बुधवार, 18 मई 2011

देसिल बयना-८१–दहिए न खैतई, मटकूरी नई न ल जेतई

clip_image001

झिंगूर दास 189मनोज कुमार

हा...हा..हा... ! हा...हा..हा... ! हा...हा..हा... !

ई मत पूछिए हम काहे हंस रहे हैं। हंसने का ऐसन कोनो बात नहीं है। हंसी त हमको उस दिन लगा था जब करण बाबू बोले थे कि हम देसिल बयना का कनटिनूटी बनाए रखेंगे। हम कहे थे उनको कि आप कर रहे हैं बियाह, आपको फ़ुरसत मिलेगा का।

त बबुआ बोलिन्ह कि इसमे का है, दस मिनट का काम है कर दिया करेंगे। और पिछलका बुध को त ऊ भेजिए दिए थे बनाके।

लेकिन आज के बारे में जब हम उनसे बोले कि उस दिन त आप उ का कहते हैं ‘मध और चांद’ (हनी-मून) मना रहे होंगे, त दरजिलिंग से कैसे भेज पाइएगा?

हमसे बोले रहे कि ‘उसमें का है, भेज देंगे। कोनो समय लगता है।’

त हमरी हंसी जो उस दिन निकली सो आज तक निकलिए रही है। अरे ई सब एक्सपीरिएंस का बात है। उ बचबा का जाने कि बियाह के बाद केतना सारा कमिटमेंट ऐसहिं फेल होते रहेगा।

वैसे पछिलका हफ़्ता जब उ आई-माई को ठोप नहीं बिलाई को भरमंगा लगा रहे थे त लिखिए दिए थे कि “चलते हैं अगले हफ़्ते फेर भेंटायेंगे उनका (clip_image002!) औडर होगा तो।”

अब भगवान जाने करण बाबू की ‘उनका’ क्या औडर हुआ है?

हमको तो उ दिन इयाद आता है जब हमको उनका माता जी का औडर हुआ था। हमरी बरकी भौजी हैं। उनका त अधिकारे बनता है, जो चाहें सो औडर दे दें। अब उनका बेटा का बियाह है, त उ त तर ऊप्पर कर रही थीं। बरियाती निकलने का समय हो रहा था। और ऊ परेसान थी। हमको बोली,

“ऐ बौउआ! सुनते हैं, जुलुम हो रहा है। सुरुज माथा पर चढ़े जा रहा है। बरियाती सब के जाने का समय हो गया है। इहां ई हाल है कि न कढीए हुआ न बड़ीए ... अब आज के महमान को भोग का लगेगा?”

हमहुं तनी चुटकी लेने के ही मूड में थे। बोले,

“अरे.... अरे ! आप तो भौजी खा-म-खा डर गए। आप को बरियाती के लिए भोजने चाहिए न। घबराइए मत। सब इंतिजाम हो जाएगा। लेकिन ज़रा सा वेट करना पड़ेगा। उ का है कि आप तो बुझते ही है। गाँव की बात है। गाँव मे देर सबेर त होते ही रहता है न।”

साहिब ई है हमरा गाँव रेवा-खंड। अब तो भैय्या न उ देवी रही न उ कराह। पहिले ई का बातहि कुछ और था। अरे मोगल आया रहा, अँगरेज़ आया रहा और फिर जमींदारी राज रहा ई गाँव में। ई देखे हो गौरी पोखर के भीर पर बड़का कोठी.... मोगलिया तहसीलदार बनाए रहा। फेर अँगरेज़ कब्ज़ा कर लिहिस। अब खादी भण्डार होय गया। सब कुछ केतना बदल गया है। नहीं बदला है तो कोठी के पिछुअवारे हमरे लोगों का टोला। आज भी लोग वही सादगी में जीते हैं। पहिले का तो बाते मत पूछिये। सब काम अंग्रेज़ के हुकूम की तामिल का माफ़िक जस्ट इन टाइम होता रहा।

