-- करण समस्तीपुरी
रे भैय्या,
आल इज वेल........ !
उधर है न आल इज वेल.... ? इधर तो कुच्छो वेल नहीं है। समझो कि दरोगा जी, चोरी हो गयी। घोर-कलियुग आ गया है। सतयुग में तो सब ठीके-ठाक चल रहा था। त्रेता में रावण रामजी की लुगाई चुरा ले गया.... । द्वापर में तो भगवान अपने माखन-मिसरी चुराते रहे... ! मक्खन-मिसरी तक बात रहती तो चलो ठीक था.... एक बेर तो गोपियन सब गयी नहाए यमुना में इधर उ घाट पर से सब का कपड़े-लत्ता चुरा लिए। भगवान हो के ऐसन काम किये कि चोरी का प्रथा ही चल पड़ा।
खीरा चोरी से लेकर हीरा चोरी तक होने लगा। सेंध-फोरी का ज़माना गया तो राहजनी शुरू होय गया। धन-संपत्ति के चोरी का तो कोई मायने नहीं था... असल मुश्किल तो तब होने लगा जब इलिम का भी चोरी होने लगा। शुरू में लोग कहते रहे कि "बबुआ ! जी लगा के पढो... ! धन-दौलत कोई चुरा सकता है.... विद्या कोई नहीं चुरा सकता।" लेकिन कलियुग के चौथा चरण में तो सब कुछ अजगुते (अद्भुत) होने लगा। ई फिलिम वाला सब ई में और आगे रहा।
पहिले सुनते रहे कि फिलिम का नाम चुरा लिया। फिर सुने कहानिये चुरा लिहिस। फिर सुने की गीत चुरा लिया। गीत तक तो बात समझ में आये........ लेकिन बाद में तो इहाँ तक हल्ला होता रहा कि गीत का धुन भी चुरा लिया। एगो सनीमा में राजकुमार हीरो रहे तो कहिये दिए रहे, "जानी ! हम वो हैं जो आँखों से सुरमा चुरा लेते हैं... !" ऐ सब मार कराकर के थपरी (ताली) पीट के कहिस, "का डायलोग है...?" लेकिन फिर पता चला कि ई फिलिम वाले सच्चे में शातिर निकले। अब बताओ गीत में से धुन चुरा लिए तो महबूबा के आँखों से सुरमा चुराना कौन सा भारी बात है।
फिर ई सब चोरी पर रोक लगाए खातिर आया कॉपीराईट। अब गीत लिखे से पहिलेही मुखरा लिख के सब कॉपीराईट कराये लगा। हम भी सोचे रहे कि ई कहानी आप लोगों को सुनाये से पहिले कॉपीराईट करवा लेंगे.... नहीं तो का जाने किस वेश में बाबा मिल जाए भगवान....... !! आपही में से कोई.... ??? लेकिन उ नौबते नहीं आया.... !! ससुर सब का कहानी चोरी होता है..., हमरा आइडिये चोरी होय गया। उहो मुँह पर लाये भी नहीं दिमागे से.... उड़ा ले गए। अब आपको अचरज लगता होगा कि दिमाग से आइडिया कैसे चोरी हो जाएगा... ! अरे भैय्या जब उ लोग आँखों से सुरमा चुरा सकते हैं तो दिमाग से आईडिया चुराना कौन सा मुश्किल काम है ?
लेकिन एक बात है... ! हमरा आइडिया से 'थ्री इडिअट' सुपर हिट होय गया तो हम भी मन मसोस कर बोले, 'आल इज वेल... !' फिलिम में एगो दिरिस आया रहा जब बाबा रणछोड़ दास बना आमिर खान अपना चेला चपाटी को 'आल इज वेल' का किस्सा सुना रहा था। जैसे ही उका किस्सा समाप्त हुआ कि हम हौले में कह दिए, "मार ससुरा के....... ई तो हमरे आइडिया है।"
किस्सा भूल गए हैं तो फिर से सुन लीजिये। रैंचो फरहान मियाँ और रस्तोगी जी को कह रहा था कि उके गाँव में एगो चौकीदार था। उ हार रात निकले पहरा देने। चौकीदार गला खंगाल के जोर से बोले, 'आल इज वेल.... !' तो सारे गाँव वाले चैन की नींद सो जाएँ। एक दिन लोग भोरे-भोर उठे तो पता लगा कि ले तोरी के.... राते तो कितना घर में सेंधमारी हो गया। "अहि.... कहाँ गया चौकीदार... पकड़ो उसको ... ! बुलाओ पंचायत में... कामचोर ! यही से पहरा देता है ?"
