताइन ने गीत की तान छेड़ी, "जग जीत लियो रे मोरी कानी...." लोग हक्का बक्का लेकिन बारात में आए चतुरी हजाम को बात भाँपते देर न लगी। उसने तुरत पंडिताइन के सुर में सुर मिलाया। पंडिताइन आलाप रही थी, "जग जीत लियो रे मोरी कानी !" अगली पंक्ति चतुरी हजाम ने जोड़ी, "वर ठाढ़ होए तो जानी !" अर्थात कन्या कानी है तो पंगु वर जब खड़ा होगा तब सच्चाई पता लगेगी न !!
क्या खूब जोरी मिलाई पंडित घरजोरे ने। कन्या कानी तो वर लंगड़ा। तभी से कहाबत बनी, "जग जीत लियो रे मोरी कानी ! वर ठाढ़ होए तो जानी !!" ये कहावत पंडिताइन सरीखे उन लोगों पे लागू होती है जो हमेशा अपना ही पलड़ा भारी समझते हैं। लेकिन जब उनके नहले पर दहला पड़ता है तब बरबस याद आ जाता है, "जग जीत लियो रे मोरी कानी! वर ठाढ़ होए तो जानी !!"
बहुत ही बढिया प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंbadhiyaa hai....
जवाब देंहटाएंnice rading. thanx for bring out the hidden pearls.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुंदर लिखा है ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई! मेरी नई कविता पढियेगा -
जवाब देंहटाएंhttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
110 percent sachai hai apke is story mai..U r really a gr8 writer..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है। इस जानकारी के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंnice story
जवाब देंहटाएंकहावतें कहने का अंदाज निराला है।
जवाब देंहटाएंbhai Sab, inni kahaawate aur stories kahaan se dhundh ke laate ho aap ? badhia hai. keep the good work up.
जवाब देंहटाएंb'ful
जवाब देंहटाएंsahee kahaawat hai. aur kahaani ke liye dhanyawaad
जवाब देंहटाएंwhat a way of presentation.
जवाब देंहटाएंकहावतों का एक अलग साहित्यिक महत्व है। उन्हें लोक कथाओं के साथ पिरो कर प्रस्तुत करने की आपकी शैली अनूठी है।
जवाब देंहटाएंआपने भी मोह लिया महोदय.
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अंतिम पढ़ाव पर- हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
gracious
जवाब देंहटाएंकई बार मन मे आता है कि किसी कहावत के पीछे कहानी कया है, कैसे बनी मगर पता नही चलता बहुत अच्छा लगा इस कहवत की कहानी जान कर धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंWah!!Kya khub likha hai aapne....Bohot achi lagi aapki yeh rachna....Desil bayna ki agli kari ka intajaar rahega.
जवाब देंहटाएंawesome
जवाब देंहटाएंIt's very nice to reach out the roots of the proverbs which really has the ultimate expressions.
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