आज ….! छोड़िए पुअरनका खिस्सा। आज  त आज का बात करें। आज इस घर से बेटा का बियाह हो रहा है। इ जेनेरेसन का पहिला बरियाती जाने बाला है। से सबके खुसी का ठिकाना नहीं है। आ..हा...हा... ! दाथ बाली भौजी, अरे वही करण की मां, हमरे घर की बरकी बहू हैं और करण बाबू बरका बेटा। भौजी त हंस-हंस के पुरे टोला में हकार दे आई थी। भगजोगनी की माय और लोहागिर वाली उका लम्बा चौरा अंगना को गोबर से लिप कर चम-चम कर दी थी । मुंसी भैया, करण के बाबू, अपनी कलाकारी दीवाल पर दिखा रहे थे। ऊंह ! भखरा चून्ना से रंगे भित्ति पर गेरू से का ऐन्टिंग-पेंटिंग किये हैं ! 'देख परोसन जल मरे !!'

बराती का भोज के लिए झींगुर दास केला का पत्ता काट कर गत्ता लगा रहा है। रूदल और मुनीमा दुन्नु पानी का ड्राम भरे में लगा है। घर के बचबा सब के साथ हमलोग भी बड़का टोकना में पक रहे नयका अरवा चावल के गमके से इधर-उधर चौकरी भर रहे थे।

आज करण बाबू का बरियात निकलेगा इ अंगना से। नेना-भुटका सब त गीत गा-गा के खेला कर रहा है दालान में। ‘कक्का के बराती जाएंगे, हो s s s कक्का के बराती जाएंगे हो s s s ..।’

ऊहे खुसी में दाथ बाली भौजी इधर उधर दौर मचा रही हैं। जो बराती जाएगा सो तो जाएगा, जो है सो नायकी कनिया आएगी घर में उहे ख़ुसी में दाथ बाली भौजी ने पुरे टोला में न्योता दिया था, बराती के साथ सब कोई खाएगा, कोनो लोग बाकी न बचने पाए।

झिंगूर दास 276इधर करण बाबू के मोर चढाई का बिध हो रहा था और उधर बटिया तो पीरा धोती के उप्पर कोठारी गंजी आ हाथ में एच.एम.टी का घड़ी पहिने फुचाई झा के साथे भोज बनाए मे लगा हुआ था।

तबहि हम बिशनपुर वाली भौजी से पूछे, 'अरे भौजी सुने कि आज बेटा के बरियात निकलने का खुसी में दाथ बाली रसोई पकायेगी फिर फुचाई झा काहे लगे हैं ?'

छूटते ही बिशनपुर वाली भौजी बोली, "भाग दाढ़ीजरबा ! टोला को न्योतना कौनो हंसी मजाक है का...! अरे पंडिज्जी सब बना देते हैं। कनिया के देह थक गया है दौर-भाग करते। उ ई सब का करेगी? उ केवल 'कढ़ी-बड़ी' बनाने में छोटकी दुलहिन का मदद कर देगी।' हम भी मने-मन कढ़ी-बड़ी का स्वाद लिए लगे।

रह रह के नजर खिड़की के पिछु चला जाता था। तभी छन-छन-खान-खान की आवाज हुई। देखे तो ललका साड़ी के अन्दर से अलता से रंग हुआ हाथ पतीला में तेजी से घूम रहा था। ओहो! तो छोटकी चुलहिन और दाथ बाली भौजी लगा रही हैं कढ़ी-बड़ी का जोगार... ! बड़ी मुश्किल से मुंह का पानी रोके। दाथ बाली भौजी ताली बजा कर बिशनपुर वाली भौजी को बुलाई और दोनों में कुछ बाते हुई। फेर पतीला में एक लोटा पानी गिरा। ले बलैय्या के.... अब तक बतीसी दिखा रही बिशनपुर वाली भौजी की त्योरियां चढ़ गयी। उ तो दाथ बाली भौजी मोर्चा संभाल ली और कहा, 'पानी पड़ ही गया तो का हुआ दीदी ? छोटकी दुल्हिन समझदार है। कह रही है, बड़ी न सही कढ़ी तो बन जाएगा न!' तब जा के बिशनपुर वाली भौजी की त्योरी ढीली पड़ीं।

लेकिन पांचे मिनट में फेर बिशुनपुर बाली भौजी की आवाज़ आयी, "जा री दुल्हिन ! ई का कर दी ! ई तो एकदम लट्ठा होय गया... हलुआ... ! अब लो... अब का होगा...?

