नदिया डूबी जाए |
-आचार्य परशुराम राय
किस अचेतन की तली से
चेतना ने बाँग दी
कि
काल का घेरा कहीं से
टूटने को आ गया है।
विद्रोह करती वेदना,
आदिम इच्छा के
मात्र एक फल चख लेने की
काट रही सजा,
सृजन के कारागार से
अब बाहर निकल कर आ गई है।
मुक्त शीतल मन्द पवन
जब भी करवट बदलेगा
महाप्रलय की बेला में
हिमालय की गोद भी
शरण देने से तुम्हें कतराएगी।
मेरे तो सौभाग्य और दुर्भाग्य की
सारी रेखाएं कट गई,
संस्कारों का विकट वन
जलाने से निकले
श्रम सीकर
अभी तक सूखे नहीं।
बन्धन मेरी सीमा नहीं,
मात्र बस ठहराव था।
तो मोहवश नहीं
करुणा की धारवश।
जीवन की धार देख
नाव नदी में नहीं
नदी नाव में डूबने को है!
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जीवन की धार देख
जवाब देंहटाएंनाव नदी में नहीं
नदी नाव में डूबने को है!
बेहतरीन भाव
जीवन की धार देख
जवाब देंहटाएंनाव नदी में नहीं
नदी नाव में डूबने को है!
kya gazab ka khayal hai!
जीवन की धार देख
जवाब देंहटाएंनाव नदी में नहीं
नदी नाव में डूबने को है!
अति सुंदर - आभार
sunder abhivykti.
जवाब देंहटाएंsunder abhivykti.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरा व्यंग्य! जो अपने से बड़ों का अपमान करते उनकी नदी नाव में डूबेगी ही।
जवाब देंहटाएंजीवन की धार देख
जवाब देंहटाएंनाव नदी में नहीं
नदी नाव में डूबने को है!
विपरीत लिख कर एक अच्छा व्यंग किया है....बहुत उम्दा प्रस्तुति
bahut khoob likha...
जवाब देंहटाएंआधुनिक विकास के द्वन्द्व एवं पाखण्ड को उजागर करता है।
जवाब देंहटाएंविद्रोह से भरी हुई आवाज को बुलन्द करती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर धारदार रचना शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता और सुंदर चित्र..वाह!
जवाब देंहटाएंकविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता पढ़कर मैं तो दूसरी दुनिया में पहुंच गया।
नियति को देती चुनौती
जवाब देंहटाएंविद्रोह करती वेदना,
आदिम इच्छा के
मात्र एक फल चख लेने की
काट रही सजा,
सत्यम् ! शिवम् !! सुंदरम् !!! काव्य का आदि कारण -- वेदना.... ! आदिम इच्छा के एक फल..... सांसारिक लालसा का प्रतीक........ फलस्वरूप मिथ्या मोहपास मे आबद्ध.... विपरीत वारि में नैय्या में नदिया न डूबे तो क्या हो.... ? बरबस कबीर याद आ गए !!!
सत्यम् ! शिवम् !! सुंदरम् !
जवाब देंहटाएंसबको लील लेने की क्षमता को प्रकाशित करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अति महत्वाकांक्षा की नियति यही होती है।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता ... कल्पना शक्ति को दिशा देती है ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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