शिवस्वरोदय-46
आचार्य परशुराम राय
वामे वा यदि वा दक्षे यदि पृच्छति पृच्छकः।
पूर्णे घातो न जायेत शून्ये घातं विनिर्दिशेत्।।251।।
अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ - जब कोई प्रश्नकर्ता युद्ध के विषय में सक्रिय स्वर की ओर से प्रश्न पूछ रहा हो और उस समय कोई भी स्वर, चाहे सूर्य या चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो युद्ध में उस पक्ष को कोई हानि नहीं होती। पर अप्रवाहित स्वर की दिशा से प्रश्न पूछा गया हो, तो हानि अवश्यम्भावी है। अगले दो श्लोकों में होनेवाली हानियों पर प्रकाश डाला गया है।
English Translation – When a person asks about the result of a war from the active side of breath irrespective of right nostril or left nostril, the party will not face any problem. But if he puts question from the side of silent nostril, loss is predicted. The types of losses are described in the following two verses.
भूतत्त्वेनोदरे घातः पदस्थानेSम्बुना भवेत्।
उरुस्थानेSग्नितत्त्वेन करस्थाने च वायुना।।252।।
अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – यदि प्रश्न-काल में उत्तर देनेवाले साधक के स्वर में पृथ्वी तत्त्व प्रवाहित हो, समझना चाहिए कि पेट में चोट लगने की सम्भावना, जल तत्त्व, अग्नि तत्त्व और वायु तत्त्व के प्रवाह काल में क्रमशः पैरों, जंघों और भुजा में चोट लगने की सम्भावना बतायी जा सकती है।
English Translation – If in the breath of Swar Sadhaka Prithvi Tattva is active at the time of inquiry, injury in abdomen may be predicted. Similarly during the flow of Jala, Agni and Vayu Tattvas indicate injuries in legs, thighs and arms respectively.
शिरसि व्योमतत्त्वे च ज्ञातव्यो घातनिर्णयः।
एवं पञ्चविधो घातः स्वरशास्त्रे प्रकाशितः।।253।।
अन्वय - व्योमतत्त्वे शिरसि च घातनिर्णयः ज्ञातव्यो स्वरशास्त्रे प्रकाशितः एवं पञ्चविधो घातः।
भावार्थ – आकाश तत्त्व के प्रवाह काल में सिर में चोट लगने की आशंका का निर्णय बताया जा सकता है। स्वरशास्त्र इस प्रकार चोट के लिए पाँच अंग विशेष बताए गए हैं।
English Translation – In case Akash Tattva is active in the breath, possibility of getting the head injury may be predicted. Thus Swar Shastra indicates five types of injuries according to the flow of Tattvas in the breath.
युद्धकाले यदा चन्द्रः स्थायी जयति निश्चितम्।
यदा सूर्यप्रवाहस्तु यायी विजयते सदा।।254।।
अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – यदि युद्धकाल में चन्द्र स्वर प्रवाहित हो रहा हो, तो जहाँ युद्ध हो रहा है वहाँ का राजा विजयी होता है। किन्तु यदि सूर्य स्वर प्रवाहित हो रहा हो, समझना चाहिए कि आक्रामणकारी देश की विजय होगी।
English Translation – If the left nostril is active with breath during the war, the victory goes with the king where the war is going on. But in case of flow of right nostril, the attacking party will win.
जयमध्येSपि संदेहे नाडीमध्ये तु लक्षयेत्।
सुषुम्नायां गते प्राणे समरे शत्रुसङ्कटम्।।255।।
अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – विजय में यदि किसी प्रकार का संदेह हो, तो देखना चाहिए कि क्या सुषुम्ना स्वर प्रवाहित हो रहा है। यदि ऐसा है, तो समझना चाहिए कि शत्रु संकट में पड़ेगा।
English Translation – In case of doubt about the victory, one should check whether breath is flowing through both nostrils. If so, it should be concluded that the enemy is going to face trouble.
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प्रश्न शास्त्र पर अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअद्भुत जानकारी ।
जवाब देंहटाएंआभार आचार्य ।
ज्ञानवर्धन की श्रंखला में एक और कड़ी आभार.
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
ज्ञानवर्धन की श्रंखला में एक और कड़ी आभार|
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह अनमोल जानकारियों से भरा ज्ञान वर्धक और उपयोगी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंआभार आचार्य जी!
उपयोगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंtatva ki pahchaan ke liye kuch practical experiences share kare
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