तब तक बरकी भौजी भी दौड़ी आ गयी। माजरा समझते उन्हें देर न लगी। बोली, "जाओ री दुल्हिन! हो गया सत्यानाश ! ई तो न 'कढ़ीए हुआ न बड़ीए !' जल्दी से इसमें दही फेंटो !!''

अब दही का मटकुरी खोजाने लगा। त उ मिलिए नहीं रहा था। तभिए गनेरुआ बोला

‘‘की खोजते हैं। ….. दही? उ त बरका पाहुन ले कर बैठे हैं। आप लोग भोज भात में देरी कर रहे हैं। उ हैं चिन्नी के पेसेंट। उनको भूख बरदास्त नहीं होता है। सो दही लेकर बैठ गए हैं चूरा के साथ खाने।”

अब त सबका माथा ठनका। बरकी भौजी बोली, ‘अब का होगा।’

बिशुनपुर बाली भौजी बोली, “हई ... होगा की, दहिए न खैतई, मटकूरी नई न ल जेतई’ फिर इधर देखी फिर उधर ! उठाया मटकुरी और उसमें पानी डाल कर जोर से हिला कर उसे कराही में उड़ेल दी!!

अब तक तो अन्दर ही चख-चुख चल रहा था। अब बाहर भी भोज के बदले दूसरा ही तमाशा शुरू हो गया। मुंशी भैया भी खिसिया के बोले,

"कहती थी सब गुण के आगर है। मिनट में खाना बनाती है। हुंह... इन लोग से तो न भोजे बनेगा न भात ! दही आएगा कहां से सब त इ पहुना खा गया। "

उनका बात सुन कर बरकी भौजी बोली, “धीरज धरिए। दहिए न खैलकई, मटकूरी नई न ल गेलई”

हम लोग भी लगे यही बात दोहराने। दहिए न खैतई, मटकूरी नई न ल जेतई"

बाद में ई कहावत प्रचलित ही हो गया। मतलब

कोई तात्कालिक व्यवधान ही तो आया है, कोई हमारी किस्मत थोड़े ही ले जाएगा, हमारा हुनर थोड़े ही ले जाएगा। धीरज रखने से सब काम ठीक से हो जाएगा। लोग बात करें बड़ी-बड़ी और काम हो कुछ नहीं और कुछ हो भी तो गड़बड़ ही गड़बड़, पर समझदारी और धीरज से सब ठीक हो जाता है !!

तब सब के मुंह पर यही कहावत आती है। समझे! आप भी कभी ऐसा ही कहियेगा कि " दहिए न खैतई, मटकूरी नई न ल जेतई

बियाह का खिस्सा फिर कभी। तब तक नव वर-वधू को आशीष!झिंगूर दास 308

16 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट ने तो दूसरी दुनिया में ही पहुंचा दिया...वो लाल-पीली साड़ियाँ....जेवर पहने ...मंगल-गीत गाती औरतें....पत्तल पर भोज...पूरा शादी का वातावरण साकार हो गया, आँखों के सामने.

    करण जी को बहुत बहुत बधाई...और असीम शुभकामनाएं

    करण जी की तस्वीर बहुत ही बढ़िया लग रही है. उनकी काज़ल भरी आँखें....शरमाई दुल्हन पर से हट ही नहीं रहीं....चश्मेबद्दूर :)

    जवाब देंहटाएं
  2. maonj baaboo,
    badhaai.. baat aise banee kee mool rachnaa par haath aajmaane ke liye.. purankaa saadi biyaah ka mahaul najar ke saamne se gujar gayaa. karan baaboo kaa kamee bhee khatak rahaa hai.. magar ego puraanaa desil baynaa hai ki BHAIL BIYAAH MOR, KARBA KAA.. ab to desil baynaa sambhaariye aap!!

