धूप-किरणों के पखेरू
तुमने चित्र लिखे होंगे
हाथों में पांवों में
मेहदी-महावर से।
गांव के पीछे पहाड़ी पर
धूप किरणों के पखेरू
चुग रहे होंगे विजन के बीज।
लौटते होंगे तराई से
आदिवासी औरतों के भीड़-मेले
टोकरों में लिये कोई चीज़।
उड़ रहे होंगे
नहाकर श्वेत पाखी
नील पोखर से।
ताल के शैवाल में उलझी
सिंघारों से लदी होंगी
रैकवारों की कठौती-डोंगियां।
बेखबर बस खेल में
खोई हुई शिशु टोलियां
चुन रहीं होंगी किनारे
सीप-शंखी-घोंघियां।
डालती होगी
मछेरन रेत पर नन्हीं मछलियां
भरे आंचर से।
गीत की पगडंडियों पर
दौड़ती होंगी युवाओं के
उमंगों की कलोरें।
घाटियों में गूंजती
आदिम तरंगे
मारती होंगी हृदय के ताल के
तट तक हिलोरें।
पारदर्शी
हो रहा होगा तुम्हारा भींगकर आंचल
छलकती हुई गागर से।
शाम के इस वक्त
छायादार सड़कों पर गुलाबी रोशनी में
देखता हूं नये जोड़ों को।
याद करता हूं पहाड़ी कत्थई पगडंडियां
मुक्त हंसते खिलखिलाते
भील-गोडों को।
लग रहा है
टेरती हो तुम, पहाड़ी के
पुराने नील-निर्झर से।
लग रहा है टेरती हो तुम, पहाड़ी के पुराने नील-निर्झर से।
जवाब देंहटाएंदिल से लिखी गयी रचना आभार ....
ताज़े विम्बो और चित्रों से भरा गीत....जैसे मछेरण का नन्ही मछलियों को रेत पर्दालना..आँचल का भीग कर पारदर्शी होना....सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दचित्र उभरा है यहाँ भाई जी ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसुंदर बिंब उकेरे गये हैं!
जवाब देंहटाएंप्यारा नवगीत है.
जवाब देंहटाएंशब्दों का बेहद मनोरम चित्र .........
जवाब देंहटाएंलग रहा है
जवाब देंहटाएंटेरती हो तुम, पहाड़ी के
पुराने नील-निर्झर से।
अत्यंत भाव प्रबल ...मुखरित ....भावनाओं का शब्द चित्र ...सुंदर अभिव्यक्ति ..!!
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंयह जगह तो जानी पहचानी है बन्धु! टुकड़ों टुकड़ों में बहुत जगह देखी है यह जगह!
जवाब देंहटाएंआज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!
जवाब देंहटाएंएक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
बहुत सरस नवगीत .
जवाब देंहटाएंExcellent 'Navgeet' Manoj ji.
जवाब देंहटाएंशब्दों ने न जाने कितने चित्र खींच दिये।
जवाब देंहटाएंलग रहा है
जवाब देंहटाएंटेरती हो तुम, पहाड़ी के
पुराने नील-निर्झर से।
सुंदर शब्दचित्र
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ताज़ी सुबह पर ओस की बूँद सा प्यारा गीत ...
जवाब देंहटाएंमधुरं मधुरं !
गीत पढ़ने के बाद
जवाब देंहटाएंरचनाकार के मन में उतर जाने का मन करता है!
श्याम नारायण जी को पढ़वाने का आभार...उम्दा रचना/
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्बों के साथ ह्रदय से निकला ....बहुत प्यारा नवगीत
जवाब देंहटाएंपढवाने का आभार ...
सुन्दर बिम्बों के साथ ह्रदय से निकला ....बहुत प्यारा नवगीत
जवाब देंहटाएंपढवाने का आभार ...
मन को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति्.... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपारदर्शी
जवाब देंहटाएंहो रहा होगा तुम्हारा भींगकर आंचल
छलकती हुई गागर से।
kya chitratmakta h...
ek raspoorn navgeet..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण चित्र उकेरा है..बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंगांव के पीछे पहाड़ी पर
जवाब देंहटाएंधूप किरणों के पखेरू
चुग रहे होंगे विजन के बीज।
लौटते होंगे तराई से
अद्भुत तथा अछूते बिम्बों ने रचना की उत्कृष्टता का प्रमाण दे दिया.