फ़ुरसत में ...
पाटलिपुत्र – गौरवपूर्ण इतिहास के झरोखे से झांकता उज्ज्वल भविष्य !!
एम.एस.सी. की पढाई पूरी हो चुकी थी, आगे क्या करना है यह प्रश्न सामने था। उत्तर बिहार में ज़्यादा स्कोप था नहीं, पटना में सिविल सर्विसेज़ की तैयारी के लिए कोचिंग इंस्टीच्यूट में दाखिला ले लिया। अब समस्या थी भरण पोषण की ? संयोग से तब पटना के साइंस कॉलेज को गंगा प्रदूषण के ऊपर शोध करने के लिए एक प्रोजेक्ट मिला था। अखबार में जुनियर रिसर्च फ़ेलो का विज्ञापन देख उसके लिए आवेदन किया। पटना साइंस कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर से आया एक मात्र मैं ही बाहरी कैंडिडेट था। पर सलेक्शन हो गया। तब आठ सौ रुपये मिलते थे। हमारा पटने में रहने खाने पीने का जुगाड़ बैठ गया। दो-तीन साल के शोध के बाद पटना स्थित बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद में साइंटिस्ट के रूप में नियुक्ति मिली। एक दो साल उधर भी किस्मत आजमाई और गांगा मां की सेवा करते रहे। 1989 में सिविल सर्विसेज़ द्वारा चुन लिए गए और फिर पटना छूट सा गया।
इधर मई-जून में तीन बार अपने ही शहर को वर्षों बाद देखने का अवसर मिला। बहुत बदल सा गया यह शहर... नहीं-नहीं बिल्कुल भी नहीं बदला था। बिल्कुल बिहारियों की तरह ही, चाहे कहीं पहुंच जाएं, कुछ भी बन जाएं, सड़क को सरक कहेंगे ही।
इस बार कुछ समय निकाल कर पटना को एक बार फिर देखने निकल गया। दो जगह खास तौर से देखा, जिन्हें पहले नहीं देखा था, सुना ज़रूर था। एक तो कुम्रहार की खुदाई में मिले भग्नावशेष और दूसरा पटना म्यूज़ियम, जिसे हम पहले जादूघर कहते थे।
वर्तमान शासक ने पटना की छवि बदलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। कई फ़्लाई ओवर के आ जाने से यातायात की गति ठहरे हुए बिहार में तेज़ हुई है। चाणक्य विधि विश्वविद्यालय और चन्द्रगुप्त प्रबंधन संस्थान के आने से निश्चित रूप से पटना का गौरव भी बढ़ता हुआ प्रतीत हुआ। तो आज फ़ुरसत में ... पटलिपुत्र – गौरवपूर्ण इतिहास के झरोखे से झांकता उज्ज्वल भविष्य !!
कभी अज़ीमाबाद, कुसुमपुर, पाटलिपुत्र, और अब पटना, मेट्रो की राह पर जाता हुआ दिखा मुझे। इन नए विद्याध्ययन केन्द्र के आने से एजुकेशनल हब बनता जा रहा है। जगह जगह पर पार्क बन चुके हैं, बन रहे हैं। हाइटेक शहर भी होता जा रहा है। अब जिस शहर का इतिहास हजारों साल का हो वहां तंग सड़कें और गलियां होना तो लाजिमी है, पर जहां-जहां संभव हो सकता था सड़कें चौड़ी और बड़े-बड़े, ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट भी दिखे, मिले।
बिहार का अतीत गौरवपूर्ण रहा है। बिहार की राजधानी पटना का इतिहास बेमिसाल रहा है। इसने कई उतार-चढाव देखे हैं। देखी और झेली है लुटेरी सेनाओं की लूट-खसोट। ख़ूनी तलवारों का खेल देखा है। साथ ही न सिर्फ़ सुना बल्कि पूरे विश्व को दिया शांति का उपदेश, शांति का संदेश।
