आज फिर एक सूफी गीत -- करण समस्तीपुरी
मन का पंछी उड़ना चाहे,
लेकिन उड़ ना पाये !
हाय !
किसको दर्द सुनाये !!
कतरे गए पंख कोमल और
आँखें हैं धुंधलाई !
धुंधली आंखो में सतरंगी,
सपने बहुत छुपाये !!
हाय !
किसको दर्द सुनाये !!
कहाँ बसेरा, कहाँ ठिकाना,
किस पथ से किस नभ को जाना !!
काल जाल लेकर बैठा है,
खग का पग थर्राए !
हाय !
किसको दर्द सुनाये !!
अत्यंत सुन्दर रचना है !
जवाब देंहटाएंsunder rachana....
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti...
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति .आपका आभार.
जवाब देंहटाएंअन्तर भाव को व्यक्त करती रचना अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंहाय !किसको दर्द सुनाये !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
उत्तम भाव।
जवाब देंहटाएंजिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है।
कहाँ बसेरा, कहाँ ठिकाना,
जवाब देंहटाएंकिस पथ से किस नभ को जाना !!
काल जाल लेकर बैठा है,
खग का पग थर्राए
अंतर्द्वंद को समेटे हुए एक अच्छी रचना...
वाह! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएं... सुन्दर रचना!!!
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .....अछे ढंग से पेश की हुई ....पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंमनोज भाई, बहुत गजब का गीत पढ़वाया आपने। यकीन जानिए, दिल पुलकित हो उठा।
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