फ़ुरसत में ...
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों की सैर
मनोज कुमार
पिछले दिनों नालंदा जाने का मौक़ा मिला। देश का यह गौरव आज ख्डहरों में तबदील हो चुका है। नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी।
मगध की राजधानी राजगृह हुआ करती थी। इसी के पास नालंदा नामक नगर था। पालि ग्रंथों में नालंदा शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है, “नालं ददाति ति नालंदा” अर्थात् जहां कमल नाल पए जाएं वह नालंदा है। एक और व्याख्या है – “न अलं ददाती ति नालंदा” अर्थात् वह जो प्रचुर दे सके।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (15 वीं शताब्दि में) नालंदा आया था। उसके अनुसार उस जमाने में यहां के लोग एक तालाब में “नालंदा” नामक नाग के निवास का होना बताते थे। यही कारण है कि इस नगर का नाम नालंदा पड़ा।
भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्य सारिपुत्र का जन्म नालंदा के पास “नालक” गांव में हुआ था। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने इसी गांव में आकर अपनी मां को धर्मोपदेश दिया और निर्वाण प्राप्त किया। फलस्वरूप वह बौद्ध श्रद्धालुओं और उपासकों के लिए प्रमुख तीर्थ-स्थल हो गया। भगवान बुद्ध के बाद सबसे अधिक पूजा सारिपुत्र की ही होती है। इस महापुरुष का जन्म और निर्वाण एक ही स्थान पर होना श्रद्धा का विषय बना रहा। उनकी याद में इस जगह पर एक चैत्य का निर्माण हुआ।
इस चैत्य के नज़दीक जो भिक्षु विहार बने वे बाद में अध्ययन के केन्द्र हो गए। देश के दूर-दराज के भागों से विद्यार्थी यहां आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। पाल राजाओं ने नालंदा के निर्माण में महत्वपूर्ण निभाई।
आज तो सिर्फ़ वहां खंडहर है। पर इन भग्नावशेषों की दीवालों की 6 से 12 फीट की मोटाई यह साबित करती है कि विहारों की ऊंचाई काफ़ी रहीं होगी। साथ ही भवन भी विशाल रहे होंगे। ऊंचे भवनों तक पहुंचने के लिए चौड़ी और पक्की सीढियों का आवशेष आज भी विद्यमान है।
व्हेनसांग और बाद के दिनों में आए चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार 8 भव्य विहार थे। इन महाविहारों से लगे हुए चैत्य और स्तूपों का निर्माण हुआ था। हीनयान और महायान के लिए 108 मंदिरों का निर्माण हुआ। पूरा विद्यालय एक ऊंचे प्राचीर से घिरा था।
ह्वेनसांग ने ज़िक्र किया है कि इसमें प्रवेश करने के लिए एक विशाल दरवाज़ा था। उसके बाहर खड़े द्वारपाल काफ़ी विद्वान होते थे। जो विद्यार्थी यहां दाखिला लेना चाहते थे उनकी परीक्षा ये द्वारपाल लिया करते थे, और योग्य लोगों को ही चुना जाता था। 10 में से सिर्फ़ एक या दो विद्यार्थी ही विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार के भीतर जा पाते थे!
विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता था। आस-पास के क़रीब 100 गांवों द्वारा इसके खर्च की व्यवस्था की जाती थी। इत्सिंग ने तो 200 गांवों की बात कही है। इस विश्वविद्यालय में उन दिनों 10,000 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। उनको शिक्षित करने के लिए 1500 आचार्य थे। यानी हर सात विद्यार्थी पर एक शिक्षक!
बौद्ध धर्म, दर्शन, कला, इतिहास, आदि के साथ आयुर्वेद, विज्ञान, कला, वेद, हेतु विद्या (Logic) शब्द विद्या (Philology) चिकित्सा विद्या, ज्योतिष, अथर्ववेद तथा साख्य, दण्डनीति, पाणीनीय संस्कृत व्याकरण की शिक्षा की व्यवस्था थी।
तुर्क आक्रमणकारी बख़्तियार ख़लजी ने अपने लूटपाट के अभियान के तहत 1199 में इस विश्वविद्यालय में आग लगा दिया। शिक्षा का यह महान केन्द्र जलकर खाक हो गया।
एक अच्छी खबर है कि एक हजार करोड़ की लागत से विश्वविद्यालय की स्थापना होगी। 2007 में मेंटर ग्रुप का गठन किया गया। इस ग्रुप में प्रख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के नेतृत्व में नामचीन विद्वानों को शामिल किया गया है।
2010 में लोकसभा और राज्यसभा से नालंदा विश्वविद्यालय स्थापना विधेयक पारित किया गया।
राजगीर छबीलपुर मुख्यमार्ग पर राजगीर से 15 किमी दूर करीब 446 एकड़ जमीन पर प्रस्तावित शैक्षिक और अनुसंधान केन्द्र स्थापित होगा।
शुरुआती परिकल्पना में नालंदा में बौद्ध अध्ययन, इतिहास, अंतरराष्ट्रीय संबंध व शांति, बिजनेस-प्रबंधन व विकास, भाषा व साहित्य, पारितंत्र और पर्यावरण विज्ञान संबंधी विद्यापीठ स्थापित करने का फैसला किया गया है।
2012 से इस विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और अकादमिक गतिविधियां शुरु हो जाएगी।
आशा है कि नालंदा का गौरव फिर से स्थापित होगा। नालंदा विश्वविद्यालय के उत्कृष्ट अतीत का गौरव आज की हक़ीक़त में बदलेगा।
बहुत अच्छी जानकारी दी है ...