ईसा से 304 वर्ष पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत आए सुप्रसिद्ध यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में लिखा है कि भारत के इस महानतम नगर पाटलिपुत्र (पटना) की सुंदरता और वैभव का मुक़ाबला सूसा और एकबतना जैसे नगर के महल भी नहीं कर सकते। वह मौर्य वंश का शासनकाल था। ठीक 715 साल बाद जब वर्ष 411 में चीनी यात्री फाहियान इस नगर में दाख़िल हुआ तो वह भी यहां की सुंदरता, वैभव एवं उच्च सांस्कृतिक छटा देखकर चकित और अभिभूत था। उसने इस नगर को देवों द्वारा निर्मित बताया। अशोक के राजमहल की चर्चा करते हुए उसने लिखा है कि ये सब किन्हीं अशरीरी दिव्य आत्माओं द्वारा बनाए गए मालूम होते है। जिस प्रकार पत्थरों के खंभे, दीवार, द्वार और उन पर की गईं नक्काशियों तथा स्थापत्य-मूर्तिकला का काम दिखता है, वह मनुष्यों द्वारा किसी भी प्रकार संभव नहीं है।
जब मेगस्थनीज आया था, तब भी पाटलिपुत्र राजधानी था और जब फाहियान आया, तब भी। ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी से लेकर ईसा पश्चात 9वीं शताब्दी यानी लगभग 14 सौ सालों तक पाटलिपुत्र लगातार राजधानी होने का अद्भुत कीर्तिमान अपने नाम रखता था।
पाटलिपुत्र उच्च सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक, प्रशासनिक एवं राजनीतिक केंद्र के रूप में भी प्रतिष्ठित था। राजनीति में आदर्श का प्रतीक पुरुष चाणक्य हों या शौर्य के प्रतीक सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य या गुप्त वंश के सिरमौर समुद्रगुप्त या फिर सम्राट अशोक, इन सबने अपने कर्मों से भारत को स्वर्णिम इतिहास प्रदान किया। इसी काल में महाकवि कालिदास हुए, बाणभट्ट हुए, अद्वितीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट हुए। प्रसिद्ध यक्षिणी (जो दीदारगंज की खुदाई में प्राप्त हुई) जैसी कलाकृति की रचना भी इसी काल में हुई और नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना भी। यह विश्व प्रसिद्ध व्यवसायिक केंद्र था और गंगा तट से, जहां एक बड़ा पत्तन (पोर्ट) भी था, जलमार्गीय व्यापार होता था।
प्राचीन लिच्छ्वियों की राजधानी वैशाली से बुद्ध और महावीर जुड़े रहे। महावीर का जन्म यहीं के बसाढ़ गांव में हुआ था। वैशाली पंचायती राजों का केन्द्र था। यहां गणतंत्र था। प्राचीनतम। इसने साम्राज्यों की लोभ-लिप्सा को देखा। आजातशत्रु ने वैशाली के पंचायती राज को जीत लेने की ठानी। पर उसे जीत लेना आसान नहीं था। जब उसने बुद्ध से उसे जीत लेने का उपाय पुछवाया तो बुद्ध ने उसकी अजेयता के सात कारण बताए।
जब तक वज्जियों के संघ में एकता है, जब तक उसकी संघ की बैठकें जल्दी-जल्दी होती हैं, जब तक उसके भेद गुप्त रखे जाते हैं, जब तक प्राचीन परंपराओं का उसमें आदर है, जब तक वह नारी का सम्मान करता है, जब तक उसकी मंत्रणा का भेद सुरक्षित है, और जब तक उसमें संयम है, तब तक वैशाली का संघ जीता नहीं जा सकता। कालांतर में वैशाली मिटी। पर उसका गौरमय इतिहास आज भी है।
सीता माता की जन्म स्थली भी बिहार में ही थी। सीता ने नारी जाति के सिर पर गौरव का तिलक लगाया। राजा जनक अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी सभा ज्ञान का अखाड़ा हुआ करती थी। याज्ञवल्क्य जैसे उपनिषद के ज्ञानी यहीं से जुड़े थे। उन्होंने संसार और जन्म-मरण के भेद पर प्रकाश डाला। गार्गी जैसी विदुषी का यहां से जुड़ा होना कम सौभाग्य की बात नहीं है। वो जटिल से जटिल प्रश्न हल कर महर्षियों को चकित कर देती थी।
बिहार की धरती से ही पहले शूद्र राजा हुए। महापद्मनंद ने एक बड़ा साम्राज्य गठित किया। पूरब के सागर से यमुना के कगार तक फैला था उसका साम्राज्य। इसकी सीमा पंजाब के दक्षिण , अवंतिका, मालवा तक, काशी, कोसल, और वत्स भी उसकी सीमा में थे।
