उफ़.. ! बहुत देर हो गयी। क्या बताऊँ... मन ही निरापद नहीं था। अभी देखा तो ब्लोग देवता को साप्ताहिक काव्य-प्रसून नहीं चढ़ा है। क्या करूँ... ? कहाँ से लाऊँ पारिजात...? फिर ख्याल आया, “भावमिच्छन्ति देवताः”। तो आज ब्लोग-देव और सुधि पाठकों की अर्चना में अर्पित है, मेरे काव्य-कानन का एक बासी फूल। तरुनाई के प्रवेशद्वार पर लिखी गयी इस कविता (कहना अतिशयोक्ति होगी) में भावनाओं की गहराई का स्वाभाविक अभाव और यौवन की तरह ही भावों का अल्हड़ अतिरेक है। आपकी दिव्य-दृष्टि से ही इसका सुवास लौट आये... इसी आशा और क्षमा-प्रार्थना के साथ – करण समस्तीपुरी
आज जले हैं दीपक दिल के और हृदय के फूल खिले।
बनी धरा शृंगार-सरोवर, सजा गगन सुख-वारिद से ।
मन-तुरंग अति चंचल इसको समुचित दिशा दिखाओ ।
समीचीन इस अवसर पर जो, वह सप्रीत सिखलाओ ॥
छोड़ विरह के गीत सखी तुम, मधुर मिलन का राग सुनाओ ।
रिम-झिम-रिम-झिम सावन ला दो, या वासंती फ़ाग बुलाओ ॥
रोम-रोम में मधुवन महके, नयनों में सुख-स्वप्न पले ।
ऐसी तान सुनाओ कोकिल जिससे परमानंद मिले ॥
छेड़ हृदय के तार शारदे, मेरे उर गुंजार करो ।
कोमल-वचन सुधा बरसा, जड़ मानस का उद्धार करो ॥
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
सफर पुरानी राहों से आगे की डगर पर , साप्ताहिक काव्य मंच
करन बाबू, बहुत अच्छा गीत आपने पढ़वाया। बहुत अच्छा लगा। गीत की लयात्मकता और काव्यत्व दोनों का संगम है इसमें। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंछोड़ विरह के गीत सखी तुम, मधुर मिलन का राग सुनाओ ।
जवाब देंहटाएंरिम-झिम-रिम-झिम सावन ला दो, या वासंती फ़ाग बुलाओ ॥
रोम-रोम में मधुवन महके, नयनों में सुख-स्वप्न पले ।
ऐसी तान सुनाओ कोकिल जिससे परमानंद मिले ॥
हम्म!
कविता बहुत अच्छी लगी, गेय और भाव दोनों स्तर पर लाजवाब!!
प्रेम के प्रति प्रेमी की एकाग्रता ही आनन्द का उत्स है। यह अनुभूति ही वह सूत्र है जिसके कारण प्रेम को मोक्ष का द्वार कहा गया है।
जवाब देंहटाएंछोड़ विरह के गीत सखी तुम, मधुर मिलन का राग सुनाओ ।
जवाब देंहटाएंरिम-झिम-रिम-झिम सावन ला दो, या वासंती फ़ाग बुलाओ ॥
रोम-रोम में मधुवन महके, नयनों में सुख-स्वप्न पले ।
ऐसी तान सुनाओ कोकिल जिससे परमानंद मिले ॥
बहुत सुंदर रचना,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मुझे तो आपकी इस रचना में भावनाओं का अभाव कहीं नहीं दिखा ..
जवाब देंहटाएंमन-तुरंग अति चंचल इसको समुचित दिशा दिखाओ ।समीचीन इस अवसर पर जो, वह सप्रीत सिखलाओ ॥मलय-गिरि के मंद पवन में तन इस मन उस ओर चले ।
ऐसी तान सुनाओ कोकिल, जिससे परमानंद मिले ।।
जो मन के घोड़े को सही रास्ता दिखने कि मांग कर्ता हो वहाँ अल्हड़ अतिरेक कैसे हो सकता है भावों का ..
बहुत खूबसूरत रचना