आनन-फानन में चौकीदार को पकड़ के चौपाल पर हाज़िर किया गया। उ का पूछ-ताछ हुआ तो पता चला कि ले रे बलैय्या..... ! ई चौकीदार तो अंधा है। अंधा चौकीदार इधर करता रहा, 'आल इज वेल....' और उधर 'सब कुछ गेल (गया).... !' हालांकि फिलिम में कहानी बढाए खातिर और कुछ-कुछ बात जोड़ दिहिस है मगर हमरा 'धांसू' आइडिया यहीं तक था।
'भैय्या... अंधे चौकीदार को पहरे पर लगाया तो का होगा.... ? उ कहावात नहीं सुने हैं, "क्या अंधा के जागे...! क्या अंधा के सोये... !!" बेचारा रात भर जाग के 'आल इज वेल...!' करता रहा उधर चोर अपना पिकनिक मना के चले गए। आँख वाला चौकीदार होता तो कुछ चोर पकड़ाने का कुछ उम्मीदो रहता.... ! लेकिन आँख वाला सब तो सोये थे.... जगा था तो अँधा... उस से क्या फर्क पड़ा ? चोरी तो हो ही गयी... !!
तो इसीलिए हमरे गाँव-घर में कहते हैं 'क्या अँधा के जागे और क्या अंधा के सोये... !!" यही था आज का देसिल बयना.... ! मतलब "किसी कार्य में अक्षम या अयोग्य संसाधन को लगाने से कुछ लाभ नहीं होता... !" अब आप टिपण्णी कर के बताइयेगा कि कैसा लगा थ्री इडिअट वाला हमरा ओरिजनल इडिओटिक आइडिया.... !!
गज्जब कर दिए हुजूर!
जवाब देंहटाएंMAST EKDUM......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, लाजबाब !
जवाब देंहटाएंएकदम ओरिजिनल ...
जवाब देंहटाएंबहुत गज़ब का आईडिया रहा....बढ़िया
जवाब देंहटाएंबढियां लगा ई ईडियोतिक (?) आइडिया !
जवाब देंहटाएंफ़िल्मी दुनिया से लेकर गाँव तक की झलक !
अच्छा लगा ! आभार !
हमेशा की तरह बढिआ.
जवाब देंहटाएंReally nice and all is well.
जवाब देंहटाएंइस अंधे चोकी दार को ्किस अकल के अंधे ने रखा था जी.... चलो दफ़ा करो अब तो चोरी हो गई...लेकिन लेखवा बहुत मजेदार लगा जी
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंkaa guru kaa haal baa ,bhosree ke toseto theek- e hi hai .ee bolee bhaai ilaahaabaad ki haie re .
जवाब देंहटाएंsundar prastuti
verubhaai 1947.blogspot.com
अद्भुत प्रस्तुति करण जी।
जवाब देंहटाएंखूबही मजेदार रहा ई देसल बयना.. आल इज वेल भैया.. :)
जवाब देंहटाएंaapkka har lekh hamesha ki tarah bahut hi badhiya . sunadar prastuti.
जवाब देंहटाएंpoonam
बहुत सटीक!! वाह!
जवाब देंहटाएंएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
आँख वाला सब तो सोये थे.... जगा था तो अँधा... तब जो पहरा दे रहा था उस से क्या फर्क पड़ेगा ? चोरी तो होगा ही न !!
जवाब देंहटाएंथ्री इडिअट वाला आपका ओरिजनल इडिओटिक आइडिया.. झकास! फेंटास्टिक!! धांसू!!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
करण जी, आपकी प्रस्तुति बहुत ही बढ़िया है. सटीक. इस कालम के लिए यही शब्द अधिक उपयुक्त हें- आल इज वेल.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...आल इज वेल !!
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार लगा जी!
जवाब देंहटाएंaji..bahut badhiya :)
जवाब देंहटाएंकरण जी देसिल बयना की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति। छा गए हुज़ूर!
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