पठान ब्राम्हण पाणिनि पठानों के देश यूसुफ़ज़ई के शलातुर गांव से आकर पाटलिपुत्र में ही व्याकरण अष्टध्यायी लिखा। पाणिनि के व्याकरण की कात्यायन ने पाटलिपुत्र में ही व्याख्या लिखी।
चाणक्य और चंद्रगुप्त ने मिल कर एक महान साम्राज्य की नींव रखी। अशोक ने एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया। पाणिनि के व्याकरण पर भाष्य लिखने वाले और योग दर्शन के रचयिता महर्षि पतंजलि भी गौड़ देश से आकर पाटलिपुत्र में बस गए।
इस नगर ने दुख भी कम नहीं झेले। पाटलिपुत्र का अवसान वस्तुत: भारत की अधोगति का पर्याय बन गया। 9वीं शताब्दी के बाद भारत विदेशी आक्रमणकारियों की जागीर बन गया और यही स्थिति आज़ादी के पूर्व तक बनी रही। देश की राजधानी पाटलिपुत्र से हटा दी गई। दुनिया का यह सबसे ख़ूबसूरत शहर विध्वंस का शिकार हो चुका था।
अमलाट ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर कितनों का वध कर डाला। राजा कनिष्क कश्मीर में बौद्ध संघ की बैठक करा रहे थे। उसने सुना कि पाटलिपुत्र में अश्वघोष नाम का महान बौद्ध पंडित और कवि है, जो कश्मीर के बौद्ध संघ में आने के लिए तैयार नहीं तो वह अपनी सेना लेकर पाटलिपुत्र पहुंचा और उन्हें उठा ले गया। चंद्रगुप्त ने साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित की। चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में ही राजधानी अयोध्या में स्थापित हो गई थी। गुप्त काल में पाटलिपुत्र का महत्व गुप्त साम्राज्य की अवनति के साथ-साथ कम हो चला। गुप्तों के साम्राज्य को हूणों ने तोड़ डाला। छठी शती ई॰ में हूणों के आक्रमण के कारण पाटलिपुत्र की समृद्धि को बहुत धक्का पहुंचा और उसका रहा-सहा गौरव भी जाता रहा। हर्ष के समय पाटलिपुत्र का वैभव कन्नौज चला गया। 811 ई॰ के लगभग बंगाल के पाल-नरेश धर्मपाल द्वितीय ने कुछ समय के लिए पाटलिपुत्र में अपनी राजधानी बनाई। इसके पश्चात सैकड़ों वर्ष तक यह प्राचीन प्रसिद्ध नगर विस्मृति के गर्त में पड़ा रहा। बख़्तियार ख़लजी ने नालंदा को जला डाला। पठानों, खलजियों और तुग़लकों ने बारी-बारी से हमले किये और बिहार को तबाह कर डाला। लेकिन इस नगर का सौभाग्य अभी सोया नहीं था। यह शहर सृजन और विनाश के दो पाटों से गुजरता रहा। कैसे बहुरे पाटलीपुत्र के दिन इस पर चर्चा अगले अंक में ।
(ज़ारी …! शेष अगले शनिवार)
अच्छी और सुव्यवस्थित जानकारी
जवाब देंहटाएंपाटलिपुत्र का एतिहासिक गौरव , हमारे इतिहास का चमकीला पन्ना है . मुझे दर्जनों बार पटना जाने का अवसर मिला है . विगत कुछ वर्षो में काफी बदलाव दिखे है . उम्मीद है जल्दी ही यह शहर अपने पुराने वैभव को प्राप्त कर लेगा .
जवाब देंहटाएंपटना का नाम भी पाटलिपुत्र कर दिया जाना चाहिए... जैसा कि कोल्कता, मुंबई, चेन्नई आदि के मामले में हुआ है...नया पटना देश के किसी भी मेट्रो शहर के बराबर है... बड़े ब्रांड्स, नए अपार्टमेंट्स, साफ़ सुथरी सड़कें पटना में सुकून देतीं हैं..गर्व भी होता है.... पटना साइंस कालेज, पटना विश्वविद्यालय आदि देश के किसी भी शैक्षिक संसथान के मुकाबले में हैं... इनका ढांचा दिल्ली मुंबई के पुराने कालेजों के समान ही है...
