कवि कोकिल विद्यापति के लेखिनी की बानगी, "देसिल बयना सब जन मिट्ठा !" दोस्तों हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं। ऐसी ही हैं, हमारी लोकोक्तियाँ और लोक-कथाएं। इन में माटी की सोंधी महक तो है ही, अप्रतीम साहित्यिक व्यंजना भी है। जिस भाव की अभिव्यक्ति आप सघन प्रयास से भी नही कर पाते हैं उन्हें स्थान-विशेष की लोकभाषा की कहावतें सहज ही प्रकट कर देती है। लेकिन पीढी-दर-पीढी अपने संस्कारों से दुराव की महामारी शनैः शनैः इस अमूल्य विरासत को लील रही है। गंगा-यमुनी धारा में विलीन हो रहे इस महान सांस्कृतिक धरोहर के कुछ अंश चुन कर आपकी नजर कर रहा हूँ। प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी !!- करण समस्तीपुरी
आइये, आज मैं आपको लिए चलता हूँ वृंदा-वन ! ये कहानी है, राधा-कृष्ण और व्रज-वनिताओं की। कृष्ण तो अपनी मधुर रास लीला के लिए प्रसिद्ध हैं ही ! गोकुल के ग्वाल बाल और बालाओं को कृष्ण से बहुत प्यार था। कृष्ण भी इन के साथ गोकुल की गलियों में खूब धूम मचाते थे। हाँ तो मैं कह रहा था कि इधर श्री कृष्ण अपने बाल सखाओं सहित गो चारण को जाते थे, उधर से व्रज बालाएं पानी भरने या दही बेचने के बहाने चल पड़ती थीं यमुना तट। फिर कालिंदी के कूल कदम्ब के डारन और हरे भरे वृन्दावन में शुरू होती थी गोपी-किशन की अलौकिक रास लीला। गोपियाँ कृष्ण- प्रेम की बावली थी। और राधा तो सबसे ज्यादा। कृष्ण भी राधा से उतना ही प्यार करते थे। पीताम्बर धारी सांवरे जैसे ही अपने अरुण अधर से हरित बांस की बांसुरी लगाते थे तो "इन्द्रधनुष दुति" हो जाती थी। इतना प्रकाश होता था मानो नौ मन घी के दिए जल रहे हों। फिर क्या मुरली की मनोहर धुन एवं दिव्य प्रकाश में गोपियाँ सुध-बुध बिसरा कर नाचने लगती थी। किंतु एक दिन ऐसा आ ही गया, जब कृष्ण को अपने जन्म का हेतु पूरा करने जाना पड़ा मथुरा.... !! गोकुल की गलियाँ सूनी। वृन्दावन में पतझर। यमुना का जल उष्ण। मनुष्य तो मनुष्य गायें भी बेहाल। अतिमलीन वृषभानु कुमारी राधा तो आधा भी नही रही। चन्द्रवदनी का हँसना बोलना सब बंद। सब तो सामान्य हुए या होने की कोशिश करते रहे। लेकिन राधा बेचारी क्या करे? सबो ने समझाया लेकिन राधा नाचे कैसे... ? उसमे तो नृत्य की ऊर्जा आती है श्री कृष्ण के वेनुवादन से निःसृत प्रकाश से। अन्यथा उतने प्रकाश के लिए नौ मन घी के दिए जलाने पड़ेंगे। इसीलिये लोग कहने लगे “न राधा को नौ मन घी होगा, न राधा नाचेगी ” !!! कालांतर में उक्ति किसी कार्य के लिए अपर्याप्त सामर्थ्य या संसाधनहीनता के लिए रूढ़ हो गयी।मैं भी सोच रहा था किताब निकाल कर ही आप को ये बात बताऊँ। लेकिन फिर सोचा कि "न राधा को नौ मन घी होगा न राधा नाचेगी।" सो ब्लॉग पर ही ले कर आ गया॥
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
देसिल बयना - 1 : 'न राधा को नौ मन घी होगा... !'
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अच्छे शब्दों में तथ्यपरक जानकारी। अगले दसी बयना की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंradha-krishna ko lekar achchhi prastuti hai ,aapko dpawali ki shubhkaamnaaye .
जवाब देंहटाएंmanbhavan.narayan narayan
जवाब देंहटाएंachchha laga
जवाब देंहटाएंपढकर सुकून मिला, दीपावली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंचिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
जवाब देंहटाएंलेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
व सपरिवार दिवाली की शुभकामनाएं.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
WiSh U VeRY HaPpY DiPaWaLi.......
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