जवाब देंहटाएंभगवान बुद्ध के पुत्र सारिपुत्र --- यह जानकारी नयी है मेरे लिए ..मुझे तो उनके पुत्र राहुल का ही पता था .
ओह! सॉरी संगीता जी।
जवाब देंहटाएंग़लत टंकण हो गया था। ठीक कर दिया है। आभार आपका।
नालंदा के खंडहरों से गुजरना अतीत की परतों से गुजरने के सामान होता है.... आपने घर की यात्रा करवा दी.. धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंनालंदा के पुनरुद्धार की यह खबर कितनी आश्वस्ति भरी है न !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और विस्तृत जानकारी दी है नालंदा के बारे में। आचार्य चाणक्य ने ही इसे बनवाया था क्या?
जवाब देंहटाएंनालंदा पर दी गयी जानकारी उपयोगी और बहुमूल्य है.
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत अच्छी जानकारी दी और दोबारा स्थापना के बारे मे जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंजल्द ही नालंदा का यह गौरव पुनर्स्थापित हो
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट
खँडहर बता रहे हैं कि ईमारत कभी बुलंद रही होगी.नालंदा की शिक्षा पद्धती से पता चलता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कितनी उत्तम थी जिसे पूरी दुनिया ने अपनाया और हमें कुछ कचरा पकड़ा कर उसे भूल जाने पर विवश किया.अब वक्त आ गया है कि हम पहचाने कि क्या सही है क्या गलत. काश नालंदा जैसे संस्थान फिर अपनी ऊँचें पा सके.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और विस्तृत जानकारी दी है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआप भी पढ़ें बौराया मीडिया, बेईमान कांग्रेस, बेख़ौफ़ बाबा , बाबा जी का साथ दें http://www.bharatyogi.net/2011/06/blog-post_09.html
जवाब देंहटाएंनालंदा विश्व विद्यालय का पुनः अस्तित्व में आना शुभ संकेत है हमारी सभ्यता को पुनर्स्थापित और संरक्षित रखने के क्रम में .
जवाब देंहटाएंअपनी विरासत पर गर्व होता है...आशा है नालंदा विश्विद्यालय का स्वप्न जल्दी पूरा होगा...
जवाब देंहटाएंविश्व के प्राचीनतम शिक्षा, ज्ञान विज्ञान केंद्र से बढ़िया परिचय कराया है.. किन्तु आज आधुनिक शिक्षा के ठेकेदारों को कहाँ इसका भान.. कहाँ इसकी सुध...
जवाब देंहटाएंचलिए बिहार का जीर्णोद्धार हो रहा है..
जवाब देंहटाएंसारगर्भित जानकारी नालंदा विश्वविद्यालय पर.
जवाब देंहटाएंधन्यबाद.
Bahut hi gyanvardhak aur rochak post.....har varg ke pathakon ke liye upyogi.....hardik shubhkamnayen.
जवाब देंहटाएंPoonam
नालन्दा की यात्रा लगभग 34-35 वर्ष पूर्व की थी। तस्वीरें देखकर यादें पुनः ताजी हो गयीं। नालन्दा विश्वविद्य़ालय पर अद्यतन जानकारी के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंखण्डरों की सैर करके ही इतिहास की जानकारी मिलती है!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया यात्रा आलेख!
बहुत अच्छी और विस्तृत जानकारी दी आपने हमारी इस एतिहासिक धरोहर के विषय में.... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशिक्षा तथा ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में यह थाती आश्चर्यचकित करती है। पुनः स्मरण कराने के लिए आभार,
जवाब देंहटाएंभारत के विकास के लिए बौद्धिक परंपराओं से जुड़ने की दिशा में यह कारगर कदम है। नालन्दा के पुनर्रोद्धार का समाचार सुन कर प्रसन्नता हुई। इस विषय पर जानकारी देने के लिए आपको साधुवाद।
जवाब देंहटाएंजानकारियों से भरी एक ज्ञानवर्धक पोस्ट जिसमे साहित्य के साथ साथ इतिहास भी है. बधाई इस रचनात्मक पोस्ट के लिए.
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही नालंदा को अपना पुराना गौरव फिर मिलेगा.
जवाब देंहटाएंनालंदा के खंडहरों को देखते हुए एक पल ऐसा लगा था कि ये ईंट और पत्थर बेजुबान नही हैं।पोस्ट अच्छा लगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकाश यह गौरव पुनः स्थापित हो जाये।
जवाब देंहटाएं