जवाब देंहटाएं@ अरुण जी,
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने, इसके साथ जि विधि विश्वविद्यालय और प्रबंधन महाविद्यालय आ रहा हे वहा भी काफ़ी स्तरीय शिक्षा की व्यवस्था होगी।
फाटलिपुत्र पर आपकी विशेष प्रस्तुति ने अतीत की अतल गहराईयों में झाँकने के लिए मजबूर कर दिया है ।इस सूचनापरक पोस्ट की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपके आलेख से पाटलीपुत्र के बारे में बहुत सी नवीन जानकारियाँ मिली।
जवाब देंहटाएंइतिहास की पर्तों में से आपने बहुत उपयोगी आलेख प्रस्तुत किया है!
ज्ञानवर्धक सुंदर चर्चा .
जवाब देंहटाएंबधाई इस आलेख के लिए.
बहुत विस्तार से पटना/ पाटलिपुत्र के बारे में जानकारी दी आपने.आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी और सुव्यवस्थित जानकारी.. धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपाटलिपुत्र पर जानकारी पूर्ण रोचक लेख...
जवाब देंहटाएंपटना का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है, वही बना रहे।
जवाब देंहटाएंआपकी नज़र से पटना को देखना अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंमनोज जी! बहुत सुन्दर एवम सजीव वर्णन किया है आपने मेरे शहर का.. सचमुच सुन्दर हो गया है यह शहर...
जवाब देंहटाएं@ अरुण जी:साफ़ सुथरी सड़कें पटना में सुकून देतीं हैं..गर्व भी होता है..
खास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिये,
यह हमारे वक़्त की सबसे बड़ी पहचान है!
अभी पटना एक हफ्ते रहकर लौटा हूँ... सारे शहर में फ्लाई ओवर बन गए हैं, लेकिन एक ईलाके को दूसरे व्यस्त ईलाके से जोड़ने वाली एकमात्र सड़क (नाला रोड के एक्ज़िबिशन रोड से)महीनों से बन्द है.. कारण आप सोच भी नहीं सकते.. उसपर पड़ा है गन्धाता कचरा.. आहिस्ता आहिस्ता वो पूरी सड़क एक कचरा घर में तब्दील हो गई है...
अफसोस उसी जगह से कुछ दूर पर शेखर सुमन का घर है और पास में ही शत्रुघ्न सिन्हा का.. मगर वे तो मुम्बई में हैं, इस बास से दूर..
ख़ैर, सब के बावजूद भी मुझे प्यारी है जन्मभूमि मेरी.. अब माँ को तो हमने ही दिया है य कोढ़..
मनोज जी, क्षमा चाहूँगा!!
bahut hi sundar gyanvradhak aitihasik chitramay jaankari prastuti ke liye aabhar...
जवाब देंहटाएंबड़ी अनूठी और बेहतरीन जानकारी दी आपने ! आभार भाई जी !
जवाब देंहटाएंManoj ji aapane pataliputra ke bare me jo jankari prastut ki hai vah vastaw me gyanvarbhak hai.
जवाब देंहटाएंबहूत ही समृद्ध है बिहार और पटना का इतिहास...भविष्य भी दिखाई दे रहा है...सोया शेर फिर से जाग उठा है...पता नहीं कब यू.पी. के दिन बहुरेंगे...
