राष्ट्रीय आन्दोलन
203. गेटवे ऑफ़ इंडिया
1911
1911 में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की पहली बार बंबई (अब मुंबई) आने की यात्रा का धन्यवाद करने और उनकी यात्रा की याद में देश की व्यावसायिक राजधानी में अपोलो बंदर में समुद्री मार्ग के प्रवेश द्वार के तौर पर गेटवे आफ इंडिया का निर्माण किया गया था। वे 2 दिसंबर 1911 को भारत आए थे
और यहां आने वाले ब्रिटेन के पहले
राजा-रानी थे। किंग जॉर्ज पंचम और रानी मैरी संरचना का एक मॉडल ही देख पाए, उन्हें केवल स्मारक का एक कार्डबोर्ड मॉडल देखने को मिला, क्योंकि निर्माण तब तक शुरू नहीं हुआ था केवल नींव रखी गई थी, दरअसल इसका निर्माण 1915 में शुरू हुआ।
इंडो-सरसेनिक
शैली में निर्मित गेटवे ऑफ इंडिया की नींव 31 मार्च, 1913 को बॉम्बे के गवर्नर सर जॉर्ज सिडेनहैम क्लार्क ने रखी थी। 31 मार्च, 1914 को वास्तुकार जॉर्ज विटेट द्वारा गेटवे ऑफ इंडिया का अंतिम डिजाइन प्रस्तुत किया गया था। जिस ज़मीन पर गेटवे बनाया गया था, वह पहले एक कच्चा जेट था। अपोलो बंदर के
नाम से जाने जाने वाले इस क्षेत्र का इस्तेमाल मछली पकड़ने के लिए किया जाता था।
गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण कार्य 1920 में शुरू हुआ जो चार वर्षों बाद अर्थात् 1924 में बनकर पूरा हुआ। गेटवे का इस्तेमाल बाद में वायसराय
और बॉम्बे के नए गवर्नर के लिए भारत में एक प्रतीकात्मक औपचारिक प्रवेश द्वार के
रूप में किया गया। इसने भारत में प्रवेश और पहुँच की अनुमति दी। 4 दिसंबर, 1924 को वायसराय अर्ल ऑफ रीडिंग ने इस स्मारक का उद्घाटन किया और उसी दिन यह लोगों के लिए खोला गया था।
गेटवे ऑफ इंडिया के निर्माण का खर्च उस वक्त की भारत सरकार ने उठाया था। इस संरचना के निर्माण में भारत सरकार द्वारा नकद निवेश लगभग 21 लाख की राशि का हुआ था। धन की कमी के कारण गेटवे ऑफ इंडिया के समीप प्रस्तावित रोड नहीं बनाया गया था। छत्रपति शिवाजी और स्वामी विवेकानंद की प्रतिमाए गेटवे पर बाद में स्थापित की गयी थी। शिवाजी महाराज की प्रतिमा मराठाओं के गर्व और साहस के प्रतीक को प्रदर्शित करती है।
स्कॉटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट ने रोमन विजयी मेहराब और गुजरात की 16वीं शताब्दी की वास्तुकला के तत्वों को मिलाकर गेटवे ऑफ इंडिया की संरचना तैयार की थी। मुख्य रूप से इंडो-सरैसेनिक वास्तुकला शैली में निर्मित इस स्मारक का मेहराब मुस्लिम शैली का है जबकि सजावट हिंदू शैली की है। यह स्मारक पीले बेसाल्ट और प्रबलित कंक्रीट से बनाया गया है। स्मारक में लगे पत्थर स्थानीय है जबकि छिद्रित स्क्रीन को ग्वालियर से लाया गया था। प्रवेश द्वार अपोलो बन्दर की नोक से मुम्बई हार्बर की ओर जाता है। केंद्रीय गुंबद का व्यास 48 फीट और इसका उच्चतम बिंदु जमीन से 83 फीट ऊपर है। मेहराब के प्रत्येक तरफ 600 लोगों की क्षमता वाले बड़े हॉल बने हैं। उंचाई 26 मीटर (85 फीट) है। गेटवे ऑफ इंडिया के चार बुर्ज हैं जिसे जाली से बनाया गया था। इसमें लगाई गईं जालियां ग्वालियर से लाई गई थीं। गेटवे ऑफ इंडिया के दोनों ओर इसके निर्माण की कहानी
उकेरी गई है। गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण कार्य गैमन इंडिया लिमिटेड द्वारा किया गया था, जो उस समय सिविल इंजीनियरिंग के सभी क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त भारत की एकमात्र निर्माण कंपनी थी।
तैयार होने के बाद इसका इस्तेमाल पराधीन भारत में बड़े अंग्रेज अधिकारियों की अगवानी के लिए
किया जाने लगा, इसीलिए इसका नाम गेटवे ऑफ इंडिया पड़ा। विडंबना यह है कि जिस गेट वे ऑफ इंडिया के निर्माण की योजना ब्रिटेन के महाराज के स्वागत के हुई थी, लेकिन जब 1947 में ब्रिटिश राज समाप्त हुआ तो यह उप निवेश का प्रतीक भी एक प्रकार का स्मृति लेख बन गया, और जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो ब्रिटिश राज का अंतिम जहाज यहां से इंग्लैंड के लिए रवाना हुआ। 28 फरवरी 1948 को इसी के जरिए सोमरेस्ट लाइट इंफैंटरी की पहली बटालियन
भारत में ब्रिटिश मिलिटरी की उपस्थिति के खात्मे का संकेत देते हुए रवाना हुई थी।
स्वाधीनता से पहले गेटवे ऑफ इंडिया
कई जाने-माने नेताओं के आवागमन का गवाह भी बना। 9 जनवरी 2015 को निर्माणाधीन गेटवे ऑफ इंडिया होकर
ही महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। इसके एक शताब्दी बाद गेटवे पर एक पट्टिका लगाकर महात्मा गांधी और कस्तूरबा
के भारत वापस आने की कहानी लिखी गई। 9 जनवरी 1915 को जब अरबिया जहाज़ ने बम्बई के गेट वे ऑफ इंडिया के पास अपोलो बंदरगाह को छुआ, उस समय मोहनदास करमचंद गाँधी की उम्र
थी 45 साल। गांधीजी के पास एक सूटकेस था, जिसमें
एक अति महत्वपूर्ण चीज़ थी। यह कागजों का एक पुलिंदा थी, जिसमें गांधीजी के हस्त
लिखित पद्य थे। इसका नाम था, “हिन्द स्वराज” ! “इंडियन होम
रूल” – जो उनका अगला
लक्ष्य था। भारत में, भारतीयों का अपना शासन!!
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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