मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

163. कलकत्ता कांग्रेस, 1906

 राष्ट्रीय आन्दोलन

163. कलकत्ता कांग्रेस, 1906



1906

कांग्रेस अभी तक औपचारिक राजनीतिक संगठन नहीं बनी थी। यह तो एक वार्षिक मंच मात्र थी। तीन दिवसीय बैठक होती थी और प्रस्ताव पास कर लिए जाते थे। असंतुष्टों का एक वर्ग भी इसके अंदर विकसित हुआ था जिसे गरम दल कहा जा रहा था। नरमपंथी लोग सरकार के साथ छोटे-मोटे मुद्दों को बातचीत से निपटाने की नीति में विश्वास करते थे। लेकिन गरमपंथी आंदोलन, हड़ताल और बहिष्कार में विश्वास करते थे। वे बहिष्कार को पूरे भारत में फैलाना चाहते थे और सहयोग से इनकार करना चाहते थे ताकि प्रशासन का काम असंभव हो जाए। प्रमुख गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल थे। उन्हें लाल बाल पाल कहा जाता था। नरमपंथियों को संघर्ष की ये नई तकनीकें पसंद नहीं आईं। उन्होंने बहिष्कार का उपयोग केवल विशेष परिस्थितियों में करना चाहते थे।

दिसंबर, 1906 में आयोजित कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन के वक़्त तक गरम दल ने काफी प्रगति कर ली थी। तिलक या लाला लाजपत राय के अध्यक्ष बनने की दावेदारी काफ़ी मज़बूत थी। जहाँ गरम दल बाल गंगाधर तिलक को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहता था, वहीं उदारवादी इसका विरोध कर रहे थे। फीरोजशाह मेहता, वाचा और गोखले के प्रभावशाली बंबई गुट ने दादाभाई नौरोजी जैसे पितृवत सर्वसम्मानित व्यक्ति को इंग्लैण्ड से वापस बुला कर अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित करके संभावित विघटन या विरोध टलवा दिया। नौरोजी को लगभग सभी राष्ट्रवादी एक सच्चा देशभक्त मानते थे।

कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस पर एक प्रकार से उग्रवादी प्रभाव छाया रहा। साथ ही दुविधा का तत्त्व भी बना रहा। दादाभाई नौरोजी ने गरमदल को संतुष्ट करने के लिए घोषणा की कि कांग्रेस का उद्देश्य ब्रितानी राज्य या उपनिवेशों की तरह स्वराज्य प्राप्त करना है। लेकिन इससे गरमदल वाले संतुष्ट नहीं हो सके। वे पूर्णस्वराज्य और स्वशासन चाहते थे। वे कांग्रेस को क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए तैयार करना चाहते थे।

कलकता कांग्रेस में ज़िला समितियों के गठन की सिफ़ारिश की गई थी। 1907 और 1908 में अनेक प्रांतों में ज़िला सम्मेलन आयोजित किए गए। अहिंसक स्वदेशी आन्दोलन को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक सभाएं भी आयोजित की जाने लगी थी। इस अधिवेशन में बहिष्कार, स्वदेशी, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वायत्त शासन पर प्रस्ताव रखे गए। बिपिन चन्द्र पाल के विदेशी वस्तुओं और मानद पदों के बहिष्कार के प्रस्ताव का मालवीय और गोखले ने विरोध किया। फिरभी नरमपंथी दल इस अधिवेशन में चार प्रस्तावों को पास करवाने में सफल रहा- स्वराज्य की प्राप्ति. राष्ट्रीय शिक्षा को अपनाना, स्वदेशी आन्दोलन को प्रोत्साहन देना और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करना। लेकिन इन प्रस्तावों का मसविदा इतना अस्पष्ट था कि 1907 तक नरमपंथी और गरमपंथी इसे अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते रहे और आपस में लड़ते रहे।

एक और गौर करने वाली बात यह है कि इसी वर्ष मुहम्मद अली जिन्ना ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ली। कांग्रेस के 1906 के सम्मेलन में जिन्ना ने अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी के निजी सचिव के तौर पर काम किया था। इस सम्मेलन में कांग्रेस ने पहली बार स्वराज्य की मांग की थी। कलकत्ता अधिवेशन की कार्यवाही से उत्साहित चरमपंथियों ने व्यापक निष्क्रिय प्रतिरोध और स्कूलोंकॉलेजोंविधान परिषदोंनगर पालिकाओंकानून अदालतों आदि का बहिष्कार करने का आह्वान किया। दूसरी तरफ नरमपंथियों नेइस खबर से प्रोत्साहित होकर कि परिषद सुधार विचाराधीन थेकलकत्ता कार्यक्रम को नरम करने का फैसला किया। ऐसा लग रहा था कि दोनों पक्ष आमने-सामने की टक्कर की ओर बढ़ रहे हैं।

1906 में तो दादाभाई नौरोजी के योग्य नेतृत्व ने कांग्रेस में होने वाली फूट को बचा लिया।  लेकिन मतभेद समाप्त नहीं हुए, और इन्हीं मतभेदों के कारण अगले ही वर्ष 1907 ई. के 'सूरत अधिवेशन' में कांग्रेस के दो टुकड़े हो गये और अब कांग्रेस पर नरमपंथियों का क़ब्ज़ा हो गया।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद

संदर्भ : यहाँ पर

 

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