जवाब देंहटाएंपटना ( पाटलिपुत्र) के विषय में विस्तृत जानकारी मिली ... कभी देखा नहीं ..आज आपकी पोस्ट के साथ वहाँ की झलक भी देख ली ..आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपके आलेख से पाटलीपुत्र के बारे में बहुत सी नवीन जानकारियाँ मिली। इस आलेख प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारिए। पाटलीपुत्र के संबंध में कुछ जानकारी मैं आप से साझा करना चाहता हूँ। यह कि पाटलिपुत्र के विकास के साथ संपूर्ण भारत को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ने वाले मिथिलावासी विद्वान न्याय-दर्शन के प्रणेता गौतम का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। न्याय के प्रवर्तक गौतम ऋषि को अक्षपाद [पैरों में भी आंख वाला] कहा जाता था, क्योंकि हर बात की पूरी यथार्थवादी जांच करना उनका स्वभाव था। न्याय दुख का कारण मिथ्याज्ञान मानता है। मिथ्याज्ञान से ही मनुष्य में काम, क्रोध, मद, लोभ जाग्रत होता है और वह दैनिक जीवन में मानवता विरोधी कार्यों में प्रवृत्त होता है। गौतम के न्याय-सूत्र में सोलह पदार्थों का वर्णन किया गया है- "प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रह स्थान।" उस युग में विज्ञान के लिए ’न्याय’ और ’अन्वेक्षकी-विद्या’ शब्द प्रयुक्त होते थे। गौतम की न्याय परंपरा के अनुगामी न्यैयायिक कहलाते थे। गौतम के वैज्ञानिक मत के आलोक में ईसा पूर्व तत्कालीन मगध की राजधानी पटलिपुत्र उन्नति के शिखर पर पहुँची थी। मगध उस समय विश्व के मानचित्र पर महाशक्ति था। मगध रातोरात महाशक्ति नहीं बना था। उसके उस मुकाम तक पहुँचाने में न्यैयायिकों का श्रम और कौशल छुपा हुआ है। इस तथ्य की इतिहासकारों ने चर्चा नहीं की है।
जवाब देंहटाएं@ महापद्मनंद न्यैयायिक परंपरा का अनुयायी था।
@ सर्वविदित है कि मगध-साम्राराज्य की सत्ता पर चन्द्रगुप्त को बैठाने में चाणक्य का विशेष योगदान था।
किन्तु चन्द्रगुप्त को जो मगध मिला उसे महाशक्ति के रूप में महापद्मानंद पहले ही स्थापित कर चुका
था। उसने भारत में सोलह महाजनपदों को मिला कर गणराज्य की स्थापना की थी।
@ मगध के पराभव के साथ ही भारत से विज्ञानवाद का दीपक बुझ गया। अपने अतीत के गौरव को वह
फिर कभी नहीं पा सका।
पटना की गिनीचुनी ही यादें हैं ...
जवाब देंहटाएंफ्रेजर रोड, एक्झीबिशन रोड , गोलघर और वहां से दूर बहती गंगा का नजारा...प्रगति हो रही है , अच्छा लग रहा है जानकार ...
पाटलिपुत्र शैक्षणिक और राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा ही है ... इतिहास के झरोखों से जानना रोचक है !
बिहार के गौरवशाली इतिहास में पाटलीपुत्र पर विकास का चमकता सूरज. इसका अर्थ है कि नितीश जी के प्रयास सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंबिहार को अपना खोया हुआ गौरव और वैभव मिलना ही चाहिए.
अच्छी जानकारी.
पाटलिपुत्र के गौरवशाली इतिहास के पन्नों से निचोड़कर लिखे गये इस आलेख के लिए बहुत-बहुत साधुवाद।
जवाब देंहटाएंमहर्षि पाणिनि के लिए विशेषण पठान उपयुक्त नहीं लग रहा है। चाहे वे अफगनिस्तान में पैदा हुए हों या पाकिस्तान में, जैसा कि लाहोर आजकल पाकिस्तान में है। तत्कालीन भौगोलिक, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ आज से बिलकुल भिन्न थी। आभार।
dairi ke liye kshama chaahti hun...reason yahi tha ki is lekh ko padh kar aatmsaat karna chaahti thi...bahut kuchh jaanne ko mila aur man me ek utsukta bhi teevrata se jagrit ho gayi ki is patna jaisi mahaan nagri ke darshan karne chaahiye..
जवाब देंहटाएंham ab tak hairan hote the ki bihari itne intelligent kaise hote hain...kyuki apne aas paas jahan bhi bade bade sarkari ohdo par paya hai bihar vasi ko hi paya hai...aaj iska raaj samajh me aa gaya...:)
shukriya hamare itihas se avgat karane ke liye...agli kadi ka intzar rahega.
@ अनामिका जी,
जवाब देंहटाएंदेर आए दुरुस्त आए।
बिहरियों के पीछे का राज़ आप पर खुला, मन हर्षित हुआ।
आपने ही कहा कि अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा। बाक़ी टिप्पणियों से तो यही अंदाज़ा लग रहा था कि इसे ही लोगों ने फाइनल मान लिया है।