नमस्कार मित्रों !
पिछले सप्ताह हम ने सत्येन्द्र झा जी की एक लघु-कथा "कुत्ते की मौत" प्रकाशित की थी और आपने उसे सर-आँखों पर बिठाया था। आपके स्नेह से अभिभूत हमने झाजी से उनकी कथाओं के नियमति प्रकाशन की आज्ञा प्राप्त कर ली है। सत्येन्द्र झा उदीयमान मैथिली साहित्यकार हैं। उनकी एक मैथिली लघु-कथा संग्रह "अहीं के कहै छी..." (आप ही को कहते हैं...) प्रकाशित हो चुकी है। आप चाहें तो लेखक तक अपनी प्रतिक्रिया +91 9835684869 पर पहुंचा सकते हैं। अब लीजिये उनकी एक और लघु-कथा का आनंद।
जल्लाद
-- सत्येन्द्र झा
दिन भर ऑफिस में मगजमारी कर मि. शर्मा शाम को अपने घर लौटे। आते ही अपने पांच साल के बेटे चिंटू को कलेजे से लगा लिया। चिंटू पापा के साथ प्यार से खेलने लगा। मि. शर्मा ने बेटे के गालों को अपने हाथों में लेकर थपथपाया।
चिंटू बोला, "पापा ! आज से मैं आपको जल्लाद कहूँगा।"
मि. शर्मा बोले, "नहीं बेटा ! जल्लाद नहीं बोलते.... गन्दी बात होती है।"
चिंटू थोड़ा इतरा कर बोला, "नहीं पापा... ! जल्लाद गन्दी बात नहीं होती है। मैं आप को आज से जल्लाद ही बोलूँगा।"
मि. शर्मा ने थोड़ा चिढ कर कहा, "जल्लाद का मतलब पता है आपको....?"
चिंटू ने भोलेपन के साथ जवाब दिया, "हाँ ! वो टीवी पर दिखा रहे थे न.... ! 'जल्लाद बेटे ने बाप को घर से निकाला...... !' आप ने भी तो दादा जी को...... !!!"
मि. शर्मा के पास अब कोई जवाब नहीं था।
(मूल कृति "अहीं के कहै छी..." में संकलित "जल्लाद" से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित )
मार्मिक!!
जवाब देंहटाएंsahity samaj ka darpan hee to hai..........
जवाब देंहटाएंबढ़िया है।
जवाब देंहटाएंअबोध बच्चे ने पिता के सिर पर मारा ग्यान का हथौडा.मनोजजी,इतनी अच्छी कहानिओं की शृंखला शुरू करने के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएं... अदभुत !!!
जवाब देंहटाएंhmm...gud one..
जवाब देंहटाएंKathore aur Kadwi Sachai :(
जवाब देंहटाएंक्ठोर किन्तु निर्मम सत्य!
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी कहानिओं की शृंखला शुरू करने के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंप्रेरक लघुकथा.....बच्चे सच ही मन के सच्चे होते हैं.....आईना दिखा देते हैं कभी कभी बड़ों को....
जवाब देंहटाएंप्रेरक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंऐसे बेटे सब घर में हों!
जवाब देंहटाएंउम्दा कहानी।
जवाब देंहटाएंएक आंख खोलने वाली लघुकथा।
जवाब देंहटाएं,,,,,,निर्मम सत्य!
जवाब देंहटाएंवाह! अब बच्चे ही ठीक करेंगे बाप को.
जवाब देंहटाएंवाह ... लघू पर उत्कृष्ट .... सन्न हूँ ..... कितना कुछ कहती है यह कहानी ...
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