नयी दुल्हन ससुराल में आते ही पहले टीवी, फिर फ्रीज़, वीसीडी और कूलर की फरमाईस करने लगी। ससुराल की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। सास, ससुर और पति ने यह 'ऐश्वर्य' जुटाने में असमर्थता व्यक्त किया। ये लो... दुल्हन ने तो अनशन ही शुरू कर दिया। अब तो घर में सब का जीना मोहाल हो गया।
ससुर ने बहुत सोच-विचार कर एक रास्ता निकला। दुल्हन के पसंद की सभी वस्तुओं की एक लम्बी सी सूची बनाई और समधीयाने भेज दिया। समधी को आगाह किया कि बधू के द्विरागमन के वक़्त इतना सामान बांकी रह गया था। जल्द से जल्द सारा सामन भेजें वरना दुल्हन को कभी वापस मायके नहीं जाने दूंगा।
दुल्हन को जैसे ही यह बात पता लगी, अनशन समाप्त हो गया। लेकिन तभी से एक आदर्शवादी परिवार दहेज़लोभी परिवार के रूप में गिना जाने लगा।
(मूल कथा "अहींकें कहै छी" में संकलित 'दोसर रूप' से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित)
तस्वीर का यह भी एक रुख है ...!!
जवाब देंहटाएंओह ..ये भी एक रूप है..
जवाब देंहटाएंअक्सर होता है ऐसा जो की बहुत गलत है , कौन समझायें इन्हे ।
जवाब देंहटाएंअक्सर क्या खूब दबा के यही हो रहा है, जब लडकी ब्यानी हो तो बाप समाज सुधारक बन्ने लगता है, और जब उसी के लड़के की शादी हो तो सारी सामाजिकता भूल जाता है ! अफसोसजनक
जवाब देंहटाएंकथा कहाँ ये तो वास्तविकता है....
जवाब देंहटाएंtasveer ka doosra pehlu bhi hai...waah sahi jaankaari di...is par se parda uthna bhi zaruri tha...
जवाब देंहटाएंदहेज़ जैसी संकल्पना के पीछे इस और इतनी बुद्धिमान (?) लडकी
जवाब देंहटाएंका कहानी - नुमा तर्क क्या पर्याप्त लगता है आपको ?
'तभी से एक आदर्शवादी परिवार दहेज़लोभी परिवार के रूप में गिना जाने लगा।'
जवाब देंहटाएं- यह तो होना ही था.
आज का सच !! लेकिन ऎसी दुलहने ओर इस के परिवार बाले हमेशा दुखी ही रहते है, भगवान बचाये ऎसी.........
जवाब देंहटाएंतभी से एक आदर्शवादी परिवार दहेज़लोभी परिवार के रूप में गिना जाने लगा।'
जो हुआ, अच्छा हुआ.दुनिया जो बोले बोलने दो.
जवाब देंहटाएंकहानी अच्छी लगी.कुछ तो सिखाती है.
जवाब देंहटाएंलाघु कथा में विषय को इससे अधिक विस्तार की उम्मिद क्या रखें।
जवाब देंहटाएंवत्स जी से सहमत
कथा कहाँ ये तो वास्तविकता है....
यह तो है कि लड़कियां ससुराल में कुटुम्ब से सामंजस्य बनाने की अनिवार्यता सीख कर नहीं आ रहीं। दहेज लोभ जीवन-मूल्य विकृति है तो यह भी उतनी ही बड़ी विकृति है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही फ़रमाया आपने...... इसी सन्दर्भ में मैं ये कहना चाहती हूँ... क़ि जिस तरह बागबान फिल्म का कथानक है.............. उसका उल्टा भी हो सकता है.............. लेकिन दुनिया .... सिर्फ आदर्शवाद में विश्वास करती है................. .. इससे ज्यादा कहना तो चाहती हूँ पर सोचती हूँ................ ये दुनिया केवल एक लकीर पर चलती है................. कहना बेकार है.......................................
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