    जवाब देंहटाएं
  3. are haan!
    dulhin kaa ghunghataa aur jhukaa huaa najar dekhkar ekdam siyaa sukumaari ka tulna iyaad pad gayaa.. bhagwaan saubhaagy banaaye rakhe.. jugal jodee banaa rahe.. desil baynaa bhulaayel rahe..
    hamlog kaa aashish!!

    जवाब देंहटाएं
  4. "त हमरी हंसी जो उस दिन निकली सो आज तक निकलिए रही है"
    हंसी तो हमारी भी बंद नहीं हो रही :)
    एकदम वहीँ, उसी जगह, उसी अवसर पर जैसे ले जाकर बैठा दिया आपने. बहुत ही बातें भी जान गए और बहुत ही काम की कहावत भी.
    करण को बहुत बहुत बधाई और दूल्हा दुल्हन को ढेर सारी शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  5. हमको तो अपना बियाह याद आ गया...करन को बहुत बहुत शुभकामना... आज लगा कि देसिल बयना की भाषा की परंपरा करन को आप से ही मिली है..... करन के विवाह में शामिल नहीं हो पाने का अफ़सोस जीवन भर रहेगा ...

    जवाब देंहटाएं
  6. हा...हा..हा... ! हा...हा..हा... ! ई मत पूछिए हम काहे हंस रहे हैं।

    अब बता ही देते हैं ...

    अरे ई सब एक्सपीरिएंस का बात है। उ बचबा का जाने कि बियाह के बाद केतना सारा कमिटमेंट ऐसहिं फेल होते रहेगा। यही तो अनुभव की बात है ...

    कहावत बहुत बढ़िया लगी ...

    करण और दुल्हिन को बधाई और शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  7. करन की शादी से जुड़ कर देसिल बयना और भी जीवंत हो गया !
    करन और उनकी अर्धांगिनी को शादी की ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनाएँ !

    जवाब देंहटाएं
  8. करण जी की अनुपस्थितित में भी देसिल बयना की नियमितता बने देकर अच्‍छा लगा .. नव वर-वधू को आशीष!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आज ओ ज्वान लिख दिये होता तो लगता कि कुछ गड़बड़ है, या इसका पेंच ढ़ीला (नहीं, मिसिंग) है! :)

    जवाब देंहटाएं
  10. हम दोनों की और से एक बार पुनः शुभाशीष!! हमारी मंगलकामनाएं वर-वधु के सुखद वैवाहिक जीवन के लिए!!

    जवाब देंहटाएं
  11. देसिल बयना बहुत बढ़िया लिख गया है। साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  12. अरे करन बाबू को बधाई देना तो भूल ही गए। यदि करन बाबू इस पोस्ट को पढ़ें, तो मेरी ओर से और ब्लाग की पूरी टीम की ओर से नव दम्पती को बहुत-बहुत हार्दिक बधाई और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  13. करण जी को और बहू को ढेरों आशीर्वाद.प्रस्तुति अच्छी लगी.

    जवाब देंहटाएं
  14. करण जी की अनुपस्थिति में भी देसिल बयना की सोंधी खुशबू और सरसता बरकरार रही है। इसके लिए मनोज जी को आभार। करण जी के विवाह से कथानक को जोड़कर आपने इसके करण से अभिन्न होने का एक और प्रमाण प्रस्तुत किया है।

    करण जी को विवाह की बहुत बहुत बधाई तथा बहू जी सहित करण जी को अनन्त शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  15. देसिल बयना में एक सोंधी गंध आती है...जिसे मनोज जी ने बनाये रक्खा है...नवदम्पति को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।